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Showing posts from 2015

वो गुजरे हुए चंद दिन...

वो गुजरे हुए चंद दिन हर आते जाते लम्हे से एक सवाल करता हूँ के ज़िंदगी क्या है ?  वो जो हमें दी जाती है या वो जिसे हम खुद चुनते है देखा जाये तो दोनों चुनाव ही पेचीदा और गुंजलदार से है मगर जब ज़िंदगी को हमारा दिल चुनता है न.. तो किसी चीज़ की परवाह नहीं होती बड़ा मज़ा आता है वो मीठे मीठे गम में दिल खोल के हसने में, रोने में, घंटो इंतज़ार सा होता है आँखो में खुमार सा होता है इस बैरी समाज से बैर और आईने से प्यार सा होता है बड़ा सुकून सा मिलता है हर कायदे क़ानून को तोड़ के मिलने में छुप छुप के आँखें चार करने में और ये हर उम्र में ये एक जैसा ही होता है बड़ी मज़े की बात है न.. सुनहरे से दिन लगते है और मीत सी लगने लगती है रैना...  है न.. हम रात की चादर में अनगिनत सितारे जड़ देते है और महबूब कर चेहरा ठीक बीचो बीच सजा देते है खुद से बातें करना, अचानक से हस देना, एक दम से रो देना,  घंटो पलक झपकाये सोचते रहना हर वक़्त मिलने की साजिश करना न जाने कितने ऐसे रोग हम दिल को लगा देते है। फिर भी, ये 'प्यार का रोग है मीठा मीठा प्यारा प्यारा ' नहीं। हाँ सबको कभी न कभी ज़िंदगी मे

" मैं खफा सा हूँ "

          " मैं खफा सा हूँ " मैं ख़फ़ा सा हूँ इस वक़्त से हमनशीं खुद से गरज भी नहीं अब मुझको। होटों से जो लफ़ज़ निकलते है वो सुलगते दिल से पहुँचते है तुझको। ये बेरुखी बेसबब नहीं है ऐ हमनशीं ये किस्मत के काँटे, बेवक़्त ही छिल देते है मुझको। कैसे सजाऊँ होटों पे मुस्कान आँखों में सपने अपनी ही आग से जला रहा हूँ खुद को। क्यों ख़फ़ा होते हो यूँ बेवफ़ा सा कहकर मैं आज भी अपनी राख़ से सजा सकता हूँ तुझको। मैं दूर पर मज़बूर नहीं हूँ ए हमनशीं मैं आज भी तेरी चाहत में मिटा सकता हूँ खुदको। ( आरज़ू-ए- अर्जुन )

"तेरा अक़्स मिले "

"तेरा अक़्स मिले "  तेरे संग मैं देखूँ सुबह तेरे संग मेरी शाम ढले तू बसा हो मेरी सांसों में तेरी साँस से मेरी साँस चले फिर थाम कर तेरी बाहों को यूँ हीं अंजान सी राहों को तेरे पैरों के निशान पर मेरे पैरों के निशान पड़े तू रुके तो थम जाऊं मैं तू चले बढ़ जाऊं मैं तू थके तो करूँ जुल्फों की छाया तू हसे तो लगे कुदरत की माया ये ज़मीन भी आसमां भी मेरे संग तेरा सजदा करे तेरी आँखों में मंजिल हो मेरी और बातों में  मंजिल का पता तेरी राहों की रौशनी खातिर मेरे ये दो नैन जलते रहें  मैं खुद को भी भूल जाऊं तेरे सीने से लगकर आरज़ू तुझे हर जन्म में पाने की खातिर मेरी दुआओं का सिलसिला चले जब बंद होंगी आँखे मेरी तो खोल कर देखना ज़रूर मैंने ख़ुदा से कह रखा है   मेरी आँखों में तेरा अक्स मिले. मैंने ख़ुदा से कह रखा है   मेरी आँखों में तेरा अक्स मिले.  आरज़ू-ए-अर्जुन    

" मैं फिर से उसी चौराहे पे खड़ा हूँ "

" वो चौराहा " मैं फिर से उसी चौराहे पे खड़ा हूँ जहाँ से ये सफर शुरू किया था बड़ी मुश्किल से एक राह चुनी थी बड़ा लम्बा सफर तैय किया था मगर अब क्या ? फिर से एक राह चुननी पड़ेगी ? फिर से एक सफर तैय करना पड़ेगा ? मैं इस राह को तो जानता हूँ  ! इसका आखरी मोड़ दिल से होकर गुजरता है वहाँ थकान जैसे ख़त्म सी हो जाती है और दिल वो ख्वाब बुनने लगता है जिसका तसव्वर उसने कभी किया ही नहीं एक उलझन सी होने लगती है हर घडी और ये मन उलझना भी तो चाहता है इसमें छोटी छोटी बेकरारी सी रहती है रोज़ एक नई तैयारी सी रहती है खिला खिला सा चेहरा चाँद को भी रोज़ जलने पे मज़बूर कर देता है हर रात को चुनिंदा सितारों से भर देता है एक मखमली सा साया होता है जिस में ये दिल बार बार खोता है फिर यह राह एक खेल खेलती है बांध कर हाथ और पैर, एक अग्निकुंड में ठेलती है और कुछ वक़्त मिलता है निकलने का मैं अपनी बेड़ियाँ इसी अग्निकुंड में पिघलाकर बाहर आया जब निकला तो देखा, न तो वो राह थी  न ही वो मखमली सा साया बस मैं था और एक अँधेरी गली जिसमें मैं चलता रहा, चलता रहा..  मैं फिर से उसी चौराहे पे खड़ा हूँ ज

" खरपतवार "

" खरपतवार "    खेत किनारे बैठ कर किसानों को मैं देख रहा हूँ तन पे ढीले ढाले कपडे सर पे एक ढीली पगड़ी है भिन्न -२ से दिखते हैं वो पर मेहनत उनकी सम तगड़ी है धूप-छाँव की परवाह किसे है बस खेत जोतने की दौड़ लगी है घर बार की चिंता तो है पर फसल उगाने की होड़ लगी है पूरा परिवार एकजुट होकर कर रहा है खेत की तैयारी घास तिनकों को उखाड़ते जाते साफ़ कर रहे एक एक क्यारी देख उन्हें मन में एक सवाल उठा फिर मैंने उनसे पूछ लिया क्यों तोड़ते हैं ये तिनके क्या कोई ये है हथियार ?  वो बोले उससे भी खतरनाक, क्योकि ये है खरपतवार ! पढ़ा था मैंने कभी कक्षा में कि खरपतवार क्या होता है ये रोकती है विकास फसलों का ऐसा प्रभाव इनका होता है समझ बूझ सब बातों को मेरे मन में कुछ आये सवाल मैं जहां रहता हूँ शहर में वहां भी उग रहे हैं बवाल जब किसी का बच्चा कहीं स्कूल पढ़ने को जाता है सीट की चिंता बाप को रहती इसलिए मोटी रकम साथ में लाता है ये सीट की चिंता और बढ़ती है जब बच्चा कॉलेज में जाता है अपने वजन के जितना पैसा बाप कॉलेज में जमा करवाता है फिर छिनते देख अपने हकों को विद्यार्थी करते खुद पे वार उखाड़ना ह

" मन और मानव "

