Skip to main content

Posts

Showing posts from 2016

Happy new year. Resolution.. Ghazal

आदाब नए साल की ख़्वाहिश चलो रंज दिल  के सभी हम मिटाएँ नए  साल को  खुशनुमा  सा बनाएँ गए  साल  से  सीख   लेकर  चलेंगे नए  साल  में  ठोकरें  हम  न  खाएँ बनें देश की हमc तरक्की के साधन इसे फिर से सोने की चिड़िया बनाएँ निवाले  जुटाने  हैं  सबके लिए  भी चलो  कुछ  तरीके  नए सीख  आएँ खुले  आसमां  के  तले सो  रहें  जो उन्हें  गर्दिशों  से  चलो  हम  बचाएँ हो बेख़ौफ औरत गली में, सड़क पे जो बेख़ौफ आएँ  तो  बेख़ौफ  जाएँ हो बच्चों के हाथों में पुस्तक खिलौने बराबर  से  मौके  सभी  को दिलाएँ मिले यार बनके यूँ  पीरी  से बचपन बुज़ुर्गों  के  कोने   को  ऐसे  सजाएँ कहीं खो न दे हम खुदी को जहाँ में कभी पास खुद को भी अपने बिठाएँ खुदा से दुआ 'आरज़ू ' बस  यही है हमेशा  वो   इंसाँ  को   इंसाँ  बनाएँ आरज़ू -ए-अर्जुन

Khwab hi mera jagata hi mujhe

आदाब हाज़रीन ख्वाब   ही  मेरा जगाता  है  मुझे चलते  रहना, यह बताता है मुझे रास्ते   आसाँ    नहीं  होंगे   यहाँ हौसला  भी  वो  दिलाता है मुझे चार पैसे  जोड़ लो  यह  वाक्या अब हसाता  गुदगुदाता  है  मुझे है  मदारी  आज  पैसा  'आरज़ू ' हर गली में यह  नचाता  है  मुझे आरज़ू

Baat seekhi hai sansaar se..

आदाब बात   सीखी   है   संसार से ज़िंदगी  चलती  है  प्यार  से हाथ पे हाथ  मत रखना तुम बात  बनती  है   इज़हार  से वो नहीं तो  कोई  और  सही क्यों   डरें   यार   इंकार   से गोलियां  दागते  मुझपे  क्यों कर  फ़ना आंख  के  वार से दिल  किसी का न टूटे  कभी ये  गुज़ारिश   है  करतार  से बिक  रहे  थे  सरेआम  दिल एक  ख़रीदा  है   बाज़ार  से गा   रहे    लोग   जो  बेसुरा चल  रहें   हैं  वो  रफ्तार  से कर  यकीं खुद  पे तू 'आरज़ू ' कौन  सच  कह  रहा यार से आरज़ू -ए-अर्जुन

Mere har kafile me bani hai.. Ghazal

आदाब हाज़रीन मेरे हर  काफिले  में  भी बनी  है  दोस्त तन्हाई जहाँ तक चल सका था मैं, मेरे पीछे चली आई बिना मकसद यहाँ पर क्यों जिया सा जा रहा था मैं मैं ज़िंदा था मगर कैसे समझ यह बात ना आई.. हिज़र की  लाश  सेकी है  यहाँ हर रात मैने भी किया तौबा  मुहब्बत से  मुझे तो रास ना आई कभी मंदिर कभी मस्जिद गया था सिर छुपाने मैं निकाला हर जगह मुझको, नही थी हाथ में पाई मिसाल-ए-ताज  देकर तो  मेरी बीवी सताती है मुसीबत आशिक़ों की यह शहंशाह ने है बनवाई हमेशा गौर करना तुम हुई गलती पे हर अपनी बशर इसकी नसीहत में बड़ी  होती  है गहराई रहो तैयार दुनियां में किसी  भी आपदा से तुम नहीं तो  ज़िन्दगी  तेरी  बनेगी  एक  तमाशाई मेरे  ग़म भी  सुनाते हैं,  मुझे  धुन 'आरज़ू' ऐसी बजाते  हों  खुशी के यूं,  मेरे  कानों में शहनाई आरज़ू -ए-अर्जुन

Yun anjuman se bekaraar aaye. Ghazal

आदाब यूँ  अंजुमन  से  बेकरार आये किसी से होकर शिकार आये किसी  ने  ना  दी  हमें  सदायें वहां पे  किसको पुकार आये नशा  मुहब्बत का  है  नशीला बिना  पिये  ही   ख़ुमार  आये नहीं  मिटूँगा  न  कोशिशें  कर हजा़र    देखे,    हजा़र    आये किसी को मिलते गुलों के साये किसी  के हिस्से में  खा़र आये कोई भी भूखा न  सोए  या रब सभी  को  रोटी  दो  चार आये कभी  खुशी   को   रहे  तरसते कभी  तो    ये   बेशुमार   आये मुझे  मिटाने   की   हसरतों  में तुम्हारे    जैसे    हजा़र    आये अभी ये आलम खि़जा़  बना है दुआ   करो   के   बहार   आये खुदा  तो   पूछेगा  आरज़ू   को ये  ज़िन्दगी  क्यों  गुज़ार  आये आरज़ू -ए-अर्जुन

Unhe dekh kar manchale chal rahe hai.

आदाब उन्हें  देख  कर  मंचले  चल  रहे  हैं मुहब्बत के ये सिलसिले चल रहे हैं कदम को ज़रा तुम बढ़ा कर तो देखो लगेगा  तुम्हें  काफ़िले  चल  रहे  हैं अकेला नहीं  आज  दुनिया में तू है तेरे  साथ  में   हौसले  चल  रहे  हैं दिलों के ये छाले दिखा ना किसी को यहाँ पे  सभी  दिलजले  चल रहे हैं दरारें  पड़ी  हैं  सभी   के  दिलों में जमीं पे नहीं  ज़लज़ले  चल  रहे हैं हसी  पे न  जाओ  मेरी ऐ  दिवानों हैं सुलगे  हुए पर खिले चल रहे हैं यकीनन  मिलेंगी  हमें  मंज़िलें भी लिए हौसले  को  चले  चल रहे हैं यकीं आरज़ू अब करे किस बशर का दिलों में अभी करबले चल रहे  हैं आरज़ू -ए-अर्जुन

Hath me jabse khazane aa gaye.. Ghazal

आदाब हाथ   में  जब  से  ख़जाने आ  गए लोग  तो   हमको   मनाने  आ  गए यह  चोबारा  जब  हुआ ऊँचा  मेरा लोग   बस   बातें   बनाने  आ  गए छोड़   देता  तेरी  दुनिया को  खुदा फ़र्ज   मेरे   कुछ   पुराने  आ   गए मैं  कभी  रूठा था  तुमसे  ऐ  खुदा दर  पे  तेरे  सिर  झुकाने  आ  गए हो  गया जब खा़क जल के घर मेरा लोग  तब  घर  को  बचाने आ  गए बाद मुददत  के  हसा था खुल के मैं आज  फिर  वो दिल दुखाने आ गए ज़िंदगी  भर  दर्द  देकर खुश थे तुम मौत   पर  आंसू   बहाने   आ   गए आरज़ू   सुनता  रहा   है  तलखियां आप  भी  हमको   सुनाने  आ  गए आरज़ू -ए-अर्जुन

Har kadam per aaina ye to.... Ghazal

आदाब  ज़िंदगी  का  काम है  दर दर फिराएगी हमें हर कदम पर आईना  ये तो  दिखाएगी हमें गलतियां इंसान  की  होती गुरु  है  ऐ बशर  खेलना  हैं  खेल  कैसे  ये   सिखाएगी  हमें हम लड़े हैं आँधियों के काफिलों से भी यहाँ  यह डरी सी बिजलियाँ  कैसे  डराएगी हमें दिन कटा है बेखुदी में रात  काटी जाग कर दिल्लगी ये फलसफे कितने दिखाएगी हमें आज मुश्किल आ पड़ी तो ढूँढतें माँ बाप को पूछते  खाता  कहाँ  है  माँ   बताएगी  हमें ? भूख ऐसी चीज़ है जिसके लिए ज़िंदा जलें जल रहे हैं  और  कितना ये  जलाएगी  हमें  हम यहाँ पर चल रहें हैं मंज़िलों की चाह में देखना  तुम  वो  गले से  भी  लगाएगी  हमें चाहतें हैं 'आरज़ू ' हम  ज़िंदगी से और क्या  है नवाज़ा हौसला अब  क्या दिलाएगी हमें आरज़ू -ए-अर्जुन

Wagde panio lai jo suneha mera.. Punjabi poem

" Wagede panio" Wagde paanio, lai jo suneha mera, Aakhna us vichde kinaare nu.. Dil rounda ae mera, tainu kar kar yaad. Lubhda aye hussde nazaare nu. Ikko hi dharti te wagde si saare.. Kinne khichiya lakiran kinne mod ti muhaar.. Thandiyan havavan thand paindi c seene, Kinne feriyan si akkha kinne bhed laye c dwaar. Ki karan main ajj lai ke thande thande sahan nu.. Dil marda ae awaaja ajj punj dariyava nu... Wagde paniyo lai jo............. Saron de fullan to vakhre kapaah ne. Vagda ae raavi vakkh, vakhra chinaah ae. Samajh nahi aoundi eh kisda punjab ae Ik hissa ethe , duja oathe judaa ae Puchda hi rehnae ehna silliyan havava nu.. Dil marda ae awaaja ajj punj dariyava nu.. Wagde paanio lai jo suneha mera..... Aarzoo -e-Arjun

Zindgi to ufanti si mazdhar hai..

