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Showing posts from May, 2017

Zindgi ko vo bashar jeet liya karte hai..

आदाब 2122 1122 1122 22/112 इस  ज़माने   में  मुहब्बत  जो  किया  करते हैं ज़ख़्म  अपने  ही  वो  हाथों  से सिया करते हैं रात  भर  सोचते   रहते  हैं  सितारे   गिन  के ईश्क  में  आंख वो  कब  बंद  किया  करते हैं जो भी  बनते  हैं  मसीहा  सा  ज़माने के लिए दर्द   ही   दर्द   ज़माने   से   लिया   करते   हैं बात दिल  की जो जुबाँ पे  है रूकी कब से मेरे आज भी  दिल  में  उसे  दफ़्न किया  करते हैं वो  किसी  जाम  से  मदहोश  नहीं  हो  सकते जो  सितमगर  की  निगाहों  से  पिया करते हैं मौत  तो  रोज़  चली आती  है  मिलने के लिए हम  ही  कमबख़्त  उसे  टाल  दिया  करते  हैं तीरगी  देख  के  जो  डर  के  कदम  लें  पीछे ज़िंदगी  की  वो  सहर ख़ाक  जिया  करते  हैं 'आरज़ू'  हौसले   की  ढ़ाल  है  जिनके  हाथों ज़िंदगी  को  वो  बशर  जीत  लिया  करते  हैं आरज़ू-ए-अर्जुन

मौत तो हस के मिली ...

आदाब ज़िंदगी  भर  हम सफ़र  करते रहे हौसले  के   साथ  हम  बढ़ते  रहे आंधियों के साथ  आईं बिजलियाँ हर  घड़ी  हालात   से  लड़ते  रहे रात दिन का  कारवाँ  चलता रहा हम भी लेकर खा़ब को चलते रहे हम बुझाते ज़िंदगी की प्यास क्या पेट  की  ही  आग  में  जलते  रहे कोई  पढ़  लेगा  मेरे  चेहरे पे ग़म इसलिए  ता  उम्र  हम  हसते  रहे हम खड़े थे धूप  में बन  के  शज़र छांव  बांटी  और  खुद  तपते  रहे डालते  थे आंखों  में  तेज़ाब  ग़म सपने फिर भी आंखों में पलते रहे नाम ज़िंदा  रख  सकूं अपना यहाँ यार    इसके   वास्ते    मरते   रहे मौत तो हसके  मिली  हमको  गले 'आरज़ू '  हम  खामखा़  डरते  रहे आरज़ू-ए-अर्जुन

Mili zindgi bas Muhabbat karenge

आदाब किसी से  नहीं  हम अदावत करेंगे मिली  ज़िंदगी, बस मुहब्बत करेंगे अगर यार  सच्चा मिले तो खुदाया किसी और की हम न चाहत करेंगे कहां  हुस्न  वाले  जुबाँ को हिलाते वो  आंखों से  सारी  शरारत करेंगे ज़रा सी वफ़ा हमसे करके तो देखो खुदा की कसम हम  इबादत करेंगे हमें ज़िंदगी से  ही लड़ना न आया तो कैसे किसी  से शिकायत करेंगे जो बरसों से देखा है एक ख़ाब हमने उसे   ज़िंदगी  में   हकीकत  करेंगे किसी  के  सगे  न  हुए हैं  न होंगे सियासत के कीड़े सियासत करेंगे कुचल दो फ़नो को शुरू में नहीं तो तुम्हें डसने की  वो हिमाकत करेंगे नहीं जाना काबा नहीं जाना काशी सदा  बाप-माँ  की  ज़ियारत करेंगे ये मंजि़ल मिले बस उन्हें आरज़ू अब जो शोलों पे चलने की हिम्मत करेंगे आरज़ू-ए-अर्जुन

Yaad unki satati rahi raat bhar pe

आदाब 212*4 याद  उनकी  सताती  रही रात भर तीर  दिल में  चुभाती रही रात भर एक लम्हा  भी  सोये नहीं हमनशीं पीड़  तेरी  जगाती  रही  रात  भर साथ  मेरे  फ़साना  तेरे   प्यार  का चांदनी  गुनगुनाती   रही  रात  भर हिज़्र की रात में  साकी थी  बेबसी जाम मुझको पिलाती रही रात भर अंजुमन में मैं था,फिर भी तन्हाईयां पास मुझको बुलाती  रही रात भर एक  तस्वीर  तेरी   दिखी  तारों  में प्यास  मेरी  बुझाती  रही  रात  भर हर  सितारे  पे  था  हर्फ़  तेरा सनम जो  कहानी  सुनाती  रही  रात भर कितने तन्हा से थे हम भरी बज़्म में बेबसी  आज़माती   रही   रात  भर ग़मज़दा हो के भी बस  लतीफे़ कहे ज़िंदगी   गुदगुदाती   रही   रात  भर सांस  बढ़ती  रही 'आरज़ू' की  तरह दर  कोई  खटखटाती  रही रात भर आरज़ू-ए-अर्जुन

Faasle ab mit rahein hai....

आदाब हो  रही  है  गुफ़्तगू  अब  दो  दिलों  के दरम्याँ फासले  अब  मिट  रहे  हैं  चाहतों  के  दरम्याँ अब  बयां  कैसे  करें   तेरे  जमाल-ए-हुस्न  को हर्फ़   सारे   लड़. पड़े   हैं  शायरों   के  दरम्याँ दो  कदम  के  फासले पे  हैं  खड़े  मुख फेर के कितनी ख़ामोशी सी है  इन सरहदों  के दरम्याँ पर्बतों से यूं बिछड़  के मुख्तलिफ़ करती सफ़र मिल ही  जाती हर नदी  फिर सागरों के दरम्याँ चाहते  हो  ग़र  जलाना आँधियों  में  ये चिराग आने दो  अड़चन न  कोई  हौसलों  के  दरम्याँ कोई  भी मझधार कश्ती  को डुबो सकती नहीं हौसले  के  साथ  डट  जा  साहिलों  के दरम्याँ तब  समझना यार तुमको  कामयाबी  है  मिली नाम  आये  जब  अदब  से  दुश्मनों  के दरम्याँ चाहता है 'आरज़ू' भी आसमां  तक घर हो इक पर उखड़ जाए न जड़ से ख्वाहिशों  के दरम्याँ. आरज़ू-ए-अर्जुन

जाते जाते दिल को ग़म से भर गया ..

आदाब जाते जाते दिल को ग़म से भर गया ख़ुद रूलाया और ख़ुद रोकर गया ईश्क़ के तूफ़ान  में  फँसता है जो लाख़ ख़ुद को वो बचाले पर गया सर  झुकाये  बैठे हैं  तन्हा  से  वो एक झौंका यह मुझे कह कर गया आज  साया भी  निभाये  दुश्मनी देखकर  हालात को  मैं  डर गया रो  रहा  था  हर कोई घर में मगर जंग  पे वो  पासबाँ  हंसकर गया चापलूसी  आज करना  सीख लो सर  उठाओगे  तुम्हारा  सर  गया सर उठा के कब जिया है वो बशर डर के इस हालात से जो घर गया आज   हैं   हालात   ऐसे  'आरज़ू' लब  तेरे  ख़ामोश  हैं  तो तर गया आरज़ू-ए-अर्जुन