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Showing posts from September, 2016

कभी धूप मिले कभी छांव.( ग़ज़ल )

ग़ज़ल मात्रा..  212 212 212 212 गर हुई है ख़ता तो सज़ा दीजिए क्या है कीमत हसी की बता दीजिए.. आ गया हूँ ना जाने कहाँ पर अभी ला पता हो गया हूँ पता दीजिए जिंदगी की नसीहत,वफा की अदा ऐ ग़रीबी हमें भी बता दीजिए जो चला ही नहीं वो गिरे क्यों ख़ुदा आईना बुज़दिलों को दिखा दीजिए नफरतों को मिले चाहतों की नज़र रास्तों को हसी से सजा दीजिए हर तरफ फैल जाए खुशी की लहर पेड़ इतने ज़मीं पे उगा दीजिए ना मिले अब किसी को ज़रा सी चुभन फ़ूल ऐसे वतन में खिला दीजिए ज़िंदगी में मिले धूप भी छांव भी आरज़ू को यही बस दुआ दीजिए आरज़ू-ए-अर्जुन