आदाब ज़िंदगी  तो उफ़नती  सी  मझधार  है हौसले  बिन  ये  कश्ति भी बेकार  है हैं  मुनव्वर  सी   राहें  मेरी हर  जगह दिल मुहब्बत में  जब  से गिरफ्तार है वो  मुहब्बत  की तहरीर लिखते नहीं देखते  जो   बशर  फूल  में  ख़ार  है चार   पैसे   बनी  ज़िंदगी  आज  की इसके  पीछे   पड़ा  आज  संसार  है मुफलिसों को  रूलाता सताता है जो वो  तो  इंसानियत  का  गुनहगार  है यह   मेरी  ज़िंदगी,  यह   मेरी  बंदगी देश    के    वास्ते ,   यार   तैयार   है चाहतों का जहाँ अब  फकत  है कहाँ दासतां ईश्क के ,  अब तो  दो चार हैं काम आया कभी जो  किसी  काम के सोचना 'आरज़ू '  अब  तू  गुलज़ार है आरज़ू -ए-अर्जुन

Bahka hun bahakne de.. Ghazal

आदाब गुलशन में मुहब्बत के फूलों को  महकने दे चाहत की फिज़ाओं में बहका हूँ बहकनें दे रोको  न   मुझे  यारो,  टोको  न  मुझे  यारो पीली  है  ज़रा  मैने,   बहला  हूँ  बहलने  दे महफ़िल  में  यहाँ  मैने,  देखें हैं सभी तन्हा होटों पे हसी फिर भी बिखरी है बिखरनें दे तड़पे हैं  यहाँ  हम भी  उल्फत में सनम मेरे मिलती है अगर राहत अर्जुन को तो मिलने दे आरज़ू -ए-अर्जुन

Mai uljhi zindgi suljha raha hun. Ghazal

आदाब अभी यह वक्त को बतला रहा हूँ मैं उल्झी ज़िंदगी  सुलझा  रहा हूँ मेरी  राहें  नहीं  आसान   हैं  अब यहाँ हर ख़ार को अपना  रहा  हूँ कभी आंधी कभी तूफां को झेला मगर  आगे  मैं  बढ़ता  जा रहा हूँ जहाँ पर गिर रही थी बिजलियाँ भी वहीं  पे आशियां  बुनता  रहा  हूँ यहाँ जो तलखियां  देते थे मुझको उन्हीं  को  आईना  करता  रहा हूँ चलाया  तीर  जिसने  दिल पे मेरे उसी   के   वास्ते  मरता   रहा  हूँ यकीं  कैसे  करूँ यारों  पे अब मैं यहाँ  धोखे  बहुत  खाता  रहा हूँ यहाँ पर धूप में  रोटी की  ख़ातिर सुबह से शाम  जलता जा रहा हूँ मुझे कुंदन अभी  तुम कह रहे हो मैं  बरसों आग  में  तपता रहा हूँ नहीं मैं सीख पाया दिल का सौदा तभी  तो 'आरज़ू ' छलता रहा  हूँ आरज़ू -ए-अर्जुन

Khoobsoorat badi Zindgi hai. Ghazal

आदाब 212 212 212 2 खूबसूरत  बड़ी  ज़िंदगी  है हौसले  के बिना  तीरगी  है है महज़ खेल ही ये सफर भी जीत भी हार  भी ज़िंदगी है अनसुना कर चलें जब ग़मों को तो  लगे  खूब  आवारगी  है हर कोई यार प्यासा यहाँ पे आरज़ू  की  यहाँ तिश्नगी है धूप  के  छांव  के  रास्तों पे मंज़िलें कर रही दिल्लगी है रूख़ से पर्दा हटा दो ज़रा तुम हमसे क्यों आज नाराज़गी है मर  रहे  हैं  सभी  दोलतों पे आग  कैसी यहाँ पर लगी है जान लो राज़ यह ख़ार बनके फूल में क्यों  बड़ी सादगी है भूख  से  मर  रहे लोग देखो ज़िंदगी,  मौत  बनने लगी है 'आरज़ू ' नासमझ सोचता है प्यार  ही आज भी  बंदगी है आरज़ू -ए-अर्जुन

Khuda ki kasam paas aane lagenge.. Ghazal

आदाब अगर साफ़ दिल वो दिखाने लगेंगे खुदा की कसम  पास आने लगेंगे कोई गर कहे ग़म,  नहीं ज़िंदगी में खुशी  से  सदा   मुस्कराने   लगेंगे सफ़ाई न  दो तुम ज़माने को यारो ज़माने को यह सब, फ़साने लगेंगे कोई  भूख  से मर रहा  है कहीं पे कहीं   दावतों  के  ख़जाने   लगेंगे बता दो मुझे किस जगह रब मिलेंगे तुम्हारी तरह  सिर  झुकानें  लगेंगे अगर काम के हो तो सिर पे बिठायें नहीं  तो  नज़र   से   गिराने  लगेंगे तुम्हारी वफा में हो शिद्दत अगर जो तो  आगोश  में  वो भी आने लगेंगे अगर  चार  पैसे   तेरी  जेब  में   हैं सभी  खा़ब  तुमको  सुहाने  लगेंगे ये लोगों को या रब हुआ आज क्या है कहीं पे भी सर  को  झुकाने  लगेंगे बिकी हर खबर आज अख़बार की है हकीकत  को वो क्यों बताने लगेंगे यहाँ आरज़ू  हर खुशी  है  मुनासिब मगर   ढूँढने    को    ज़माने   लगेंगे आरज़ू ए-अर्जुन

Aaine ke samne kyo ghabrate ho

नमस्कार गुणीजनों आईने  के सामने क्यों घबराते हो चेहरे  पे  चेहरा,  क्यों  लगाते  हो जानता  हूँ  आईने,  मैं अपने  एैब देखकर मुझको क्यों  मुस्काते हो आरज़ू

Maze leta hun mai bhi ashiqui ke.. Ghazal

आदाब हाज़रीन, नाज़रीन हुस्न  वाले  कहाँ  होते किसी के कभी  तेरी  कभी  मेरी  गली  के ज़रा सा दिल लगा  के देख लेना रहोगे काम के ना फिर किसी के सभी के सामने पड़ता है  हसना हुनर सीखो अभी तुम आशिक़ी के तुम्हें तकलीफ़  होगी  रौशनी  से सुकूँ  पहलू  में  होगा  तीरगी  के लहू   के   घूँट   भी   पीने   पड़ेगे अभी  दीवानें से हो  मयकशी के तेरी यह शादमानी कुछ पलों की सफ़र में तुम भी हो अब ज़िंदगी के जहाँ   देखो   वहाँ   आलूदगी   है दिवाने  अब  कहाँ  है  सादगी  के मुसलसल  दौर  ऐसा चल रहा  है बनें  हैं  दास  हम  टेकनाॅलजी के चलो  छोड़ो  झमेले यार  सब यह यहाँ  लूटो  मज़े  तुम  ज़िंदगी  के डराता  मैं  नहीं   यह 'आरज़ू '  है मज़े  लेता हूँ   मैं भी  आश़िकी के आरज़ू -ए-अर्जुन

Ashq yun hi bahane se... Ghazal

आदाब अश्क़  यूँ  ही  बहाने से  क्या फायदा दिल खुदी का जलाने से क्या फायदा कर मुहब्बत का इज़हार खुल के ज़रा प्यार दिल में  छुपाने  से क्या फा़यदा तीरगी. ना  मिटे  जब  दिलों  से यहाँ हाथ  यूँ  ही  मिलाने  से  क्या फायदा शेर   तेरे  सभी  आज   उलझे  से  हैं धुन  कोई  गुनगुनाने  से क्या फायदा बात  दिल  की तेरी जब ज़ुबाँ पे नहीं होंट  के   थरथराने  से  क्या  फायदा ज़िंदगी  में   तेरी  जब  सुकूँ  ही नहीं तो  करोड़ों  कमाने  से  क्या  फायदा जब पता ही न हो चल रहें किस तरफ फिर कदम को बढ़ाने से क्या फायदा दो  कदम  साथ  में  चल सके  ना तेरे यार  ऐसा  बनाने   से   क्या  फायदा जिस्म की भूख है  हर तरफ हर जगह गंदगी  यूँ   फैलाने   से  क्या  फायदा आरज़ू  चल  यहाँ  से सफ़र पे निकल पैर  को   डगमगाने  से  क्या  फायदा आरज़ू -ए-अर्जुन

Follow your dreams

"Follow your dreams" If you are determined Nobody can stop you, If you are focused Nobody can drop you, So,  follow your dream Success follows you. Your life is worthless Without  the aim, If you left unknown It would truly a shame, Face the challenges On the field of game . Remember here one thing You come alone, Truth is that here You will go alone, Face alone everything Fire, wind, water, cyclone . Later or sooner here Everybody would die, Achieves only those Who always dare to try, Your extreme efforts Would take you up to high. Let make your style A unique signature, Let Make your deeds To your miniature, Do something such as, Becomes other future Aarzoo E Arjun

कभी धूप मिले कभी छांव.( ग़ज़ल )

ग़ज़ल मात्रा..  212 212 212 212 गर हुई है ख़ता तो सज़ा दीजिए क्या है कीमत हसी की बता दीजिए.. आ गया हूँ ना जाने कहाँ पर अभी ला पता हो गया हूँ पता दीजिए जिंदगी की नसीहत,वफा की अदा ऐ ग़रीबी हमें भी बता दीजिए जो चला ही नहीं वो गिरे क्यों ख़ुदा आईना बुज़दिलों को दिखा दीजिए नफरतों को मिले चाहतों की नज़र रास्तों को हसी से सजा दीजिए हर तरफ फैल जाए खुशी की लहर पेड़ इतने ज़मीं पे उगा दीजिए ना मिले अब किसी को ज़रा सी चुभन फ़ूल ऐसे वतन में खिला दीजिए ज़िंदगी में मिले धूप भी छांव भी आरज़ू को यही बस दुआ दीजिए आरज़ू-ए-अर्जुन

Prayer Oh God Almighty

Prayer Oh God Almighty Oh god almighty! We all are your son, We look not same but we all are only one; Bless us beautiful world  Blissful ecstasy life, We are so thankful  For blissful paradise.  What is impossible  We never know this word, Everything possible  We make it possible; Empower us with virtue And never go astray,  Spreading love everywhere  Until that day we stay. Freedom no leave us free Make us responsible,  Nation must be uphold And be true national; Leave no stone unturned  Which help us progress  Togather we win the world If you stand by us..  Oh God Almighty.........  Aarzoo-e-Arjun 