" मन और मानव " यह नदी  का किनारा और दूर तक फैले सब्ज़, बेल-बूटे हवाओ में नमी, भीनी सी खुशबू फूल कलियाँ शाख से टूटे मानो दिल को जैसे बहलाती है पत्थरों से टकराता हुआ ये चांदी सा चमकीला पानी कलकल करती इसकी लहरें और नृतमई इसकी रवानी बस ऐसे ही कहीं गुजरती जाती है वादियों में मधुर सा शोर जो फैला है मेरे चारो ओर मन को कर रहा है सराबोर एक अजीब सी राहत का एहसास करवाती है पेड़ों पे सजे हुए घोंसले और अजनबी परिंदों की चहक ख़ुशी से हवा में झूलते पेड़ पौधे और हवा में रिसती उनकी महक एक रुहानगी का तारुफ़ करवाती है किनारे से चोटी तक फैली हुई ये चट्टानों की ठोस दीवार और उनसे गले मिलने को ये नाज़ुक बेल-बूटे कितने बेकरार अंततः चोटी तक पहुँच भी जाती है फिर दूर किसी शिकारे से एक आवाज़ फ़िज़ा में घुल जाती है  नदी, वन, उपवन को जैसे एक नशीली तरंग मिल जाती है जिसमे ये कायनात सिमट सी जाती है फिर सूरज ढलते ही उसी शिकारे से फिर से एक आवाज़ आती है पर वन, उपवन और नदी है शांत परिंदों की आवाज भी थम जाती है शायद बिरह का दुःख सुर में पाती है नदी में अब नहीं हलचल है पर दिल मे

" चलते चलते "

" चलते चलते "  बहुत तनहा है इन राहों पे हम दो कदम ही सही साथ तो दो तुझे पुकारती है ये राहें कब से कहीं से ही सही हाथ तो दो ये दिल महसूस करना चाहता है तुझे सीने से लगाकर वो एहसास तो दो संग तेरे भीगना चाहता है यह मन मोहब्बत से भरी वो बरसात तो दो हाथो में हाथ लिए बस चलता रहूँ उम्रभर वो शबनमी सहर और महकती रात तो दो होंगे जवाब तमाम मेरी आँखों में सनम मेरी आँखों में देखकर चंद सवालात तो दो जी लूंगा मैं उन हसीं यादों के सहारे तेरी चाहत में डूबे वो लम्हात तो दो एक बार जुबाँ से इज़हार तो कर भीगी पलकों से वो ज़ज़्बात तो दो मैं मिट के भी सजा सकता हूँ तुझे झूठा ही सही एक वादा ख़ास तो दो नहीं चाहता मैं मर जाऊं ऐसे ही हमनशीं इस अंजानी चाहत को एक पहचान तो दो. आरज़ू-ए-अर्जुन  

" चुभन "

" चुभन " बड़ा सुकून है तेरी बाहों में आकर अब तक दुनिया में यूँ ही भटकता रहा। तेरी धड़कनों को सुनकर वो राहत मिली जिसकी आरज़ू मैं बरसो से करता रहा। समेट लो इसकदर अपनी बाहों में मुझे कि समा जाऊ तुझमे, जो अबतक कहीं बिखरता रहा। किसी जन्नत की आरज़ू नहीं थी मुझे तेरी आँखों में बसने की तमन्ना करता रहा। गुजरी है ज़िंदगी मेरी कुछ इस तरह बेवजह सा जीता रहा बेवजह मरता रहा। इन जख्मों से कहाँ डरता था मैं आरज़ू खुद ही गिर गिर के संभालता रहा। दिल में रंज होटो पे हसी सजाते थे लोग इसे ही सच्ची मुस्कुराहट समझता रहा।  मैं पूछता था इन हवाओ से मंजिल का पता जब भी इन पेचीदा राहों से गुजरता रहा। नहीं मिला सुकून ज़िंदगी की कशमकश में खुदी की आग में अब तक सुलगता रहा। बड़ा सुकून है तेरी बाहों में आकर अब तक दुनिया में यूँ ही भटकता रहा। आरज़ू-ए-अर्जुन 

" मैं काफ़िर हूँ "

" मैं काफ़िर हूँ "  मज़हब की इस दुनिया में सब धर्मों के लोग मिले मैं अंजाना पहचानू न ये मजहब और जो लोग मिले मैं देखूं जहाँ भी ये मौला तेरा नूर इंसां इंसा में मिले मैं दीन धर्म को जानूँ न मैं मजहब को पह्चानूं न मैं कौन हूँ मौला ये तो बता तेरे नूर ने सब को रौशन किया तेरी चौखट पे मैं हाज़िर हूँ वो कहते है मैं काफ़िर हूँ है रंग लहू का लाल मेरा क्या उनका लहू है लाल नहीं मैं पहली बार माँ बोला था वो हिन्दू मुसलमा बोले कहीं इस पानी को रोक सकेगा कोई सागर से मिलने जाने को इस हवा को टॉक सकेगा कोई सांसो में घुलने जाने को ये खुशबू सीना तान खड़ी हर गुलशन ये महकाने को तेरी चौखट पे मैं हाज़िर हूँ वो कहते है मैं काफ़िर हूँ हम एक मालिक के बन्दे है इस दीन धर्म से बांटों न तुम हम इन्सां है इस बगिया के नफरत की धार से काटो न तुम ये धर्म ज़हर अब बन बैठा ये विष का प्याला चाटो न तुम ये जीवन मिला तो कर्म कमा यूँ  नफरत को गांठो न तुम अमन की राह मुश्किल तो नहीं धर्म की चादर से ढांपो न तुम   तेरी चौखट पे मैं हाज़िर हूँ वो कहते है मैं काफ़िर हूँ  हर इन्सां का है फ़र्ज़ यही इ

" एक आरज़ू सी है "

   " एक आरज़ू सी है " एक आरज़ू सी है ये ज़िंदगी, गुजरे तेरी पलकों के तले, और तेरे हर ख्वाब में मेरा ज़िक्र सा हो। तेरी हसी से दिल को सुकून मिले और तेरी बातों में मुझे खोने का फ़िक्र सा हो  । कभी पी लूँ उन आंसुओ को भी तेरे जो किसी दर्द की वजह से छलकते से हो, कभी जी लूँ उन सपनों को तेरे जो झूमते से आँखों में झलकते से हों। तेरी ज़ुल्फ़ों की छाँव मेरे चेहरे पर बिखरी रहे यूँ ही सदा ये ज़माने की धूप मेरे चेहरे पर  फिर पड़ती  न हो। कोई शोर न हो दरम्यां हमारे सिवाए सांसों और धड़कनों के, नज़रें समझती हो वो ज़बाँ जो हमारे होटों से बयां न हो। तेरी गोद में सर रख कर तुझे देखता रहूँ मैं  एकटक  और कई जन्मों तक तुझे पाने का तसव्वर सा हो। फिर शर्मा कर तू मेरी आँखों को अपनी हथेलियों से बंद करे, और माथे को होटों से तू चूमता सा हो ।  आखिर में तुझे सीने से लगाकर मैं भूल जाऊं इस दर्द की दुनिया को बस, तुझे पाकर किसी और ख्वाहिश की फिर कोई तमन्ना न हो  ।    आरज़ू-ए-अर्जुन   

" ये कौन सा शहर है "

