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Showing posts from July, 2016

वो बात दिल की दिल में दबा कर चले गए ( ghazal)

ग़ज़ल  मात्रा : 221  2121 1221 212  -------------------------------- वो बात दिल की दिल में दबा कर चले गए  कुछ इस तरह से राज़ छुपाकर चले गए  ख़ामोश से रहे उनके होंठ भी मगर  वो ज़िंदगी का दर्द सुनाकर चले गए  माथे को चूमकर के वो चलते रहे मगर  भीगे लबों से आज जलाकर चले गए दो चार आंसुओं को गिराया ज़रूर था  दिल पर पड़े वो छाले दिखाकर चले गए  फिर लौट कर न आएगी यह रात "आरज़ू" है आखरी यह रात बताकर चले गए  आरज़ू-ए-अर्जुन   

पलकों पे मुझको बिठाया तुम्ही ने

Ghazal ............................................... पलकों पे मुझको बिठाया तुम्ही ने मुझको नज़र से गिराया तुम्ही ने सीने लगाया खिलौना समझ के खिड़की से बाहर बहाया तुम्ही ने शिकवा करूँ क्या यहाँ तीरगी का इस ज़िंदगी को बनाया तुम्ही ने कितने हसे थे तेरी आशिकी में कितना मगर फिर रूलाया तुम्ही ने काफ़िर बनाने से पहले यहाँ पे मुझको खुदा भी बनाया तुम्ही ने झूठी मुहब्बत बनी ज़िंदगी है सचकर सभी को दिखाया तुम्ही ने मिलते रहे जो हमें मुस्कुराये उनको हमीं पे हसाया तुम्ही ने तुमसे शिकायत नहीं आरज़ू को है ज़िंदगी क्या बताया तुम्ही ने आरज़ू-ए-अर्जुन 

नज़म ( हर लम्हा चाहा है, तुमको मैंने )

नज़म  ( हर लम्हा चाहा है, तुमको मैंने ) --------------------------------------------   हर लम्हा चाहा है, तुमको मैंने  हर लम्हा पाया है, तुमको मैंने  लफ्ज़ छू लेते है, जब तेरे नाम को  गुनगुनाने लगें, हम सुबह शाम को  तेरे नाम को.. तेरे नाम को... तेरे नाम को...  बारिश की बूंदें, तेरे लबों पे  जब गिरे तो मुझे, ऐसा लगे  जैसे दहकता, दरिया हो कोई  होटों से सीने,  उतरने लगे  होश उड़ जाते हैं, सामने देखकर  तेरा हो जाता है, दिल मेरा बेख़बर  मेरे हमसफ़र...मेरे हमसफ़र....मेरे हमसफर  जिस पल में तू मिले, वो पल हसीं है जिस पल तू न मिले, कुछ भी नहीं है  प्यासी निगाहों को, मिल जाएँ राहतें  आये नज़र जो तू, तो.... ज़िंदगी है साँस छू लेती है, जब तेरी साँस को  तो सुलग जाता है, भीगा मन रात को  तेरी साँस को, तेरी साँस को, तेरी साँस को....  आरज़ू-ए-अर्जुन         

सच कहा मैंने (GHAZAL)

ग़ज़ल  मात्रा : 1222 1222 1222 1222 ( मुफाईलुन ) ----------------------------------------------- मुझे समझा दिवाना क्यों फ़साना सच कहा मैंने  लगी है आग दिल में क्यों बताना सच कहा मैंने ज़रा सा वक़्त में उल्झा शिकायत बन गयी उनकी  हसीनों की महारत है  रुलाना सच कहा मैंने  लुटाना छीन कर उनमें वही आदत ज़माने की  बड़ा मशहूर है किस्सा पुराना सच कहा मैंने जलाते दीप राहों पे किसी की मौत पे फिर भी  चलेगा मूँद कर आंखें ज़माना सच कहा मैंने  भरी है जेब बच्चों की नशे से आज भी यारो  हमारा फ़र्ज़ बनता है बचाना सच कहा मैंने  अभागे हैं विभाजे हैं यहाँ पर हम लड़ें किससे   वो लेते हैं किताबों का बहाना सच कहा मैंने    अगर खाना है जी भरके तो चक्की पीसनी होगी  नहीं आसान रोटी को कमाना सच कहा मैंने  हमारे बिन नहीं कुछ तुम जताते रोज़ ही मुझको  बताया सच तो भूलेंगे जताना सच कहा मैंने  खड़े चट्टान बन कर हम निगाहों में ज़माने की  बड़ा मुश्किल उन्हें होगा हिलाना सच कहा मैंने  दिवाने 'आरज़ू ' ने तो कही बातें सभी सच ही  अगर झूठी लगे तुमको बताना सच कहा मैंने 

वो आँखों से कुछ नाराज़ दिखे (GHAZAL)

ग़ज़ल  मात्रा : 222 222 222  -------------------------------- वो आँखों से कुछ नाराज़ दिखे तन्हा तन्हा से अंदाज़ दिखे लब पे ख़ामोशी बरहम ज़ुल्फ़ें वो आज हमें कुछ नासाज़ दिखे एक सूखे आँसू को देखा जब उनके चेहरे पे कुछ राज़ दिखे वो टूटा आईना यह कहता था वो अपने अक्स से नाराज़ दिखे जब पूछा था उनकी धड़कन से तो अटके अटके अलफ़ाज़ दिखे उसने की थी कोशिश जीने की पर  हारे  हारे  अन्दाज़  दिखे वो उसदिन मेरे साथ रहे थे   पर क्यों इतने दूर-दराज़ दिखे   जब राज़ खुला सांसों का 'अर्जुन ' तब हम खुद भी बेआवाज़ दिखे आरज़ू-ए-अर्जुन   

बड़ी मुश्किल हुई यारो मुहब्बत को निभाने में ( GHAZAL)

ग़ज़ल  मात्रा : 1222 1222 1222 1222 अर्कान : मुफाईलुन * 8  ------------------------------------------- बड़ी मुश्किल हुई यारो मुहब्बत को निभाने में मिली है चोट इस दिल पे मुरव्वत को निभाने में लबों पे है तबस्सुम और आँखों में शिकायत भी मिली कुछ ख़ास ये चीज़ें मुहब्ब्त को निभाने में मुहबबत में किया वादा मेरी तो जान ले बैठा हुआ हासिल भी क्या यारो शराफ़त को निभाने में यहाँ झुलसे है सहरा में यहाँ मरते जुदा होके सहा क्या-क्या न लोगों ने मुहब्ब्त को निभाने में ज़रा सी बात पे देखो मरे जाते हैं लड़ लड़ के मिलेगा क्या बताओ तुम ख़िलाफ़त को निभाने में मुझे मालूम था यह भी नहीं आएंगें वो मिलने मरे से जा रहे होंगे अदावत को निभाने में चलो अब तोड़ भी दें हम चुनीं दीवार नफ़रत की हुए बर्बाद कितने साल नफ़रत को निभाने में बताये 'आरज़ू' तुमको मुहब्बत से ज़रा बचना रहोगे ज़िंदगी से दूर क़ुरबत को निभाने में आरज़ू-ए-अर्जुन