"बीत गई है रात"

"बीत गई है रात" बीत गई है रात, फिर एक बार फूट पड़ी है रात फिर एक बार कर कंधों को मज़बूत फिर से कूद अग्निकुंड में फिर एक बार बीत गई है रात, फिर एक बार ...... तू मौन खड़ा, कुछ बात नहीं है वो कौन खड़ा कुछ बात नहीं है छोड़ गरज़-परवाह इस दुनिया की जो देखा है कर सपना साकार बीत गई है रात, फिर एक बार ..... तेरे पैर जले तो जलने दो तेरे हाथ ठिठुरें तो ठिठुरने दो गर फूल रही है सांस तो भी तू करता रह निरन्तर प्रहार बीत गई है रात, फिर एक बार ... तू खा ले जो भी गठरी में है और पी ले जो अंजुली में है फिर करदे कूच इन राहों पे हस के या फिर मन को मार बीत गई है रात, फिर एक बार .... आज पैरों तले पत्थर है पड़े कल होंगे यहाँ कालीन बिछे तेरी मेहनत को कोना कोना पुलकित हो पुकारेगी हरबार बीत गई है रात, फिर एक बार .... आरज़ू-ए-अर्जुन 

Guiding Light

Guiding light If you are succeeded,  And 've something achieved. Let others know,  What were the difficulties. Let them know, What were the obstacles, Temptations came in the way; How had you face those,  And consistently keep on way.  Tell them what were the  definition of day and night; What were the test they gave you And how made you bright. Show them what were the new ways And pavement you made; Show them what were the real cost Of that, you had paid.  Don't think, it would be boasting  Oh true host! It would be hosting ; Become a sea light at the sea shore Let the sailor be enlighten and sure Aarzoo-e-Arjun 

उसे मैं भूल जाना चाहता हूँ ( ghazal)

ग़ज़ल  मात्रा : 1222 1222 122  ---------------------------------- उसे मैं भूल जाना चाहता हूँ  मैं फिर से मुस्कुराना चाहता हूँ । गुमीं आवाज़ मेरी ज़िन्दगी में  जिसे मैं फिर से पाना चाहता हूँ । बड़ी वीरान सी यह ज़िन्दगी हैं  इसे गुलशन बनाना चाहता हूँ । मिले हैं घाव मुझको गुलसिताँ से  फ़िज़ा को यह बताना चाहता हूँ । मुसलसल चैन खोया ज़िन्दगी भर  ज़रा सा चैन पाना चाहता हूँ । उमर भर जाग कर काटी हैं रातें  फ़कत खुद को सुलाना चाहता हूँ । कफ़स से हो गया आज़ाद मैं अब  पैरों को फिर फैलाना चाहता हूँ ।  अभी ज़िंदा बचा जो ' आरज़ू ' हैं  मैं तो 'अर्जुन ' पुराना चाहता हूँ  आरज़ू-ए-अर्जुन            

वो बात दिल की दिल में दबा कर चले गए ( ghazal)

ग़ज़ल  मात्रा : 221  2121 1221 212  -------------------------------- वो बात दिल की दिल में दबा कर चले गए  कुछ इस तरह से राज़ छुपाकर चले गए  ख़ामोश से रहे उनके होंठ भी मगर  वो ज़िंदगी का दर्द सुनाकर चले गए  माथे को चूमकर के वो चलते रहे मगर  भीगे लबों से आज जलाकर चले गए दो चार आंसुओं को गिराया ज़रूर था  दिल पर पड़े वो छाले दिखाकर चले गए  फिर लौट कर न आएगी यह रात "आरज़ू" है आखरी यह रात बताकर चले गए  आरज़ू-ए-अर्जुन   

पलकों पे मुझको बिठाया तुम्ही ने

Ghazal ............................................... पलकों पे मुझको बिठाया तुम्ही ने मुझको नज़र से गिराया तुम्ही ने सीने लगाया खिलौना समझ के खिड़की से बाहर बहाया तुम्ही ने शिकवा करूँ क्या यहाँ तीरगी का इस ज़िंदगी को बनाया तुम्ही ने कितने हसे थे तेरी आशिकी में कितना मगर फिर रूलाया तुम्ही ने काफ़िर बनाने से पहले यहाँ पे मुझको खुदा भी बनाया तुम्ही ने झूठी मुहब्बत बनी ज़िंदगी है सचकर सभी को दिखाया तुम्ही ने मिलते रहे जो हमें मुस्कुराये उनको हमीं पे हसाया तुम्ही ने तुमसे शिकायत नहीं आरज़ू को है ज़िंदगी क्या बताया तुम्ही ने आरज़ू-ए-अर्जुन 

नज़म ( हर लम्हा चाहा है, तुमको मैंने )

नज़म  ( हर लम्हा चाहा है, तुमको मैंने ) --------------------------------------------   हर लम्हा चाहा है, तुमको मैंने  हर लम्हा पाया है, तुमको मैंने  लफ्ज़ छू लेते है, जब तेरे नाम को  गुनगुनाने लगें, हम सुबह शाम को  तेरे नाम को.. तेरे नाम को... तेरे नाम को...  बारिश की बूंदें, तेरे लबों पे  जब गिरे तो मुझे, ऐसा लगे  जैसे दहकता, दरिया हो कोई  होटों से सीने,  उतरने लगे  होश उड़ जाते हैं, सामने देखकर  तेरा हो जाता है, दिल मेरा बेख़बर  मेरे हमसफ़र...मेरे हमसफ़र....मेरे हमसफर  जिस पल में तू मिले, वो पल हसीं है जिस पल तू न मिले, कुछ भी नहीं है  प्यासी निगाहों को, मिल जाएँ राहतें  आये नज़र जो तू, तो.... ज़िंदगी है साँस छू लेती है, जब तेरी साँस को  तो सुलग जाता है, भीगा मन रात को  तेरी साँस को, तेरी साँस को, तेरी साँस को....  आरज़ू-ए-अर्जुन         

सच कहा मैंने (GHAZAL)

ग़ज़ल  मात्रा : 1222 1222 1222 1222 ( मुफाईलुन ) ----------------------------------------------- मुझे समझा दिवाना क्यों फ़साना सच कहा मैंने  लगी है आग दिल में क्यों बताना सच कहा मैंने ज़रा सा वक़्त में उल्झा शिकायत बन गयी उनकी  हसीनों की महारत है  रुलाना सच कहा मैंने  लुटाना छीन कर उनमें वही आदत ज़माने की  बड़ा मशहूर है किस्सा पुराना सच कहा मैंने जलाते दीप राहों पे किसी की मौत पे फिर भी  चलेगा मूँद कर आंखें ज़माना सच कहा मैंने  भरी है जेब बच्चों की नशे से आज भी यारो  हमारा फ़र्ज़ बनता है बचाना सच कहा मैंने  अभागे हैं विभाजे हैं यहाँ पर हम लड़ें किससे   वो लेते हैं किताबों का बहाना सच कहा मैंने    अगर खाना है जी भरके तो चक्की पीसनी होगी  नहीं आसान रोटी को कमाना सच कहा मैंने  हमारे बिन नहीं कुछ तुम जताते रोज़ ही मुझको  बताया सच तो भूलेंगे जताना सच कहा मैंने  खड़े चट्टान बन कर हम निगाहों में ज़माने की  बड़ा मुश्किल उन्हें होगा हिलाना सच कहा मैंने  दिवाने 'आरज़ू ' ने तो कही बातें सभी सच ही  अगर झूठी लगे तुमको बताना सच कहा मैंने 

वो आँखों से कुछ नाराज़ दिखे (GHAZAL)

ग़ज़ल  मात्रा : 222 222 222  -------------------------------- वो आँखों से कुछ नाराज़ दिखे तन्हा तन्हा से अंदाज़ दिखे लब पे ख़ामोशी बरहम ज़ुल्फ़ें वो आज हमें कुछ नासाज़ दिखे एक सूखे आँसू को देखा जब उनके चेहरे पे कुछ राज़ दिखे वो टूटा आईना यह कहता था वो अपने अक्स से नाराज़ दिखे जब पूछा था उनकी धड़कन से तो अटके अटके अलफ़ाज़ दिखे उसने की थी कोशिश जीने की पर  हारे  हारे  अन्दाज़  दिखे वो उसदिन मेरे साथ रहे थे   पर क्यों इतने दूर-दराज़ दिखे   जब राज़ खुला सांसों का 'अर्जुन ' तब हम खुद भी बेआवाज़ दिखे आरज़ू-ए-अर्जुन   

बड़ी मुश्किल हुई यारो मुहब्बत को निभाने में ( GHAZAL)

ग़ज़ल  मात्रा : 1222 1222 1222 1222 अर्कान : मुफाईलुन * 8  ------------------------------------------- बड़ी मुश्किल हुई यारो मुहब्बत को निभाने में मिली है चोट इस दिल पे मुरव्वत को निभाने में लबों पे है तबस्सुम और आँखों में शिकायत भी मिली कुछ ख़ास ये चीज़ें मुहब्ब्त को निभाने में मुहबबत में किया वादा मेरी तो जान ले बैठा हुआ हासिल भी क्या यारो शराफ़त को निभाने में यहाँ झुलसे है सहरा में यहाँ मरते जुदा होके सहा क्या-क्या न लोगों ने मुहब्ब्त को निभाने में ज़रा सी बात पे देखो मरे जाते हैं लड़ लड़ के मिलेगा क्या बताओ तुम ख़िलाफ़त को निभाने में मुझे मालूम था यह भी नहीं आएंगें वो मिलने मरे से जा रहे होंगे अदावत को निभाने में चलो अब तोड़ भी दें हम चुनीं दीवार नफ़रत की हुए बर्बाद कितने साल नफ़रत को निभाने में बताये 'आरज़ू' तुमको मुहब्बत से ज़रा बचना रहोगे ज़िंदगी से दूर क़ुरबत को निभाने में आरज़ू-ए-अर्जुन 