" ये कौन सा शहर है " ये कौन सा शहर है न रास्ता न डगर है सरहदो में कैद बस रंगीन सी इमारतें और इनमें बस्ते ये रबड़ के इंसान, जो चलते है, फिरते है, जागते है, सोते है और फिर इस भीड़ का हिस्सा हो जाते है बहुत काली सी रात और धुंधली सी सहर है ये कौन सा शहर है न रास्ता न डगर है सुबह के पत्तों की तरह ताज़गी है चेहरे पर मगर दोपहर गए झुलस से जाते है कहीं ये सपनो में डूबी आँखें है या आँखों में तैरते सपने ये बताना मुश्किल है कि कौन सा सपना पहले ये अच्छा, यह बुरा बस बदल सी जाती नज़र है ये कौन सा शहर है न रास्ता न डगर है क़दमों की बात करें तो ये थके नहीं है बस बेइरादे भटकते रहते है दर बदर ये कंधे लगातार नीचे की ओर झुके से रहते है और हथेलियाँ पसीने से तर रहती है कब सुबह होगी कब शाम ढलेगी इसकी नहीं खबर है ये कौन सा शहर है न रास्ता न डगर है घरों की दीवारों पे लटकती है कुछ रंगीन तस्वीरें और हर कोना गुलदानों से सजा रखा है महकता है घर आँगन बाज़ारी इत्र फुलेलों से मगर रिश्तों में कहीं भी कोई खुशबु नहीं है ये बेमायने से रिश्ते, बेसबब और बेअसर है ये कौन सा शहर है न रास्ता न

" चाँद सितारे और मैं "

" चाँद सितारे और मैं "   कल रात चाँद सितारों से बैठ कर बातें करता रहा  बड़े अदब से उनका नाम पूछा अपने बारे में बताया  चाँद खामोश था मगर तारे जवाब देते थे टिमटिमा कर  चाँद की रौशनी में डूबे वो सारे सितारे मुझे सुन रहे थे  और मेरी आँखों  में उनका अक्स दिखाई दे रहा था  थोड़ी देर बाद मुझे एक सितारा चलता हुआ नज़र आया  मैंने पूछा वो कहाँ जा रहा है तो हसकर कहने लगे  ,"क्या मंजिल की तलाश सिर्फ तुझे रहती है ".  वो भी मंजिल की धुन में अपनी राहों पे भटक रहा है  जाने कब उसका सफर ख़त्म होगा या होगा भी के नहीं  रोज़ तो ये आसमान चुपके से अपना दामन फैला देता है .  बड़ी निराशा थी उस सितारे की आवाज़ में  और उस सितारे की चाल में, जैसे वो अपना अंजाम जानते हों  इतने में एक सितारा धरती पे टूट के गिरा और  कहीं बिखर गया मैंने फिर से सवाल किया उस टूटे सितारे के बारे में  इस बार उसकी आवाज में सोज़ था एक दर्द था  और बोले," जब किसी को मंजिल नहीं मिलती  तो वो टूट जाया करते है बिखर जाया करते है"  बड़े खुशकिस्मत हो तुम धरती पे रहते हो  तुम लोगो क

" चलो सफर करते है "

         " चलो सफर करते है "  इस ज़िंदगी के रेले में हर कोई मुसाफिर हर किसी के कंधे बोझिल, माथे पे शिकन और चल रहा है पथरीली आँखों को लिए पैर के पंजे एक दूसरे से बिखर गए हैं।  मगर परवाह किसे है ज़रा दम लेने की ठहर कर ज़रा मुडके देखने की।  माथे पर पसीना मगर सीना तना है आँखों में झुंझलाहट मगर राह पर बना है  कोई आवाज़ अब, कानों तक नहीं पहुँचती  अब कोई आहट दिल को दस्तक नहीं देती। हाँ कुछ सुनाई देती है तो एक धुन, एक सनक, कि मंजिल पे पहुंचना है. चेहरों को आँखों से देखो तो रूहानियत है  और दिल से देखो तो लब है पड़ेंगें। हम आधुनिक लिबास पहने ज़िंदगी से बेलिबास है ये चकाचक रौशनी क्या सच में ख़ास है एक पतंगे की तरह इस रौशनी में गुमराह है ये जानते हुए भी..  कि ज़्यादा रौशनी आँखे बंद कर देती है दिमाग मंद कर देती है फिर भी दिल, दिमाग से परे उस रौशनी में लिपटना चाहता है और फिर क्या, इस सफ़र में तमाम उम्र बस चलते रहो यां जलते रहो, मंजिल मिले न मिले बस चलते रहो थक कर बैठोगे तो लोग हसेंगें ....  कोई हमराह, हमदर्द नहीं है इस सफर में बस चल कर, उड़ कर, दौड़ कर या उड़कर आगे निकलना

" अपनी किताबें हटा कर देख "

" अपनी किताबें हटा कर देख "  इस रात के घेरे में रंग है कितने तितलियों के परों पे रंग है जितने हर कोना महका सा ठहरा सा कहीं एक ही ज़ज़्बात को लिए दूर तक बिखरा कहीं पत्तों पे ठहरी ये ओंस की बूंदे चुपके से ठहरी पलकों को मूंदे और हवा के झोंके से काँपता सा दिल जुगनुओं की  रौशनी होती झिलमिल फ़िज़ाओं में बिखरी खुशबू रजनीगंधा की  चंचल सी चांदनी अलबेले चंदा की और ताल मिलाते झींगुरों की आवाज़े  पत्तों की सरसराहट और पंछियों की परवाज़े कितना सुकून है रात की आवारगी में कहीं गहरे राज़ छिपा रखे है जैसे किसी ने यहीँ उस कुटिया की मुंडेर पे रौशनी की तरंगे ख़ुशी से जशन मनाते रौशनी में कीट पतंगे दिन की थकन से परे दिल गुनगुनाता है रात में इन्ही लहरों, हवाओं और झींगुरों के साथ में आँखों पे लगे मोटे चश्मे साफ़ देख नहीं पाते जिन्हें  फिर ये बंद सी पलके कैसे देख लेती है उन्हें हम उलझे रहते है किताबों की उलझनों में कभी यां दौड़ रहे है दुनिया के पीछे पीछे कहीं पर मिलता नहीं सुकून मंजिल पे भी कहीं  इस चार दिन की चांदनी को भूलें अब नहीं है छिपी ये रौशनी कहाँ? रात दिन के पर्दों को गिरा क

"अच्छा लगता है "

"अच्छा लगता है "  बहुत अच्छा लगता है जब कोई मज़दूर अपनी मज़दूरी को हाथ में लेकर अपने माथे को सुकून से पौंछता है और दिल में सबर सबूरी ढूँढ लेता है फिर जब मुस्कुरा कर घर चल देता है वो मुस्कराहट देख कर मुझे, अच्छा लगता है, बहुत अच्छा लगता है  अपने अरमानो को दिल में छुपा कर अपनी उम्र को आस की भट्टी में जला कर जब वो अपने बच्चे को पढ़ने भेजते है उनकी आस को जब बच्चा परवाज़ देता है तो ख़ुशी से छलकी माँ-बाप की आँखों को देख मुझे, अच्छा लगता है, बहुत अच्छा लगता है  पिता  की ऊँगली थाम जब बच्चा मेले जाता है खुशियों से भरे हर कोने को आँखों समाता है फिर, किसी खिलौने को देख चुपके से ठहर जाता है फिर, पिता को चुप देख कर " अच्छा नहीं है खिलौना" कहता है तो सचमे,अच्छा लगता है, बहुत अच्छा लगता है  क़र्ज़ से भीगी पगड़ी को पहन कोई चिलचिलाती धूप में उम्मीद लिए हल चलाता है शाम को खेत किनारे बैठ कहीं खो जाता है और कांपते पैरों से घर जाते जाते जाने कैसे चेहरे पे ख़ुशी ले आता है, वो झूठी ख़ुशी देखकर अच्छा लगता है, बहुत अच्छा लगता है  सरहद पर चट्टान सा खड़ा जब वो कड़कती धूप