वो अब अपने राज़ छुपाते है हमसे

ग़ज़ल  मात्रा :  222  222  222  22  ------------------------------------------ वो अब अपने राज़ छुपाते है हमसे झूठा दिल का हाल बताते हैं हमसे आते जाते मिलते  भी हैं हसते भी मिलने का दस्तूर निभाते है हमसे ऐसी बेरुखी का भी क्या मतलब है पूछा तो मज़बूर बताते हैं हमसे कुछ दिख ना जाये आँखों में उनकी तो हरपल अपनी आँख चुराते हैं  हमसे  फ़ीकी सी लगने लगती हैं  दुनिया तब खुद को जब अंजान बताते हैं  हमसे जान लुटा देते थे हमपर पहले वो जाने अब क्यों जान छुड़ाते हैं हमसे रेज़ा रेज़ा होके चाहा था " अर्जुन " गुज़रे कल की बात सुनाते है हमसे  आरज़ू-ए-अर्जुन 

मेरी ख्वाहिशें

मेरी ख्वाहिशें दरिया के आँचल पे मेरी ख्वाहिशें बस चलती रहती है... चलती रहती है दिन रात मय्यसर सी है मौज़ों में तूफ़ान से तग़ाफ़ुल चलती रहती है...... मगर जैसे ही अपनी पलकें मूँदता हूँ तो वाए-जॉफ सी ओक भर पानी में डूबने लगती हैं सांसे फूलने लगती है जिगर सिकुड़ने लगता है आखिरकार जब सांस उखड़ने वाली होती है तो आँखे खुलती है आनन फानन में उन्हें हाथ देकर मैं फिर से ऊपर खींचता हूँ। .. लम्स-ए-नाज़ुक सबा दिल जिगर को फिर से ताकत से भर देती है ज़र्द हुए चेहरे पे सुर्ख़रू आँखें अपने आब-ओ-शार से ठंडी होती है गर्दिश-ए-तक़दीर को न मानती हुई मेरी ख्वाहिशें फिर से दरिया पे मय्यसर होती है....  बादस्तूर ये सिलसिला जारी है बदस्तूर ये सिलसिला चलता रहेगा जब तक वो अपने मुकाम पर नहीं पहुंचते  दरिया के आँचल पे मेरी ख्वाहिशें बस चलती रहती है... चलती रहती है आरज़ू-ए-अर्जुन         

" फिर से आओगे तुम "

" फिर से आओगे तुम  " फिज़ायें खुशनुमा सी है हवायें रवां रवां सी है बडी सौंधी खुशबू है मिट्टी की.. फूलों के रुखसार पे शबनमी बूंदें भी है, हवा में एक भीनी सी.. खुशबू और दूर तक घाटियों में गूंजती, लहराती तेरी यादों की सदा.. तुम पास तो नहीं मगर साथ हो। यह पेड़, सब्ज़, बेल, बूटे हर जगह.. मय्यसर से हो तुम... ये परिंदे ये चरिंदे हर किसी में आज तेरी धड़कनें महसूस करते है तुम बोलते हो इनमें हर जगह.... ये पत्थर ये चट्टानें आज मुझे देख कर मुस्कुरा रहे हैं..... मुझे वो लम्हें याद आ रहे हैं... जो गुजरे थे इन्हीं की पनाहों में... लब-ए-साकित सराब-ए-हर्फ़ सा अब बस तलाशती रहती है उन अल्फ़ाज़ों को जिनको मेरे कान सुनने के आदी थे जिनको ये लब दोहराने को बेकल थे करिश्मात-ए-तसव्वुर यकीन-ए-कामिल है कि तुम फिर से आओगे ... तुम..... फिर से आओगे... हाँ। ... फिर से आओगे फ़लक से लौटकर। आरज़ू-ए-अर्जुन               

' आरज़ू ' बाज़ार में बिकता नहीं ( GHAZAL)

ग़ज़ल  मात्रा : 2122  2122  212 ( फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन ) ------------------------------------------------------------------- आशियाना प्यार का बसता नहीं  प्यार करके चैन अब मिलता नहीं  इश्क़ करना पाप है किसने कहा  कौन है जो पाप यह करता नहीं  बीत जायेगी घडी फिर से यहाँ  वक़्त चलता ही रहे रुकता नहीं  कैफ़ियत है देश की ये आज क्या  आदमी को आदमी मिलता नहीं  तुम सिखाओ और को अपना सबक  आदमी से आदमी जलता नहीं     मान लेते है वफ़ा ज़िंदा यहाँ  पर निभाने को बशर मिलता नहीं  चार कन्धों पे जनाजा लो चला  कारवाँ सच में यहाँ रुकता नहीं  ख़्वाबगाह ऐसी बनायी उसने क्यों  चाह कर भी आदमी उठता नहीं  जान पायें है महज़ इस बात को  झूठ के बाज़ार सच बिकता नहीं  तुम लगाओ और की बोली यहाँ  ' आरज़ू ' बाज़ार में बिकता नहीं  आरज़ू-ए-अर्जुन 

ਖੁਸ਼ਕ ਜਿਹੀਆਂ ਰਾਤਾਂ ਸਿੱਲੀਆਂ ਕਿਓਂ ਨੇਂ

ਗਮਜ਼ਦਾ ਹੈ ' ਆਰਜ਼ੂ '  ਖੁਸ਼ਕ ਜਿਹੀਆਂ ਰਾਤਾਂ ਸਿੱਲੀਆਂ ਕਿਓਂ ਨੇਂ ਤੇ ਪਥਰੀਲੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਗਿੱਲੀਆਂ ਕਿਓਂ ਨੇ ਕਿਸ ਰਾਤ ਨੇ ਖੋਹ ਲਏ ਉਹ ਸੁਪਨੇ ਮੇਰੇ ਤੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਸਦਰਾਂ ਹਿੱਲੀਆਂ ਕਿਓਂ ਨੇ ਨਹੀਂ ਪੁੱਛਣਾ ਇਹ ਸਵਾਲ ਵਕ਼ਤ ਕੋਲੋਂ ਮੈਂ ਬੇਸਬਬ ਬੇਵਫ਼ਾਈਆਂ ਮਿਲੀਆਂ ਕਿਓਂ ਨੇ ਪਰ ਇਕ ਸਵਾਲ ਹੈ ਬਸ ਰੱਬ ਤੋਂ ਮੇਰਾ ਮਸੀਹੇ ਦੀ ਹਥੇਲੀਆਂ ਚੇ ਕਿੱਲੀਆਂ ਕਿਓਂ ਨੇ ਜੇ ਮਖ਼ਮਲੀ ਇਹਸਾਸ ਦਿਲ ਦੀ ਵਿਹੀ ਦਾ ਤਾਂ ਜੀਸਤ ਦੀਆਂ ਜਿਲਦਾਂ ਛਿੱਲੀਆਂ ਕਿਓਂ ਨੇ ਇਹ ਮਜ਼ਬੂਤ ਇਮਾਰਤ ਪੁੱਛਦੀ ਏ ਮੈਨੂੰ ਅੱਜ ਨੀਹਾਂ ਦੀਆਂ ਇੱਟਾਂ ਢਿੱਲੀਆਂ ਕਿਓਂ ਨੇ ਬੇਵਫਾ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਤੋਂ ਗਮਜ਼ਦਾ ਹੈ ' ਆਰਜ਼ੂ ' ਪੂੰਜ ਅੱਥਰੂ ਇਹ ਅੱਖਾਂ ਗਿੱਲੀਆਂ ਕਿਓਂ ਨੇ ਆਰਜ਼ੂ-ਏ-ਅਰਜੁਨ   

मुझे दिल में अपने बसा कर तो देखो

ग़ज़ल मात्रा : 122 122 122 122 ( फऊलुन ) -------------------------------------------- मुझे दिल में अपने बसा कर तो देखो मेरे दिल से दिल को लगा कर तो देखो सफर ज़िंदगी का सुहाना लगेगा मेरे साथ राहों पे आकर तो देखो ये कांटें तुम्हें फूल जैसे लगेंगें ज़रा मेरे पीछे ही आकर तो देखो तुम्हारे ख्यालों की दुनियाँ बदल दूँ निगाहों में अपनी बसाकर तो देखो ग़मों से जो अबतक बहायें हैं आंसू ख़ुशी के भी मोती गिराकर तो देखो खुदा की क़सम मैं भुला दूँ जहाँ को मुझे तुम गले से लगाकर तो देखो तुम्हारे लिए जान दे दूँ ख़ुशी से मुझे बात दिल की बता कर तो देखो नहीं बेवफ़ा मैं बता दूँगा तुमको मुझे तुम कभी आज़माकर तो देखो है मैंने मुहब्ब्त वफ़ा से निभाई मेरे साथ तुम भी निभाकर तो देखो तुम्हें आरज़ू सा न दूजा मिलेगा मेरे साथ दुनियां बसाकर तो देखो आरज़ू-ए-अर्जुन 

हमें याद करके भुलाया उसी ने (ग़ज़ल )

ग़ज़ल  मात्रा : 122  122 122 122  ( फऊलुन  ) ----------------------------------------------------- हमें दिल से अपने भुलाया उसी ने हमारे खतों को जलाया उसी ने हमारे लबों पे हसी को खिलाकर है ख़ामोश रहना सिखाया उसी ने नहीं जी सकेंगें हमारे बिना वो मगर सच ये करके दिखाया उसी ने समझते रहे थे उसे ढाल अपनी मगर तीर मुझपे चलाया उसी ने अभी ख़ाक सा हूँ उसी की बदौलत खुदा भी हमीं को बनाया उसी ने किये शौंक पूरे अमीरी से मेरे हमीं को भिखारी बनाया उसी ने अभी चार पैसे जो आये तो देखो हमें फिर से मिलने बुलाया उसी ने है उससे शिकायत नहीं आरज़ू अब हमें सच को जीना सिखाया उसी ने आरज़ू-ए-अर्जुन 

" बस ऐसे ही चलते चलो "