" तेरी ओर "

  " तेरी ओर "  फिज़ाओ में खेलती तेरी खिलखिलाती सी हसी और कलियों सा महकता ये मखमली सा बदन पैरों से खेलते तेरी पायल के घुंघरू और कलाइयों पे खनकते ये कांच के कंगन बेलों की तरह लिपटा ये तेरा आँचल और शोर मचाता हुआ तेरे दिल का स्पंदन एक नशे के समंदर को बांधता ये काजल और चन्द्र हास् सा तेरे कानो का कुण्डल नागमणि सी चमकती तेरे माथे की बिंदिया बालों में सिमटा कोई बादलों का जमघट हिरणी सी चाल बल खाती सी कमर हसे तो लगे नदी से झरने का हो संगम रात दिन सी लगे तेरी झुकती उठती सी पलकें और सुराही दार तराशी सी गर्दन आँखें खोलूं तो सामने तू है आँखें बंद करूँ तो सामने तू है इन बहारों में इन नज़ारों में और इन लहरों में बस तू ही तू है हर घडी दिल में सुनता हूँ एक शोर मैं चल रहा हूँ....   बस.. तेरी ओर..तेरी  ओर.... तेरी ओर . आरज़ू-ए-अर्जुन  

" आखरी पल है "

" आखरी पल है "   आखरी पल है आँखों में कुछ तस्वीरें आ रही है वक़्त की दास्ताँ और प्यार की तकरीरें सुना रही है मेरे बचपन की यादें वो हसना वो खिलना  वो कंचों की मस्ती वो पतंगों का लड़ना बारिश के पानी में गिरना संभलना सर्दी के मौसम में सिहरना ठिठुरना क्यों भूली सी बातें मुझे याद आ रही है  मुझे याद है वो किताबों के दिन वो आपस की मस्ती बेहिसाबों के दिन वो यारों की खातिर फिर लड़ना झगड़ना किसी की आँखों में दिल का फिसलना वो दिलकश सी यादें दिल को धड़का रही है  था पहला कदम और कॉलेज की बेपर्वाहीयां वो जज़बे जूनून मोहब्बत की अंगड़ाइयाँ उस खिड़की के शीशे से चुपके से तकना दिल पे तेरा मेरा नाम वो बैंचों पे लिखना वो इशक में डूबी बातें क्यों तड़पा रही है मंजिल के लिए फिर राहों को चुनना उम्मीदों से जुड़े सपनो को बुनना कई ठोकरों के बाद फिर से संभलना बिखरी सी हिम्मत को समेट कर चलना वो जूनून से भरी निगाहें क्यों इतरा रही है वक़्त की चल में अपनों की बेरुखी हिम्मत थी संजोनी पर नज़रे थी झुकी फिर बारी बारी उन हाथो का बिछड़ना ज़िंदगी के वादों को पल भर में मुकरना क्यों ये बातें मेरी

ऐ आईने तेरा चेहरा अब अच्छा लगता है

बस गए होजबसेइन आँखों में तस्वीर बनके ऐ आईने तेरा चेहरा अब अच्छा लगता है वादे इरादे तो होंगे इस प्यार में भी मगर उसका हर वादा सब वादों से सच्चा लगता है आशिक़ों के किस्से तो हमने भी सुन रखे है मगर उनका प्यार तेरे प्यार से कच्चा लगता है तेरी मुस्कान ने घोली है फ़िज़ा में वो खुशबू कि आशिक़ बना इस शहर का हर बच्चा लगता है और तेरे गालों से खेलती इन लेटो की कसम प्यार में जीना- मरना अब अच्छा लगता है आरज़ू-ए-अर्जुन   

" ख्वाबों का भँवर "

" ख्वाबों का भँवर  "  इलाज़ता है दिल उन जख्मो को जो फ़ुरक़त के लम्हों में मिले थे कभी रात की चादर में हमने भी कई सितारे जड़े थे आज वो चमकता सा सितारा पूछता है क्यों ? अभी तक सोये नहीं ? पर क्या बताऊँ उस मासूम से दोस्त को अब ख़्वाब देखने से डरता है दिल फिर, मेरी उलझन से  निकल कर एक ख्वाब मुझसे कहता है हम दोनों ही अधूरे है एक दूजे के बिना चलो इस अंजुमन से दूर कहीं एक दूसरे को सँवारते है तुम मुझमे फिर से रंग भरना और मैं तेरी दुनिया खुशरंग बनाउंगी फ़क़त क्यों सोचता है उसकी बातों को ये दिल वो कहता है, "क्योकि ख्वाब देखने के लिए आँखों की जरूरत नहीं होती है " ख्वाब तो उनके भी पूरे होते है जिनकी आँखे नहीं होती तक़दीर तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते और मंजिल पे वो भी पहुँचते है जिनके पाँव नहीं होते। खैर!  मेरे उलझनों के भंवर में मेरे ख्वाब गोते लगाते रहे न मैं इस भॅवर से उभर सका न मेरे ख़्वाब इसमें डूब सके पर मुसलसल मेरे ख़्वाब आज भी मुझसे सवाल जवाब करते है एक चाहत फिर से होने लगी है अब फिर से ख्वाब देखना चाहता है दिल आरज़ू-ए-अर्जुन  

( वाकया )आज ज़िंदगी से मुलाकात हो गई

आज ज़िंदगी से मुलाकात हो गई वाकया एक दो नहीं, तीन चार मेरे सामने आये हर वाकया ज़िंदगी के सच को लिए आईने की तरह मेरे सामने खड़ा था                     1.  भटके से राहों पे कहीं चल रहे थे मैंने देखा एक बूढ़ा लाचार सा आदमी कहीं सड़क पर खड़ा था मैली मटमैली धोती उसकी कई जगह से उसका कुर्ता फटा था हाथ और पाँव की नसें फूलती लाठी को पकडे जब चलता था आँखों की झुर्रियां और सिकुड़ती जब भी तेज़ हवा थी चलती आँखों का चश्मा था धुंदला बार बार साफ़ उसे करता था मैंने पूछा," बाबा" इतनी दोपहर गए किधर आये हो कहा," बेटा" उस पेड़ के पास जाऊंगा बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पावों को लम्बा किया। लाठी को बगल में रख कर चश्मे को धोती से साफ किया  . बढ़ी उत्सुकता मेरी पूछा मैंने "बाबा" "बस का इंतज़ार कर रहे हो" . कहा हसकर," नहीं बस यूँ ही यहाँ बैठा हूँ." फिर पूछा मैंने," क्या थक गए हो बाबा"  बोले नहीं," मैं रोज़ यहाँ पर बैठता हूँ"  फिर अधीर होके पूछा मैंने," क्या कोई आने वाला है"  बोले नहीं रे बाबा," कोई नहीं आने वाल

" ये खिड़कियाँ ये दरवाज़े "

" ये खिड़कियाँ ये दरवाज़े " दोस्त की तरह होते है ये खिड़कियां और ये दरवाज़े ये घर को रौशनी और हवा ही नहीं देते बल्कि आँधी तूफ़ान, और बरसात से भी हिफाज़त करते है ज़िंदगी के कई हसीन पहलू हम अक्सर इन खिड़कियों से झाँका करते है और कुछ अनछुए पहलू भी इन्हीं झरोखों से नज़र आते है ये दरवाज़े बंद कमरे के अंदर न जाने कितने राज़ अपने लबों तक समेट के रखते है हमारे हर राज़ के हमराज़ है ये दरवाजे दर्द को छुपाना हो तो ये अपने आँख और कान बंद कर लेते है और ख़ुशी को जताना हो तो ये अपना दिल खोल देते है हमारी एक एक आदत को जानते है ये दरवाजे फिर भी खामोश अपनी जगह पर हमारे इशारे का इंतज़ार करते है बिस्तर और तकिये पे सूखे आंसुओं को पहचानते है किसी के ख्वाब में उलझे रहने का सबब जानते है ये दरवाजे इनकी सिटकनी और कुण्डी भी खूब अजीब होती है किसी से रूठ कर छुपना हो तो धीरे से सिटकनी लगा दो खुद से रूठ कर छुपना हो तो कुण्डी लगा दो इनके खुलने और बंद होने के अंदाज़ भी किनते अलग होते है न ख़ुशी से खोलो तो झूमती हुई खुल जाती है और कहीं दुःख से खोले तो  इनके खुलने में भी दर्द सुनाई देता है

" फासला "

" फासला " चंद फासले दूर हूँ मंजिल से मैं न जाने क्यों अब बेमायने सा लग रहा है जब चला था बड़ी उमंग थी, जोश था क़दमों में इतनी ताकत थी कि दिन रात चला था मैं आँखों में इतनी चाहत थी कि कई रातों से जगा था मैं हां थका तो नहीं हूँ पर थका सा लग रहा है   एक अरसा गुजर गया है मैंने अपने बाल नहीं सँवारे आइना नहीं देखा गुनगुनाना सा भूल गया हूँ मैं अब दिल नहीं धड़कता वो तस्सवर में बातें याद करके कई नए रिश्ते बन गए है मेरे फिर भी क्यों अपना सा नहीं लग रहा है इस सफर को कहाँ से शुरू किया था कितने मोड़ मुड़े होंगे ठीक से याद तो नहीं बस इतना कि अब वो मोड़ कहीं खो गए है वो रेशमी सा साया कहीं छूट गया है वो मखमली सी ममता ओझल है कहीं अब कोई डांटता नहीं मुझे कानो से पकड़ के अकेला तो नहीं हूँ पर अकेलापन सा लग रहा है बड़ी मुश्किल है इन चार क़दमों के फासले को तैय करना हर कदम पर एक खाई जितना सवाल खड़ा है मुझे कदम भी बढ़ाना है और ये खाई भी भरनी है मगर कैसे? बड़ी मुश्किल है यहाँ मुड़ के देखूं तो करीब कोई नहीं मिलता सामने देखूं तो मंजिल हस रही है मुझपे  क्या समझूँ मैं ? कि कामयाब हो

" बेइंतहां प्यार "

" बेइंतहां प्यार " एक अंजाना डर सा लगा रहता है ये दिल बड़ा बेसबर सा रहता है बड़ी बेचैनी सी  रहती है तुम्हे सोच कर सब कुछ जानकर भी बड़ा बेखबर सा रहता है तेरे आसपास रहती है मेरी मुकम्मल दुनिया तेरे बग़ैर हर एहसास बेअसर सा रहता है कहाँ छुपाऊँ तुझे इस जहाँ की नज़र से तू मेरी आँखों में यूँ नज़र सा रहता है ये जानता भी है के बहुत रुसवाई होगी फिर भी नादान दिल न समझ सा रहता है कितने लाजमी बन गए हो तुम जीने के लिए तेरे पहलू में दिल शामो-सहर सा रहता है बेइंतहा चाहत है इस दिल में आरज़ू इसलिए खुद की नज़र से भी दिल,  डरा डरा सा  रहता है। आरज़ू-ए -अर्जुन 

OH BABY STAND BY ME

listen! oh baby! i gonna get you my heart you know it hasn't two parts look and find there have any place where you don't live? oh baby! you are i just want oh baby, stand by me the spell bound smell in the air the magical feeling spread everywhere a strong hidden light dazzle me alone who is soothing and handle with care yeah! its you, oh baby! stand by me a silk cozy subconscious mind a numerous thoughts being automatically bind what a feeling! giving me immense pleasure i don't bother they say, love is blind oh muse! oh baby! stand by me world call me to indulge in the world but i spiritually in you being merge i don't know how to overcome in all that but this love is solemn, pure and purge my world in you oh baby stand by me   this compound will never be separated some other feelings will never be generated by this way we ll love till the end oh world! our deep love will never be mutilated our psyche is pure, oh baby! stand by me .

ये चाहत तेरी है या मेरी है

( ये चाहत तेरी है या मेरी है ) बहुत अधूरा सा है चाँद फलक पर बड़ी अधूरी सी है चांदनी तारे मुँह छुपा के खड़े है शायद कहीं रात के इस सन्नाटे में कोई सदा भी नहीं फिर एक सरसराहट और कदमों की आहट  सोचता हूँ ये आहट तेरी है या मेरी  बेइरादे ये कदम चल पड़ते है बस यूँ ही रास्तों से कभी गुफ्तुगू होती है तो कभी मुँह फेरे खड़े से नज़र आते है हम दोनों सोचता हूँ ये नाराज़गी तेरी है या मेरी  कितनी जिरह होती है दिल से मेरी कितनी बार धड़कनें रूठ जाती है मुझसे अजीब कशमकश में होती है ये धड़कनें  सोचता हूँ ये बेचैनी तेरी है या मेरी  कोई नाराजगी नहीं है लम्हातों से मेरी  पर कोई आँखों में देख कर बात नहीं करता जाने क्यों सिर झुकाये आँख चुराए खड़े है सब सोचता हूँ ये बेरुखी तेरी है या मेरी  मैं हसता भी हूँ दिल से मैं रोता भी हूँ दिल से फिर भी कुछ बनावटी सा लगता है क्यों मेरी आँखे लबों का साथ नहीं देती और मुस्कान चेहरे का सोचता हूँ ये अजीब सी ख़ुशी तेरी है या मेरी लोग कहते  है चाहत दिल से होती है शायद मुझे लगता है ये दिमाग से होती है शायद मेरी अक्सर दिल से बातें होती है मगर दिमाग कमी पेश

( किस्मत का खेल )

( किस्मत का खेल ) ये किस्मत और इससे जुडी बातें बड़ी अजीब सी होती है और सितारों का खेल भी बड़ा अजीब सा होता है तुम खेलो न खेलो मगर ये तुमसे खेलती है . बड़ी अजीब सी बात है कोई दिलचस्पी ले न ले, इसे बड़ी दिलचस्पी रहती है हममें।  खुद ही इस खेल के कायदे कानून बनाता है खुद ही तोड़ता है .खेल को दिलचस्प बनाने के लिए कुछ खुशियों के पासे हमारी तरफ फेंकता है। हम खुशियों में उलझ जाते है, खो जाते है लगता है किस्मत मेहरबान है हमपर मगर दिल भर जाता है उसका तो दूसरा पासा फेंकता है दुःख का दर्द का. ये सुख दुःख का खेल उसका इसके कायदे क़ानून उसके तो भला वो हार कैसे सकता है हमें रोता बिलखता देख कर शायद इस हेर फेर में उसे बड़ा मज़ा आता है अलग अलग चेहरे के हाव भाव उसे देखने को मिलते होंगे शायद.  किसी बच्चे को रेलगाड़ी के खिलोने के साथ खेलते तो देखा होगा उसका मन होता है तो वो गाड़ी को बार बार पटरी पे चक्कर लगवाता है कभी पटरी खोल के उसे आडा तिरशा जोड़ देता है कभी पटरी के आगे अपनी ऊँगली रख के गाडी को गुजरने से रोकता है ऐसे वो इसलिए करता है तांकि उसकी दिलचस्पी बनी रहे नहीं तो वो जल्दी रेलगाड़ी

( I will be there for you.)