" बस ऐसे ही चलते चलो " बारिश की बूँदों से बचकर  इस पेड़ के नीचे रुके हो....   तुम्हें क्या लगता है ऐसा करके  तुम बूँदों से बच जाओगे,  ऊपर देखो !  पीपल के पत्तों से छन कर ये बूँदें  तेरे चेहरे पे टिप टिप करती  तेरे होटों तक आ गईं हैं।   मत पोंछो रुमाल से इसे,  महसूस तो करो इनकी ठंडक को  तुम्हारी तरह ये भी बहुत प्यासी हैं।   याद है...   आख़िरी बार कब मिले थे हम।  हाँ... दिसंबर में...   क्रिसमस का आखिरी दिन था वो  और आज पूरे छे महीने बाद मैं आई हूँ।  मुझे अपने गले से लगा लो  मुझे अपने रोम रोम में समा लो  तू सांवरा है तो मैं सावन हूँ  तू बाँवरा है तो मैं यौवन हूँ  यह काम की मज़बूरी  मैं आज नहीं सुनूँगी।  मैं आज तेरे पास हूँ तेरे साथ हूँ  कल क्या पता तू कहाँ ..  मैं कहाँ।   चलो न... मेरे साथ कुछ दूर तक  यूँ ही भीगते हुए.. पैदल,  चलो ना...यूँ ही हाथों में हाथ डाले  सर से पाँव तक भीगे हुए,   दूर तक....  चलते चलो न....  चलते चलो न.... बस चलते चलो न......  आरज़ू-ए-अर्जुन      

1984 के दंगे ( अपनों ने फूकी थी अपनों की लाशें )

ग़ज़ल  मात्रा : 222  222  222  22 -------------------------------------------------- आँखों से देखी थी शोलों की रातें  अपनों ने फूकी थी अपनों की लाशें  गैरों की चुनरी की ख़ातिर वो मैंने  डाली थी ख़तरे में अपनों की साँसें  ज़ोरों से धड़के थे लोगों के सीने  मुर्दा जब देखी थी अपनों की लाशें  बरसों तक छाया था गहरा अँधेरा  सहमी सी रहती थी अपनों की आंखें  एक एक के घर को तब फूका था उसने नारों से गूँजी थी दंगों की रातें गुजरा था काला सा अरसा जो मेरा  कसती थी हर दिन वो ख़तरों की फाँसें  शोलों में ख़ाबों को झोंका था मैंने  करता मैं कैसे फिर सपनों की बातें  वो नन्ही सी जान बचाने की ख़ातिर  बेटे की काटी थी केसों की गाँठें  दहशत सी नाची थी उस दिन दिल्ली में  मौत बनी थी उस दिन बूढ़ों की खांसें ख़ामोशी को ओढ़े कुर्सी पे बैठे  सोचा था सिर्फ उसने वोटों की गांठें  कैसे मैं भूलूंगा मंज़र वो यारो  अपनों के हाथों में अपनों की लाशें  'अर्जुन ' क्या रोया मेरी बातें सुनकर   मैंने  रुलाईं  हैं  ग़ज़लों की आँखें   आरज़ू-ए-अर्जुन   

हमारे दिल से पूछोगे हमारा हाल कैसा है ( GHAZAL )

ग़ज़ल  मात्रा : 1222 1222 1222 1222 ( मुफाईलुन ) --------------------------------------------------- हमारे दिल से पूछोगे हमारा हाल कैसा है  बतायेगा तुम्हें यारो तुम्हारे हाल जैसा है  सभी उलझे मुहब्बत में सभी बर्बाद से लगते  कभी लगता ये मसला भी खुदा की चाल जैसा है  रहे क्यों हुस्न बेपर्दा रकीब-ऐ-अंजुमन में भी  सितमगर सोच मत ऐसा गलीज़-ऐ-ख़्याल जैसा है   अगर उल्फ़त किसी से है ज़रा ये सोच के चलना  यहाँ पे इश्क़ तो प्यारे शहीद-ऐ-जाल जैसा है   लबों से आह ना निकले शिकायत हो हसीनों से  सभी मरते हैं घुट घुट के दिलों का हाल ऐसा है  वफ़ा कर ली अगर तुमने बताना मत उसे यारो   बिताओगे उमर मर के वफ़ा का हाल ऐसा है  रहो माँ-बाप संग भी तुम जरूरत है उन्हें तेरी  ज़हन मुज़तर बताता है बुढ़ापा काल जैसा है   मिराज-ऐ-आरज़ू यारो भटकता है विरानों में मेरा अन्जाम भी यारो हिरण के हाल जैसा है  आरज़ू-ऐ-अर्जुन   

आँख मेरी अभी भरी सी है। ( ghazal )

ग़ज़ल  मात्रा :     2122          1212          22 अर्कान : फ़ाइलातुन , मुफाईलुन, फेलुन  ------------------------------------------------ आँख मेरी अभी भरी सी है। ज़िंदगी में तेरी कमी सी है ।। जल रही थी वफ़ा शमां बनके । रात से वो बुझी बुझी सी है  ।। याद आती नहीं तेरी यूँ ही । हर घडी याद मयकशी सी है ।। चाहतों को तबाह कर दो तुम । आशिक़ी गन्दगी बनी सी है ।। मर रहे हैं यहाँ सभी या रब । ज़िन्दगी मौत से बुरी सी है ।। ख़ौफ़ खाता नहीं यहाँ कोई । हर तरफ़ आग लग चुकी सी है ।।   लाश ढोते सभी यहाँ फिर भी । हर घडी ज़िन्दगी नयी सी है ।। ' आरज़ू ' तो नहीं  मरेगा अब । साँस  मेरी  ये  शायरी  सी  है ।। आरज़ू-ए-अर्जुन 

कितनी शामें गुजरी थी तेरी यादों में ( ghazal )

ग़ज़ल  मात्रा : 222  222  222  222 काफ़िया : तेरी यादों  ( ओं  स्वर ), रदीफ़  ( में ) कितनी  शामें गुजरी थी तेरी यादों में कितना पागल था ये दिल तेरी बातों में हर लम्हा चाहा तुझको तेरी पूजा की मिलती थी तेरी खुशबू मेरी सांसों में तुझको देखा हरसू मैंने दिन में भी तुमही होते थे बस अन्धेरी रातों में तुमने देखा ही कब था मन की नज़रों से कितनी चाहत होती थी मेरी आँखों में नीलाम हुये तो जाना बेदर्दी तुझको बेमतलब थे लुटते हम तेरी बातों में रोज़ नहीं तो एकबार कहा होता 'अर्जुन' हस के जान लुटा देते तेरी बाहों में आरज़ू-ए-अर्जुन    

ग़ज़ल (फिर अधूरी आरज़ू रह गई है )

ग़ज़ल  मात्रा     ( 2122  2122  122 )  फिर अधूरी आरज़ू रह गई है  एक प्यासी जुस्तजुु रह गई है  छोड़ आये कारवां फिर वहीँ पे  याद सारी फिर वहीं रह गई है  वो कसक दिल में दबाने से पहले  बेवफा धड़कन किसे कह गई है  कौन खेला है दिलों का खिलौना  बात यह दिल की अभी रह गई है  आज मुड़के देखते हैं  खुदी को  ज़िंदगी जाने कहाँ बह गई है  भूल जाओ तुम अभी आरज़ू को  फिर न कहना कुछ कमीं रह गई है  आरज़ू-ए-अर्जुन   

फिर भी मुस्कुरा रही है ज़िंदगी (ग़ज़ल )

ग़ज़ल  हर पल पहेली बुझा रही है ज़िंदगी रेत सी फिसलती जा रही है ज़िंदगी कोई वज़ह नहीं है मुस्कुराने की फिर भी मुस्कुरा रही है ज़िंदगी हर साँस से कहती है ज़िंदा हो तुम खुद से लड़ना सिखा रही है ज़िंदगी मैं रूठ भी गया तो कहाँ जाऊँगा मेरे पीछे पीछे आ रही है ज़िंदगी नज़रें चुराने से हल नहीं निकलते यही बात मुझको बता रही है ज़िंदगी क्यों छोड़ दिया चलना एक ठोकर खाके अपाहिजों को भी चलना सिखा रही है ज़िंदगी ये रणभूमि है गिरके उठने वालों की चुनौती दे के समझा रही है  ज़िंदगी  अरे मरने से पहले क्यों मरते हो यारो हर हाल में जीना सिखा रही है ज़िंदगी अभी ज़िंदा हो तो साबित कर दो आरज़ू क्यों तुमपे इतना इतरा रही है ज़िंदगी आरज़ू-ए-अर्जुन 

हमें मंजिल बुलाती है

 हमें मंजिल बुलाती है चलो फिर से चलें यारो  हमें राहें बुलाती है अभी करना है कुछ हासिल  हमें मंजिल बुलाती है                                        अभी मंजिल है कितनी दूर                                        चलता चल मुसाफिर तू                                        न जानें फ़लसफ़े कैसे                                        हमें राहें दिखाती है  कभी आँखें न झपकाना  निगाहें हों निशाने पर  ज़रा सी भूल आँखों की  हमें कितना रुलाती है                                        न डरना रात से यारो                                        न दिन की ही फिकर करना                                        कदम चलते नहीं ऐसे                                        हमें हिम्मत चलाती है कभी रुखी मिलेगी तो  कभी वो भी मना होगा  न रुकना सोच के यारो हमें रोटी सताती है                                       बशर मरने से पहले तुम                                       कहीं ऐसे न मर जाना                                       लहू का गर्म कतरा भी                           

चलो फिर से चलें यारो हमें राहें बुलाती है ( GHAZAL )