( I will be there for you.) whenever your heart do sound more whenever your breathe frequently broke whenever you find deep dark  whenever you find too far just close your eyes and i ll be there for you   Time can be change by time to time condition can be ordinary or prime when you want to speak but quite just call me in your heart and i ll be there for you nobody can steel that moments nobody can feel that moments we are blessed with strong love our love is divine and all above just feel the love in your soul and i ll be there for you.   don't feel we can be separated don't think we no longer be integrated  you know we are water we are air we are universe, we everywhere you rest assured, i ll with you and i ll be there for you   oh muse! never brim your eyes oh muse! never try to cry i will be shattered to see it i request to you never free it  just keep a smile on your lips and i ll be there for you .   

" ढलता सूरज "

" ढलता सूरज "  राज छत पर बैठा सूरज को ढलता हुआ देख रहा था. सूरज धीरे धीरे अपनी लाली को उस क्षितिज पे बिखेरता कहीं छुप रहा था. राज सूरज की आँखों में आँखें डाल कर शायद यह सोच रहा था के जिंदगी कि इस चकाचौंध रौशनी को एक समय पे मंद होना होता है या अँधेरे में खोना होता है. यह सूरज रोज़ एक नया सवेरा लाता है इसकी पहली किरण अल्हड और कमसिन सी होती है दूसरे पहर में यह प्रचंड जवान सी और तीसरे पहर में यह किसी बूढ़े अनुभवी कि तरह एक सन्देश सुनाता हुआ छुप जाता है . राज का मन अतीत के समंदर में कही गोते लगा रहा था उसकी साँसे थमी हुई सी चल रही थी दिल में उस समंदर कि मौजे बार बार उठ रही थी जिसे वो हर आती जाती सांस में समां के शांत कर रहा था. उसकी आँखे ढलते सूरज पे जड़ थी पलके आँखों पे ठहरी हुई इशारे का इंतज़ार कर रही थी और धड़कन जैसे एक के बाद एक सवाल पे सवाल कर रही थी मगर उसके जवाब शायद दिल के किसी कोने में दफ़न थे या अँधेरे में कहीं छिप गए थे, वो शांत कुर्सी पे बैठा उन सवालों के उलझनो पे उलझा हुआ सूरज की अंतिम लाली को काली होते देख रहा था धीरे धीरे हर लाली रात के अँधेरे से लिपट गयी अब ब

" न रुकना कभी न थकना कभी "

" न रुकना कभी न थकना कभी " इस जहाँ में कौन नहीं, जो परेशान है  है कोई ऐसा, जिसकी राहें आसान है किसी को कम तो किसी को ज्यादा सहना पड़ता है ज़िंदगी जो दे, जैसे रखे, रहना पड़ता है है कदम ज़िंदा तो राहों का निर्माण कर है बाज़ुओं में दम तो मुश्किलों को आसान कर है हौंसला, तो एक लम्बी उड़ान कर है नज़र तो सच की पहचान कर मत सुना ज़िंदगी को मैं थक गया हूँ राह में और बोझिल लगेगी ये  ज़िंदगी इस राह में मत सूखने दे ये पानी अपनी ख्वाबमयी आँखों में सजा तू तमाम सपने जो छुप गए है कहीं रातों में जब रूठ जाए ये चाँद,सितारे और सूरज भी तुमसे मत होना अधीर और एक वादा करना खुद से तू रुक गया तो इन्सां नहीं तू झुक गया तो इन्सां नहीं न थकना कभी न रुकना कभी, कर खुद से बातें पर चुप रह न कभी क्या पता अगले मोड़ पे मंजिल खड़ी हो किसे खबर तेरे क़दमों तले खुशियां पड़ी हों कर नज़र ज़बर और सबर को मज़बूत तुम किसे पता कल तेरे आगे दुनिया झुकी हो . (आरज़ू ) AARZOO-E-ARJUN

" ऐ नदी मुझ प्यासे की तू प्यास बुझा जा कभी "

" ऐ नदी मुझ प्यासे की तू प्यास बुझा जा कभी "  ऐ नदी मुझ प्यासे की तू प्यास बुझा जा कभी सीने में तेरे उत्तर जाऊं मैं जितना भी डूबूँ उभर जाऊं मैं तुझसे मिले, मुझको गिले, और मिले ज़िंदगी ऐ नदी मुझ प्यासे की तू प्यास बुझा जा कभी सुलगे सुलगे से है अरमां मेरे धुआं धुआं से है सपने मेरे तू मेरी जाँ  ज़िंदगानी है तुझसे शुरू हर कहानी है तू ही मेरी, पहली ख़ुशी, तू ही मेरी आखरी  ऐ नदी मुझ प्यासे की तू प्यास बुझा जा कभी तेरी ही बाहों में आकर मुझे मिलता सुकून आशिकी का मुझे तुझमे ही धड़कन समाई है तू ही खुदा तू खुदाई है तू ही नशा, तू कहकशा, तू ही मेरी आशिकी ऐ नदी मुझ प्यासे की तू प्यास बुझा जा कभी ( आरज़ू )  aarzoo-e-arjun

" है शत शत बार प्रणाम तुझे माँ "

" है शत शत  बार प्रणाम तुझे माँ "  जो शब्द था पहला बोला मैंने वो शब्द था पहला बोला "माँ" जो ऊँगली पहली थामी मैंने वो ऊँगली थी पहली तेरी "माँ" तेरे सीने लग कर बड़ा हुआ, तूने अमृत से सींचा हैं माँ है सबर सबूरी दिल में कितनी कितनी ममता आँखों में, तेरे कितने अरमाँ दिन में खोये  कितने सपने रातों में, तेरी थपकी लेकर सो जाता था और खो जाता था बातों में। मैं कुछ भी बन जाऊँ दुनिया में तेरे दूध का क़र्ज़ चुका नहीं सकता हर रात सजा दूँ खुशियों से पर उन रातों को ला नहीं सकता। जो आँखों आँखों में गुज़रे थे वो लम्हें लौटा नहीं सकता। कर देना माफ़ गर खता हो जाए तुम ममता की इक मूरत हो उस जग जननी को देखा नहीं  तुम उस जननी की सूरत हो। है शत शत बार प्रणाम तुझे माँ, तुम इस सृष्टि की पूरक हो है कोटि कोटि प्रणाम तुझे माँ तुम इस सृष्टि की पूरक हो। ( आरज़ू ) aarzoo-e-arjun

" मैं खुद से बातें करता हूँ "