ग़ज़ल  मात्रा  ( 1222 1222 1222 1222 ) चलो फिर से चलें यारो हमें राहें बुलाती है अभी करना है कुछ हासिल हमें मंजिल बुलाती है  अभी मंजिल है कितनी दूर चलता चल मुसाफिर तू  न जानें फ़लसफ़े कैसे हमें राहें दिखाती है  कभी आँखें न झपकाना निगाहें हों निशाने पर  ज़रा सी भूल आँखों की हमें कितना रुलाती है  न डरना रात से यारो न दिन की ही फिकर करना  कदम चलते नहीं ऐसे हमें हिम्मत चलाती है कभी रुखी मिलेगी तो कभी वो भी मना होगा  न रुकना सोच के यारो हमें रोटी सताती है  बशर मरने से पहले तुम कहीं ऐसे न मर जाना  लहू का गर्म कतरा भी हमें ज़िंदा बताती है  कई वादे किये तुमने कई रिश्ते निभाने हैं  न छूटे फ़र्ज़ कोई तो ज़िंदगी मुस्कुराती है  उसे कह दो वफ़ा है तो मेरा ऐतबार कर लेना  मैं आऊंगा तुझे मिलने अभी उलझन सताती है  न जाने कौन सा लम्हा हमारा आखरी होगा  हमारी ज़िंदगी हमको यहाँ लड़ना सिखाती है  दिवाने आरज़ू को तो नशा मंजिल को पाने का  मेरी हर साँस को यारो मेरी मंजिल बुलाती है  आरज़ू-ए-अर्जुन   

“Dream Chaser” ( poem)

“ Dream Chaser ” My eyes are too sleepless Not because of dreamless; In fact they see only a dream That never let them sleep. Of course, they are restless Yes, they are blink less No! They are not mournful But they are rather swornful. Night n day they keep on way With world consistently fray; Temptation can’t tempt amidst And never frighten from twist. The commitment shakes them The destination awakes them; The distance can’t be calculated Of course difficult to be estimated.  But hard works never go in vain The Success only achieves in pain If the dreams are set on far n high Will Chase them, my dream chaser eyes. Aarzoo –e- Arjun

ग़ज़ल (मुझे होश अपनी न तेरी ख़बर है )

ग़ज़ल  मात्रा ( 122 122 122 122 ) मुझे होश अपनी न तेरी ख़बर है बड़ी मयकदा सी ये तेरी नज़र है कहाँ खो गए हैं यहाँ लोग सारे न जाने ये कैसी अँधेरी डगर है सभी वार तेरे निशाने पे लगते जरा बचके यारो ये तिरछी नज़र है कहाँ चाहतें थी हमारी  मुनव्वर अभी रौशनी में हमारी सहर है कई मिल गये है मुझे आज लेकिन मेरी ज़िंदगी में हाँ तेरी कसर है सभी राह तुझमें है आके समाते सभी मंजिलों को जो तेरी ख़बर है कभी होश आया नहीं आरज़ू को  रही ज़िंदगी जो ये मेरी ज़हर है आरज़ू-ए-अर्जुन 

ग़ज़ल ( बहुत झूठ लिखते हैं वो हर ख़बर में )

ग़ज़ल  मात्रा 122 122 122 122  वही रात ठहरी हुई है नज़र में वही आग सुलगी हुई है जिगर में बहुत कोशिशें की सभी को पुकारा नहीं आज कोई है दिल की डगर में किसे हाल दिल का सुनाऊँ यहाँ पे सभी अजनबी हो गये  हैं शहर में मुझे राह मिलती नहीं आज कोई कहीं खो न जाऊँ इस तन्हा सफ़र में मेरी हर तमन्ना बिखर सी गई है नई आस होती है हर एक पहर में मेरी आँख रोती नहीं रात में भी मगर नम सी रहने लगी है सहर में मुझे याद है होश खोने से पहले ज़रा सी कमीं थी तुम्हारे ज़हर में कहाँ मौत ने आरज़ू को है मारा बहुत झूठ लिखते हैं वो हर ख़बर में आरज़ू-ए-अर्जुन    

हमें आज भी याद करते तो होंगें। ( ghazal )

ग़ज़ल  मात्रा :122 122 122 122 रदीफ़ : तो होंगे काफ़िया : ( करते, "ऐ" स्वर )  --------------------------------------------------------------- हमें आज भी याद करते तो होंगें। निगाहों से आँसू बरसते तो होंगें।। कभी चाहतों को छुपाया नहीं था। अभी दिल हि दिल में सुलगते तो होंगे।। वही   आइनें  हैं  वही  सूरतें  भी। कई सूरतों  को बदलते  वो होंगें।। लबों से नमीं भी  खफ़ा हो गई  है। ज़रा सी हसी को तरसते वो होंगें।। किसी रोज़ फिर से मुलाक़ात होगी। हमारे लिये आह भरते वो होंगें।। हमें  बारहा  मार   देने  से  पहले। कई बार शोलों में जलते वो होंगें।। बड़ी  बेरुख़ी  से  हमें  छोड़  आये। हमारे लिये अब मचलते वो होंगें।। अरे 'आरज़ू ' तो  दिवाना तुम्हारा। तुम्हारे लिये हम भी मरते तो होंगें।। आरज़ू-ए-अर्जुन Note : इसमें (तो) (हि )और (भी)  तीनों  लघु स्वर हैं इसलिए उनको मात्रा (1 ) में गिना गया है  

चलो फिर से सफ़र करते हैं

चलो फिर से सफर करते हैं चलो फिर से सफ़र करते हैं नई मंजिल को नज़र करते हैं सजाते हैं फिर कुछ नई राहें नए काफ़िले में बसर करते हैं                    चलो फिर से सफ़र करते हैं। आँखों पर कोई ग़ुबार न हो देखना कहीं तुझे ख़ुमार न हो यह मय से मय्यसर होकर दिल पे गहरा असर करते हैं                    चलो फिर से सफ़र करते हैं। इस बार ऊर्जा बचा के रखना अपनी कमीयां छुपा के रखना दूर रहना तुम ऐसे बशर से जो धूप में  शज़र करते हैं                   चलो फिर से सफ़र करते हैं। देखना इस बार वक़्त न गुज़रे राहों पे तेरा रक्त न गुज़रे आखरी पहर गुज़रने से पहले अपनी पूरी कसर करते है                   चलो फिर से सफ़र करते हैं। उतार के जीस्त झंडा फ़हरा दो जीत के निशान को लहरा दो जहाँ पे हो गर्व सभी को कोई ऐसी रहगुज़र करते हैं                  चलो फिर से सफ़र करते हैं।   आरज़ू-ए-अर्जुन 

हमीं बस थे कहीं भी वो नहीं था ( ghazal )

ग़ज़ल  बहर -  1222        1222        122 बहर - मुफाईलुन, मुफाईलुन, फऊलुंन काफ़िया ( 'ओ' स्वर ) रदीफ़ ( नहीं था ) ------------------------------------------------- हमीं बस थे कहीं भी वो नहीं था मेरी चाहत के काबिल वो नहीं था जिसे सारी उमर कहते थे अपना रहे  हम ग़ैर अपना वो नहीं था किसे कहते यहाँ पर दर्द दिल का किसी पे अब यकीं दिल को नहीं था रहे बिखरे यहाँ पर हम फ़िसल के कभी ख़ुद को समेटा जो नहीं था  कभी तोडा कभी उसने बनाया खिलौना पास खेलने को नहीं था बुरा कहते नहीं हम ' आरज़ू ' को बुरे थे हम बुरा पर वो नहीं था आरज़ू-ए-अर्जुन 

ग़ज़ल (कहीं ऐसा न हो जाये वसल के दिन क़यामत हो )

ग़ज़ल  बहर : 1222 1222 1222 1222 ( मुफाईलुन * 4 )  काफ़िया ( अत आज़ाद  स्वर ) रदीफ़ :- हो  कहीं ऐसा न हो जाये वसल के दिन क़यामत हो ख़ुदारा माफ़ करना तुम मेरा यारा सलामत हो तेरी चाहत मेरी हसरत यही आँखों में बस जाये अगर दिलबर ज़रा सी यह तेरी नज़रें इनायत हो वफ़ा में काश ऐसा हो गिला मुझसे ख़ुदा को हो बना के बुत तेरी पूजा अदा करना रिवायत हो अभी दिल ने नहीं सीखा इश्क़ की आग में जलना नहीं चाहे मेरा यह दिल कहीं कोई अदावत हो अगर आये कहीं वो दिन मेरा तुमसे जुदाई का ख़ुदा हाफ़िज़ कहूँ तुझको ख़ुदा इतनी रियायत हो फ़ना होना यही किस्मत जहाँ में 'आरज़ू ' है तो तेरी बाँहों में मरना ही सितमगर एक हिदायत हो आरज़ू-ए-अर्जुन

KHUDA KHAIR KARE

"अल्लाह ख़ैर करे" आज आदमी की कीमत कपड़ों से लगाई जाती है और उसकी औक़ात उसके जूतों से बताई जाती है कोई फ़र्क नहीं पड़ता किस काबिल होगा नेता वो हर दागी पैसे वाले को आज कुर्सी थमाई जाती है अब मुर्दा लोगों का भी यहाँ ऑप्रेशन हो जाता है ग़रीब की मज़बूरी से बस रक़म कमाई जाती है असल  में लुटती है आबरू लड़की की कचहरी में चंद पैसों की ख़ातिर ईज्जत लूटी-लुटाई जाती है ख़्वाब सा लगने लगा है अब बच्चों की पढ़ाई यार रिश्वत खोरी को अब यहाँ डोनेशन बताई जाती है किताबों की बातें काला झूठ डेरों की बातें सच्ची हैं भगवान् के पर्याय को यहाँ गुरु गुरु पढ़ाई जाती है वक़्त कहाँ  है अब हमें, अपनों को  समझाने का अब तो मर्ज़ी आपकी S M S पर दिखाई जाती है अल्लाह ख़ैर करे दीवाने आरज़ू जैसे बन्दों पे उनके तीखें अल्फ़ाज़ों से बस आग लगाई जाती है AARZOO-E-ARJUN    

स्कूल की याद "

"स्कूल की याद " याद आते है वो पल हमें जब हम ਇਕਠੇ ਪੜਿਆ करते थे तेरे पीछे पीछे ਸਕੂਲੇ शायद हम जल्दी ਵੜਿਆ करते थे तुम गोल गप्पों पे मरती थी हम तुझपे ਮਰਿਆ करते थे प्रार्थना वक़्त बेचैन सी नज़रें हम तुझपे ਧਰਿਆ करते थे क्यों देखती थी उस ਘੁੱਗੂ ਜਿਹੇ को हम बहुत ਸੜਿਆ करते थे तुम जाती थी घर पैदल अपने तेरा ਪਿਛਾ ਕਰਿਆ करते थे तेरा गंजा बापू पकड़ के हमको हमारे ਕੰਨਾ ਤੇ ਜੜਿਆ करते थे बड़ी बोरिंग होती थी SUNDAY हम ਮਖੀਆਂ ਫੜਿਆ करते थे तुम गाडी पे आती शूं करके हम स्टैंड पे ਖੜਿਆ करते थे  तेरे घर की ਗੇੜੀ लगाने को कई बहाने ਘੜਿਆ करते थे तेरी ख़ातिर दोस्तों के साथ हर रोज़ ਲੜਿਆ करते थे जब पता चला तेरे चक्क्रों का अपने  ਬੋਦੇ ਪਟਿਯਾ करते थे तू पढ़ लिख ਵਿਆਹ ਕਰ ਬਚੇ ਜੰਮ लए हम  ਮਾਮੂ ਬਣਿਆ करते थे याद आते है वो पल हमें जब हम ਇਕਠੇ ਪੜਿਆ करते थे आरज़ू-ए-अर्जुन          

गीत ( तुम ख्यालों में भी जब )

गीत ( तुम ख्यालों में भी जब ) तुम ख्यालों में भी जब छू लेते हो और भी खुशनसीब हो जाते है रोक लो आँखों को गुस्ताखियाँ करने लगी यह मनचली रोक लो होटों को वह दास्ताँ कहने लगी जो अनकही चुपके से आ, कहदो ज़रा, दिल में तेरे, क्या है बता तुम ख्यालों ---------------------------------- चांदनी रातों में यह चाँद सा चेहरा तेरा पागल करे संगेमरमर सा ये तेरा बदन मुझको सनम कातिल लगे किसने कहा, कातिल नहीं, तेरी सनम, हर इक अदा तुम ख्यालों ----------------------------------- तुम ख्यालों में भी जब छू लेते हो और भी खुशनसीब हो जाते है आरज़ू-ए-अर्जुन  

जुनून

     "जुनून " चलो कहीं से भी यारो सफर की शुरुआत तो हो राहें तो मिल ही जाएँगी पहले मंजिल ख़ास तो हो देख लेंगें आँधियों को भी राह में एक मुलाक़ात तो हो हार जाएगी ये हार एक दिन हममें जीतने वाली बात तो हो कल का सूरज तेरा होगा पहले उलझती एक रात तो हो मंजिल मिले सभी को आरज़ू वो ज़ज़्बे जुनून के हालात तो हो आरज़ू-ए-अर्जुन 

ग़ज़ल (ज़िंदगी फर्ज़ और ख्वाब में बट गई है )

ग़ज़ल  ज़िंदगी फर्ज़ और ख्वाब में बट गई है थोड़ी सी बाकी है, बाकी कट गई है मैं निकलता तो हूँ रोज़ी की तालाश में मेरी कोशिशें दिन रात में सिमट गई है दो और दो अब होती हैं चार रोटीयां यह पंक्ति मुझे अब ज़ुबानी रट गई है पहले किसे मनाऊं खा़ब यां फर्ज़ को एक को मनाया तो दूजी पलट गई है खाली हाथ कैसे जाऊँ घर को मैं अब बेगम आस लगाए द्वार पर डट गई है आज कोई दूसरा बहाना सोचना होगा मेरे बहानों की झोली कल से फट गई है डरता हूँ बेटी की मुस्कान खो न जाए जो मेरी वजह से धीरे धीरे घट गई है रोज़ रोज़ तो यूं नहीं चलेगा आरज़ू आज तो वो जैसे तैसे कर पट गई है आरज़ू-ए-अर्जुन 

वो कौन सी शाम थी

EK GEET वो कौन सी शाम थी जिसमें शामिल नहीं तू वो कौन सी आरज़ू जिसमें शामिल नहीं तू शामों सहर मेरी नज़र तू-ही-तू देखूँ जिधर आये नज़र तू-ही-तू वो कौन सी...... मेरी आँखों में, मेरी बातों में, मेरी सांसों में खुशबू तेरी। मेरी रातों में,ज़ज़्बातों में, एहसासों में खुशबू तेरी आओ कभी मेरे सनम रु-ब-रु तू ही मेरी मेरे सनम आ-र-ज़ू वो कौन सी....... तू वफ़ा मेरी, तू सदा मेरी, तू रिदा मेरी पहचान तू हमनवां मेरी, कहकशा मेरी, दिलरुबा मेरी जान भी तू दिल में रहे तेरी सदा जु-स्त-ज़ू तू ही मेरी मेरे सनम आ-ब-रु। वो कौन सी शाम थी जिसमें शामिल नहीं तू। आरज़ू-ए-अर्जुन   

प्रार्थना (हम आये हैं शरण में तेरी)

please click on following link to listen this prayer..           https://soundcloud.com/aarzoo-e-arjun/a-hindi-prayer-by-aarzoo-n-sameerson                         प्रार्थना हम आये हैं शरण में तेरी हमको गले लगा लो दाता हम निर्गुण अज्ञानी हैं सारे तुम सद्गुण हमें सिखा दो दाता हम आये......................... वो मंजिल कितनी दूर अभी है और पैरों में जंज़ीर पड़ी है तुम मन का बल बढ़ा दो दाता हमको गले लगा लो दाता। हम आये.........................  हम भवसागर से दूर खड़े है हमें करने कितने काम बड़े है तुम राह कोई दिखला दो दाता हमको गले लगा लो दाता। हम आये हैं शरण में तेरी हमको गले लगा लो दाता। आरज़ू-ए-अर्जुन 