                                               " मैं खुद से बातें करता हूँ " कभी कभार मैं खुद से एक सवाल करता हूँ क्या सच मे वफ़ा कोई चीज़ है जहाँ में, नहीं मेरा मतलब कोई किसी से इतना प्यार कर सकता है कि खुद की एहमियत को खत्म कर दे । बहुत बार सुना है कि किसी ने प्यार में जान दे दी, किसी ने प्यार में जान ले ली, कोई रात की नींद हराम करके बैठा है तो कोई दिन का चैन खोकर। किसी के दिन खुमार में गुजरते है तो किसी के दिन प्यार में रो रो कर मगर ये प्यार, मोह्ब्बत, इश्क़, स्नेह, प्रेम ये है क्या ? किसी को आज तक कुछ नहीं पता। देखा जाए तो इसका हर शब्द आधा अधूरा है पूरी उम्र गुजर जाती है इन शब्दों के मतलब को पूरा करते करते, प्यार का "प" आधा मोह्हबत का "ब" आधा इश्क़ का "श" आधा और प्रेम का "र" आधा।  सब कुछ आधा अधूरा सा ही लगता है फिर भी एक ज़िद है की मोह्ब्बत हो किसी से, यह पागल सा दिल कहता है की दिल दो और दिल लो किसी से।  इतना मतलबी है की अंजाम की परवाह तक नहीं करता। करता  है तो सिर्फ प्यार, मोह्हबत, इश्क़। मैं सोचता हूँ कि कौन वफादार है तुम, वो यां मै

" तसव्वरे आरज़ू "

" तसव्वरे आरज़ू " ये खामोशियाँ बोलने सी लगी है हर आती जाती साँस अब कहने सी लगी है बड़ी हसीं है ये ज़िंदगी गर तुम साथ हो मेरे बड़ी रंगीन है ये ज़िंदगी गर तुम पास हो मेरे महसूस करता हूँ मैं तुझे अपने आसपास आँखे बंद करके जब भी याद करता हु तुझे तो महकने लगती है मेरी हर साँस बेचैन सा हो उठता है ये दिल ज़हन में आते ही तेरा ज़िक्रे ख्याल। इस दिल के अंजुमन में रौशनी बिखर सी जाती है जब भी तेरी झुकी सी नज़र को तस्सव्वर करता हूँ तेरे माथे पे खेलती ये शोखभरी कुछ ज़ुल्फ़ें लहरा के अपनी अदाओं से रिझाती है मुझे तुम तो देखती नहीं हो मुझे उस वक्त मगर ये मेरी बेचैनी का हाले बयान करती होगी ज़रूर और मत महका करो खुशबु बनके इन फिज़ाओ में मेरे सिवा और भी सांस लेते हैं हवाओ में बहुत भटकता हूँ मैं तेरी  खुशबू में दर-बदर जैसे हिरन कस्तूरी की महक में भटकती है मगर मैं  जानता हूँ ये महक तुझसे आकर तुम्ही में कही खत्म हो जाती है शायद यह जीस्त तुझसे लिपट कर रोना चाहती है हसना चाहती है तुझमे खोना चाहती है तेरा बस जन्म जन्म का होना चाहती है प्यासी रूह पर सावन की तरह बरस जाओ मेरे

" अधूरी सी कहानी "

 " अधूरी सी कहानी " चलो फिर से लिखे वो अधूरी सी कहानी जिस में मैं था, तुम थी और वो अधूरी सी जवानी थी कितनी बातें तेरे लबों पे और कितनी हसरतें थी मेरी ज़बानी चलो लिख दें इस बार अपनी हर सांस एक दूजे के लिए चलो लिख दें इस बार तमाम उमृ एक दूजे के लिए और हाथ यू़ थामे के छुडा न सके ये ज़िंदगानी चलो फिर से लिखे वो अधूरी सी कहानी थी तमनना तेरे जुलफों तले खो जाने की थी तमनना तेरे आँचल तले सो जाने की थी तमनना तेरा जनम जनम का हो जानें की तुम चाहते थे के अब ये हाथ छूटे न कभी तुम चाहते थे के अब ये साथ छूटे न कभी चलो करें आसान वो तमाम सी परेशानी चलो फिर से लिखे वो अधूरी सी कहानी याद है वो सुनहरा खाब तेरी सुरमयी आखों का दूर कहीं एक छोटा सा घर हो सुरखाबों का हो रोशन ही रोशन उस घर की हर दीवार और आँगन मे खेलते हो सच्च हुए से ख्वाब फिर रात दिन गुजरें एक दूसरे की बाहों मे चलो खोज लाए फिर से वो हिम्मतें तूफ़ानी चलो फिर से लिखे वो अधूरी सी कहानी देखना इस बार कोई कड़ी कमजोर न रहे देखना इस बार किसी का जो़र न रहे मन ही मन में हर मुद्दे पे बात सी हो दो दिल के दरम्यान न क

" पहचान "

" पहचान " मैं कभी तेरे होटों की मुस्कान हूँ तो कभी तेरी साँसों की पहचान हूँ तेरे दिल में गूँजती घंटियों का शोर तो कभी शाम को मस्जिद की आज़ान हूँ मेरी खुशबू है तेरे हर अलफ़ाज़ में मैं कभी गीता, बाइबल तो कभी कुरान हूँ तू चाहता है जिस पिण्ड को पवित्र करने को मैं वही कुम्भ और अमृत सरोवर का स्नान हूँ मैं  खेलता हूँ इन बाग़ बगीचो और जंगलों में मैं ही तेरे सुनहरे खेत और खलियान हूँ तू सराबोर है जिस आधुनिकता की रौशनी में मैं वही परम्परा और आधुनिक जहान हूँ मैं कभी तेरी धड़कनो का मधम शोर तो कभी होंसलों का बुलंद  तूफ़ान हूँ कर कोशिश जितनी भी मुझे भूलने की मैं कल भी तुझमे शामिल था , मैं आज भी तुझमें विद्धमान हूँ कभी लहराता हूँ तेरे सर पे शान से तो कभी गढ़ा हुआ जीत का निशान हूँ रख हाथ दिल पे और सर उठा के देख मुझे मैं वही तिरंगा और वही  हिन्दोस्तान हूँ मैं तेरी आन हूँ, बान हूँ,  मैं तेरी शान हूँ ए बंदे मैं ही तेरा भारत हिन्दोस्तान हूँ ( आरज़ू )

" मंजिल की ओर "

" मंजिल की ओर " हर लम्हा मैं  छूट रहा हूँ दिल ही दिल कुछ टूट रहा हूँ मैं मंजिल की धुन में साथी तेरी राहों से रूठ रहा हूँ ये वक़्त जो गुजरा पूछ रहा है रह रह कर कुछ सोच रहा है हम  कैसे फिर रह पाएँगे मुड़ मुड़ पीछे देख रहा है अब वक़्त नहीं है इन बातों का क्या मतलब है अब इन रातों का भूल जाना अब दिन और रातें एक महल बनाना है ख्वाबों का न होगा रेशमी साया वहां पर न होगी मखमली काया वहां पर होंगे कांटे और पत्थर कुछ है मुझको अब जाना जहाँ पर मत देना पीछे से आवाज तुम मत करना आंसू की बरसात तुम मैं मंजिल की ओर जा रहा हूँ समझना आखरी मुलाकात तुम एक वादा मैंने तुमसे किया है एक वादा तुमने मुझसे किया है पाकर मंजिल मैं लौट आऊंगा इस ख्वाब के संग जो तुमने दिया है मत डरना मेरी हार को लेकर मैं आऊंगा अपनी जीत को लेकर तब देखूंगा मैं ये आंसू तेरे कैसे होते हैं ख़ुशी को लेकर। .                      ( आरज़ू )