Ghazal वो आतिशी सुख़नवर कहलातें हैं

ग़ज़ल वो आतिशी सुख़नवर कहलातें हैं जो शोलों पे गुलशन को खिलाते हैं उसे सागर का पानी भी मीठा लगे जो ताउम्र आंसुओं में नहाते हैं ग़र वक्त मिले आना हमारी बस्ती देख लोगे हम कैसे मुस्कुराते हैं जो डरते हैं गमों से इतना यारो वो हर खुशी से भी नज़र चुराते हैं कयों हो गया है प्यार इस कदर मुझे जो सहमें सहमें से हम नज़र आते हैं लो आ गया है वक़्त रूखसती का अब आखिरी सफर पर हम जाते हैं तुम आंसू मत बहाना अब आरज़ू इन आंसुओं में कहीं हम समाते हैं आरज़ू-ए-अर्जुन
ग़ज़ल   अभी दो घूँट तो पी है ज़िंदगी  हाँ अभी अभी तो जी है ज़िंदगी कैसे मान लूँ के कुछ नहीं रखा  बेमतलब बेकाम की है ज़िंदगी  खुद को नहीं तो औरों को उठा   किसी काम आना भी है ज़िंदगी मैं यह नहीं कहता ग़म न मिले सभी रंगों को जीना भी है ज़िंदगी  ये दहकते तराने सुख़न भी हैं  इसे गुन-गुनाना भी है ज़िंदगी क्यों आरज़ू है अंजुमन की तुम्हें  कभी तन्हा-तन्हा सी है ज़िंदगी  नहीं फ़नाह कर सकता खुदको  फ़क़त मेरी कहाँ रही है ज़िंदगी  है आख़री लम्हा ये समझ के जी  बशर चार दिनों की  है  ज़िंदगी  कभी बज़्म-ए-नाज़ मुनव्वर राहें कभी बज़्म-ए-ख़ाक सी है ज़िंदगी   सदा नहीं अंजुम-ए-बहार आरज़ू  कभी गर्दिश-ए-दश्त सी है ज़िंदगी  आरज़ू-ए-अर्जुन     
"ਸਾਡਾ ਰਹਨੁਮਾ" ਸੂਤ ਦੇ ਲਿਬਾਸ ਪਾਕੇ, ਮਖਮਲੀ ਆਵਾਜ਼ ਗਾਕੇ ਮੂੰਹ ਤੇ ਮੁਸਕਾਨ ਸਜਾਕੇ ਕੋਈ ਬਾਬਾ ਨਾਨਕ ਨਹੀ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਸੰਗਤ ਦਰ ਤੇ ਨਾ ਆਉਣ ਤੂੰ ਉਦਾਸ ਹੈ ਤੇਰਾ ਬਾਣਾ ਨਾ ਗਾਉਣ ਤੂੰ ਉਦਾਸ ਹੈ ਪਰ ਇਸ ਉਦਾਸੀ ਨਾਲ, ਤੂੰ ਚਾਰ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦਾ ਮਾਲਕ ਨਹੀ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਤੂੰ ਡੇਰੇ ਆਪਣੇ ਚੋਪੜੀ ਹੋਈ ਖਾਵੇਂ ਕਦੇ ਨਾਨਕ ਜੀ ਵਾਂਗ ਪਥਰ ਖਾ ਕੇ ਵੇਖ ਤੂੰ ਨਿਤ ਰੇਸ਼ਮੀ ਲਿਬਾਸ ਪਾਵੇ ਕਦੇ ਖਦ੍ਦਰ ਪਾ ਕੇ ਵੇਖ ਤੂੰ ਸੰਗਤ ਕੋਲੋਂ ਦਾਨ ਪੁਨ ਚਾਵੇਂ ਕਦੇ ਤੇਰਾਂ ਤੇਰਾਂ ਗਾ ਕੇ ਵੇਖ ਤੂੰ ਲੋਕਾਂ ਕੋਲੋ ਚਰਣ ਧੋਵਾਂਵੇਂ ਕਦੇ ਖੇਤਾਂ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਲਾ ਕੇ ਵੇਖ ਤੂੰ t.v  ਚੈਨਲਾਂ ਤੇ ਪ੍ਰਸਿਧੀ ਲਈ ਗਾਵੇਂ ਕਦੇ ਸਚੇ ਮਣੋ ਧਿਆ ਕੇ ਵੇਖ ਕੋਈ ਸਾਜ਼ੋ ਸਮਾਨ ਨਾਲ ਗਾਕੇ, ਸਚਾ ਰਬਾਬੀ ਨਹੀ ਬਣ ਜਾਂਦਾ। ਪਗੜੀ ਤੇ ਕਲਗੀਆ ਸਜਾ ਕੇ ਕਾਰਾਂ ਤੇ ਬਤੀਆ ਲਾਕੇ ਕੋਈ ਉਚਾ ਖੜ ਆਵਾਜ਼ ਲਾਕੇ ਓਹ ਵਾਜਾਂ ਵਾਲਾ ਨਹੀ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਆਧੁਨਿਕ ਤਕਨੀਕ ਨਾਲ ਖੜੇ ਨੇ ਡੇਰੇ ਤੇਰੇ ਆਧੁਨਿਕ ਹਥਿਆਰਾਂ ਨਾਲ ਭਰੇ ਨੇ ਡੇਰੇ ਤੇਰੇ ਜ਼ਰਾ ਵੀ ਧੁੱਪ ਛਾਂ, ਜਰੇ ਨਾ ਡੇਰੇ ਤੇਰੇ A.C  ਵਿਚ ਸੋਣ ਵਾਲਾ ਸੰਤ ਸਿਪਾਹੀ ਮਾਛੀਵਾੜੇ ਵਿੱਚ ਸੋਣ ਵਾਲੇ ਵਰਗਾ ਨਹੀ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਤੂੰ ਆਪਨੇ ਲਈ ਸਿਰ ਕੱਟ ਸਕਦਾ ਹੈ ਕਿਸੇ ਦੂਸਰੇ ਲਈ ਸਿਰ ਕਟਾ ਕੇ ਵੇਖ ਤੂੰ ਆਪਣੇ ਲਾਲਚ ਲਈ ਕਦਮ ਵਧਾ ਸਕਦਾ ਹੈਂ ਕਿਸੇ ਦੂਸਰੇ ਦੇ ਹੱਕਾਂ ਲਈ ਅੱਗੇ ਆਕੇ ਵੇਖ ਤੂੰ ਦੂਸਰਿਆ ਕੋਲੋ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਮੰ
"ਮੈਂ ਅਜਨਬੀ ਹਾਂ " ਮੈਂ ਤੇਰੀ ਦੁਨੀਆਂ ਵਿੱਚ ਅਜਨਬੀ ਹਾਂ  ਇਸੇ ਲਈ ਮੈਂ ਕਦੀ ਕਦੀ ਹਾਂ.....                  ਤੇਰਾ ਪਿਆਰ ਇਕ ਵਗਦੀ ਨਦੀ ਹੈ                  ਤੇ ਮੈਂ ਪਥਰ ਵਾਂਗ ਓਥੇ ਹੀ ਹਾਂ।                 ਇਸੇ ਲਈ ਮੈਂ ਕਦੀ ਕਦੀ ਹਾਂ.....  ਤੇਰਾ ਆਹਲਣਾ ਉਚੇ ਆਸਮਾਨਾਂ ਤੇ  ਤੇ ਮੈਂ ਕੋਈ ਸਿਮਟੀ ਹੋਈ ਜ਼ਮੀਨ ਹਾਂ। ਇਸੇ ਲਈ ਮੈਂ ਕਦੀ ਕਦੀ ਹਾਂ.....                 ਤੂੰ ਤਕਦੀ ਏਂ ਪਿਆਰ ਮੋੜ ਮੋੜ ਤੇ                  ਤੇਰੇ ਲਈ ਮੈਂ ਸ਼ਾਯਦ ਇਕ ਸਦੀ ਹਾਂ।                 ਇਸੇ ਲਈ ਮੈਂ ਕਦੀ ਕਦੀ ਹਾਂ......   ਤੂੰ ਲੁਟਾਂਵੇ ਹੁਸਨਾ ਦੀ ਦੋਲਤ ਨੂੰ  ਪਰ  ਮੈਂ ਇਕ ਪਰਦਾਨਸ਼ੀ ਹਾਂ। ਇਸੇ ਲਈ ਮੈਂ ਕਦੀ ਕਦੀ ਹਾਂ.......                  ਤੂੰ ਕੋਲ ਰਹਿ ਕੇ ਵੀ ਕੋਲ ਨਹੀਂ                   ਤੇ ਮੈਂ ਦੂਰ ਰਹਿ ਕੇ ਵੀ ਕੋਲ ਹੀ ਹਾਂ।                  ਇਸੇ ਲਈ ਮੈਂ ਕਦੀ ਕਦੀ ਹਾਂ......    ਤੇਰੀਆਂ ਅਖਾਂ ਨਿਤ ਨਵੇ ਸੁਪਨੇ ਚ ਚੂਰ   ਪਰ ਮੈਂ ਅੱਜ ਵੀ ਉਸੇ ਖ਼ਾਬ ਵਿੱਚ ਹੀ ਹਾਂ।  ਇਸੇ ਲਈ ਮੈਂ ਕਦੀ ਕਦੀ ਹਾਂ.....                   ਕਿਸਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਤੂੰ ਆਵਾਜ਼ ਦੇ ਰਹੀ                    ਪਰ ਮੈਂ ਤਾਂ ਹੁਣ ਕਿਤੇ ਵੀ ਨਹੀ ਹਾਂ।                   ਇਸੇ ਲਈ ਮੈਂ ਕਦੀ ਕਦੀ ਹਾਂ..... ਤੂੰ ਵੇਖ ਦੁਨੀਆਂ, ਬਦਲ ਲਏ ਭੇਸ ਕਿੰਨੇ  ਪਰ

"ਖਜੂਰ ਦਾ ਰੁਖ " ( in punjabi)

"ਖਜੂਰ ਦਾ ਰੁਖ " ਮੇਰੇ ਖੇਤ ਦੇ ਵੱਟ ਤੇ ਇਕ ਖਜੂਰ ਦਾ ਰੁਖ ਹੈ ਸ਼ਾਇਦ ਅਣਚਾਹੀ ਬਰਸਾਤ ਵਿੱਚ ਪੂੰਗਰਿਆ ਸੀ ਵੇਖਦੇ ਵੇਖਦੇ ਕਿਸੇ ਗਰੀਬ ਦੀ ਧੀ ਵਾਂਗ ਜਵਾਨ ਹੋ ਗਿਆ ਮੈਂ ਨਾ ਤੇ ਇਸਨੂੰ ਕੋਈ ਖਾਦ ਪਾਈ ਨਾ ਹੀ ਪਾਣੀ ਦਿੱਤਾ, ਇਸ ਰੁਖ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਮੈਂਨੂੰ ਧੀ ਨਿਮੋ ਦੀ ਯਾਦ ਆਈ ਦੋਵੇਂ ਹੀ ਬੇਜ਼ੁਬਾਨ, ਇਕ ਖੇਤ ਵਿੱਚ ਇਕ ਚੇਤ ਵਿੱਚ ਨਾ ਉਸਨੇ ਮੇਰੇ ਕੋਲੋਂ ਕਿਸੇ ਚੀਜ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਨਾ ਇਸ ਖਜੂਰ ਨੇ ਹੀ ਮੇਰੇ ਕੋਲੋਂ ਕੁਝ ਮੰਗਿਆ ।                        ਮੇਰੇ ਖੇਤ ਦੇ ਵੱਟ ਤੇ ਇਕ ਖਜੂਰ ਦਾ ਰੁਖ ਹੈ                        ਸ਼ਾਇਦ ਅਣਚਾਹੀ ਬਰਸਾਤ ਵਿੱਚ ਪੂੰਗਰਿਆ ਸੀ ਕਿਨੀਆਂ ਗਰਮੀਆਂ ਵਿੱਚ ਭੁਜਦਾ ਸੜਦਾ ਰਿਹਾ ਸੀ ਇਹ ਪਤਾ ਨਹੀ ਕਿਵੇਂ ਝਲ੍ਹਦਾ ਸੀ ਇਹ ਝਖੜ ਹਨੇਰੀਆਂ ਸਿਰ ਤੇ ਗਿਣਤੀ ਦੇ ਪੱਤੇਆਂ ਦੀ ਪਗੜੀ ਪਾ ਕੇ ਝੁਮਦਾ ਹੈ ਗਾਉਂਦਾ ਹੈ " ਮੇਰਾ ਕਦ ਅਸਮਾਨੀ, ਮੇਰਾ ਕਦ ਅਸਮਾਨੀ " ਇਸਦੀ ਮੁਸਕਾਨ ਨਿਮੋ ਨਾਲ ਕਿੰਨੀ ਮਿਲਦੀ ਹੈ ਗਰੀਬੀ ਤੇ ਮਜ਼ਬੂਰੀ ਦੀ ਪੱਗ ਨੂੰ ਗਿਰਵੀ ਰਖ ਕੇ ਕਰਮਾਂ ਦੀ ਮਾੜੀ ਨੂੰ  ਚੁੰਨੀ ਚੜਾਈ ਸੀ, ਮੈਂ ਤਾਂ ਹਾਲੇ ਅਖਾਂ ਵੀ ਨਹੀ ਝਪਕਾਈਯਾਂ ਸਨ ਉਸਤੇ ਪਤਾ ਨਹੀ ਕਦੋਂ ਜਵਾਨੀ ਆਈ ਸੀ                      ਮੇਰੇ ਖੇਤ ਦੇ ਵੱਟ ਤੇ ਇਕ ਖਜੂਰ ਦਾ ਰੁਖ ਹੈ                      ਸ਼ਾਇਦ ਅਣਚਾਹੀ ਬਰਸਾਤ ਵਿੱਚ ਪੂੰਗਰਿਆ ਸੀ ਅੱਜ ਇਸ ਖਜੂਰ ਤੇ, ਹਰੇ ਤੋਂ ਪੀਲੇ, ਪੀਲੇ ਤੋ