हमनशीं मंजिल "

हमनशीं मंजिल " अभी रहने दो इन बाहों में मुझे हमनशीं बहुत थक गया हूँ मैं सपनो के सफर से नहीं सुकून है वहाँ ऐसी जुल्फों की छाँव सा मैं आजतक इतनी गहरी नींद में सोया नहीं हूँ मेरे हज़ारो सपनो से कहीं अच्छी है ये तेरी आँखे इन्हे देखकर कुछ और देखने को जी नहीं करता यह ठंडी हवा यूँ महसूस नहीं होती है मुझे जैसे तुम्हारी ये सांसे मैं महसूस करता हूँ तुम उँगलियों से बालों को जब सहलाती हो लगता है खुदा ने मेरी कोई दुआ क़ुबूल की हो तेरी ये धड़कने जब मेरे सुर में सुर मिलाती है तो लगता है फ़िज़ा में मौसिकी का दौर लौट आया हो और कभी देखता हूँ तुझे मुस्कुराता हुआ हमनशीं तो दिल ख़ुशी से मुस्कुराता हुआ जशन मनाता है तेरे आँचल से बंधे है मेरी खुशिओं के कारवां बहुत अच्छा लगता है इन्हे हवा में लहराता देख तेरी ऊँगली में पड़े इस अंगूठी की कसम हमनशीं मेरी ज़िंदगी जैसे कैद हो गयी है इसमें कहीं ये सूरज चाँद भरता होगा रौशनी इन चूड़ियों में यू हीं नहीं चमकती रहती है ये दिन- रात और एक आवाज़ जो मैं सुनता हूँ सोते जागते कभी ये सावन की बूंदे नहीं तेरी पायल की आवाज़ है अब तुम ही बता ए हमनशीं

love is immortal

love is immortal hey! i am all alone, hold my hand and lets go elsewhere to tranquility a transcendental place to move on where wind do not make a noise where water do not produce ebb n flow and wings do not have chirps behold! the setting sun is about of set the heat, there is no longer anymore now look the moon rising high on the sky and esctesy of light enamor us, wow! hey you crickets will you keep quite don't you think its a crimson love hey muse! sit here and say can you read my eyes can you hear my heart beats can you listen what is on my lips please say what i want to listen please do what i want to see o muse! i got my all of answer this blissful kiss enacted it at all your soft silky touch healed me up hey honey dissolve me in this moonlight and never ever can be separated i do not want to go back now i know this moment is not everlasting i know we are not immortal this world will arrest us very soon will i see this again hone

( सुलगती आरज़ू )

              ( सुलगती आरज़ू  ) पाके आबो हवा में खुशनुमा थी  सांसे तेरी सुनहरे मुस्तकबिल  तलाशती थी आँखे तेरी थी खुशबू  ही खुशबु  हर कोने  में बिखरी हुई किसी को हसाती गुदगुदाती  थी बातें  तेरी किताबों में समेटे थे कितने रंगीन से सपने हर रोज़ होती थी इनसे मुलाकातें तेरी वो आखरी बार अम्मी ने  माथे को चूमा होगा वो  आखरी बार अब्बु ख़ुशी से झूमा होगा अभी अम्मी तेरे बिखरे कपडे समेटती होगी अभी अब्बा रास्ते में घर लौटते ही होंगे क्या खबर थी उन्हें  बंद हो जाएँगी सांसे तेरी एक खरोच नहीं थी जहाँ, वहाँ आज लगी है गोली दहशत गर्दो ने खेली है आज तुमसे खून की होली कभी अम्मी को कभी अब्बा को पुकारा होगा कभी रहम  भीख चाहती होंगी आँखे तेरी अंधाधुन्द गोलियां अधखिली कलियों  बरसी बिखर गए नाज़ुक वो पत्ते खुली रही निगाहें तरसी देख कर खुदा का दिल भी  ख़ौफ़ खाता होगा चंद लम्हों में जहन्नुम बना दी दुनिया तेरी कुछ रह गया था बाकी तो आँखों में इंतज़ार अब्बा के दिल में चुभते होंगे नश्त्र कई हज़ार अम्मी ने अबतक अपनी पलकें भी न झपकाई कितनी सूनी रह गयी है भाईजान की भी कलाई अभी भी लगता होगा आएगी

SILVER GREY NIGHT AND SKY

SILVER GREY NIGHT AND SKY... The silver grey night and sky amazing twinkling like firefly a strong wind makes me shiver touching wave get me quiver and long awaited my hold sigh oh! thy walks two steps ahead a countless whirl in my head sound less audible than my heart beat thou unmatched beauty that eyes treat and that magical words is to be read thy dark hair floating in the air her blushing face and unknown fear drive me crazy her side wisp moon pouring shine on her glossy lips and a thought that nobody is there i can hear what is unspoken i can feel, going to be broken oh! what happened!thy hold my hand isolated me, now tied in a strand and that healing touch a love of token oh god! love is an earthly boon creatures get it late and soon world so beautiful if one have only love is truth and else crab and feel heaven light, like sun and moon ( aarzoo )

I VE NOT SEEN SUCH A MORNING

I HAVE NOT SEEN SUCH A MORNING i have not seen such a morning, in this life sun rising pour shine on all of us; awakening us for the fight with life, sometime we get cool moments; sometime we get scorching light,             i have not seen such a morning             in this life. time will come and go away; don't be stop and keep on way, strong wind halt you in the rain; rocking journey will give you strain,             i have not seen such a morning             in this life. don't think over what is left behind; take deep breath and set your mind, care and worries don't take to heart; let empowered and let the spark,            i have not seen such a morning            in this life. ( AARZOO )    

NEVER, NEVER CRY IN FRONT OF ME

NEVER, NEVER CRY IN FRONT OF ME never never cry in front of me i can't pay even a single tear always smile in front of me i make you happy oh my dear i feel you just like a divine light nothing else match you on this sphere sometime you shine in the sky sometime you drizzle in my eyes sometime my heart goes elsewhere sometime its along with you fly oh muse! you are my unbreakable dream it will never whither never dry i can smell you into the air i can feel you everywhere sorrow and happiness merge together i don't know what it is oh my dear with open my eyes you r not anywhere but shutting my eyes you sudden appear i want to walk with holding your hands wanna built a palace on splendid land blossom of trees and odor of breeze, shower their love and happiness grand you live in your palace, i in your heart this blissful life go deeper and expand..                                   ( AARZOO )

IN SEARCH

                IN SEARCH i m holding my breath why, i don't know few words are on lips why, i don't know why i am being electrifying what is left to know, i am trying what else is left in mystery i don't know wind touch me i feel something explore everywhere but find nothing who is whistling silently in my ears i am surprise, nobody is by near it seems to be a trap near, everywhere i am tempted by this beautiful sight everything is fresh, everything is bright rock, wood, waterfall all are personified but when i touch it, seems to be disguised either i make sense it happiness or plight the aroma making me lazy on the way under influence of that i want to stay i m listening mesmerize sound of flute that healing my soul, yeah! absolute! and feeling unconscious sleeping anyway a dazzling light pour on me, i wake up! i find me too far and trying to make up i have to reach there before the sun set i have to rush there, with dry with wet, coz someon