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" ढलता सूरज "


" ढलता सूरज "

 राज छत पर बैठा सूरज को ढलता हुआ देख रहा था. सूरज धीरे धीरे अपनी लाली को उस क्षितिज पे बिखेरता कहीं छुप रहा था. राज सूरज की आँखों में आँखें डाल कर शायद यह सोच रहा था के जिंदगी कि इस चकाचौंध रौशनी को एक समय पे मंद होना होता है या अँधेरे में खोना होता है. यह सूरज रोज़ एक नया सवेरा लाता है इसकी पहली किरण अल्हड और कमसिन सी होती है दूसरे पहर में यह प्रचंड जवान सी और तीसरे पहर में यह किसी बूढ़े अनुभवी कि तरह एक सन्देश सुनाता हुआ छुप जाता है . राज का मन अतीत के समंदर में कही गोते लगा रहा था उसकी साँसे थमी हुई सी चल रही थी दिल में उस समंदर कि मौजे बार बार उठ रही थी जिसे वो हर आती जाती सांस में समां के शांत कर रहा था. उसकी आँखे ढलते सूरज पे जड़ थी पलके आँखों पे ठहरी हुई इशारे का इंतज़ार कर रही थी और धड़कन जैसे एक के बाद एक सवाल पे सवाल कर रही थी मगर उसके जवाब शायद दिल के किसी कोने में दफ़न थे या अँधेरे में कहीं छिप गए थे, वो शांत कुर्सी पे बैठा उन सवालों के उलझनो पे उलझा हुआ सूरज की अंतिम लाली को काली होते देख रहा था धीरे धीरे हर लाली रात के अँधेरे से लिपट गयी अब बाहर भी अँधेरा था और उसके भीतर भी. आकाश में परिंदे भी अपने अपने घरोंदों कि और उड़ाने भर रहे थे .  
                       एक आवाज़  ने राज को यादों के तिलस्म से हकीकत कि दुनिया में पंहुचा दिया , राधिका नीचे से आवाज लगा रही थी .  राज ने आँखों को उँगलियों से बंद किया फिर वो नीचे उतर आया . राधिका ने पूछा ," आप अकेले ऊपर क्या कर रहे थे ". राज ने कोई जवाब न दिया और अपने  कमरे में चला गया. राधिका ने फिर कुछ न कहा और किसी दूसरे काम में व्यस्त हो गई . राज T.V देख रहा था आज सन्डे था छुट्टी थी इस लिए सैम ने कहा," पापा आज मंदिर नहीं जाना क्या ?," सैम ६ साल का बच्चा अपनी उम्र से थोडा ज्यादा तेज और चलाक था . उसके इतना कहते ही राज जल्दी से टॉवेल लिए बाथरूम चला गया और जल्दी ही कपडे बदल लिए, सैम पहले से ही तैयार बैठा था फिर दोनों मोटरसाइकिल पे मंदिर को चले गए . मंदिर में माथा टेकने के बाद सैम ने पार्क में चलने को कहा, दोनों पार्क में चले गए . सैम वहाँ दूसरे बच्चों के साथ खेलने लगा और राज एक पत्थर के बने बेंच पे बैठ गया और सैम को खेलते देखने लगा, पार्क में बहुत से लोग अलग अलग उम्र के थे. थोड़ी मोटी लड़कियां पार्क के ट्रैक पे चहल कदमी कर रही थी , बूढ़े सैर कर रहे थे, वैवाहिक जोड़े आपस में बाते कर रहे थे . राज वहाँ शांत था उसकी नज़र चलते फ़ौवारे पे जा टिकी. उसे लगा के शायद वो आकाश को छूना चाहती है मगर वो जितनी रफ़्तार से वो ऊपर कि और जाती उतनी रफ़्तार से उसे नीचे गिरना पड़  रहा था  . उसके नीचे लगी रंग बिरंगी लाइटे उसके साथ खेल रही थी राज बहुत देर तक उसे यूँ ही देखता रहा फिर अचानक वही सवाल उसके ज़हन में एक एक करके आने लगे और देखते ही देखते वो उन सवालों के अतीत में कही खो गया . कुछ हस्ती खेलती तस्वीरे उसके आगे पीछे घूमने लगी . उसने देखा …। 
                       एक लड़का उसके घर के बाहर दरवाजे पर एक रुमाल को लिए हिला रहा था . राज 9  साल का था जब वो उस मोहल्ले में अपनी फैमिली के साथ रहने आया था. राज सीढ़ियों पे बैठा कुछ पढ़ रहा था के उसकी नज़र उस लड़के पे गयी जो बहार से रुमाल हिला रहा था , वो कभी रुमाल दिखता फिर इधर उधर देखता फिर रुमाल हिलाता न जाने क्या कर था उसकी कुछ समझ में न आया , फिर राज ने मुड़कर इधर उधर देखा तो साथ के घर कि छत पे एक लड़की थी जो कपडे फैला रही थी वो नज़र आयी. वो कभी गुस्से से कपड़ों को झटक रही थी तो कभी चोरी से उस लड़के कि तरफ देख रही थी. उसे लगा कि वो लड़का शायद उसके साथ कुछ खेल रहा है . फिर राज का ध्यान उस रुमाल पे गया जिसपे कुछ प्रिंट हुआ था शायद उसपे अंग्रेजी में लिखा था I  LUV U . राज को उसकी बन्दर वाली हरकत सी लगी और उसे देख कर पहले हँसा फिर नज़र नीचे कर ली . वो लड़का बहुत निराश हो रहा था के अचानक उसके मुह पे एक स्माइल आ गयी फिर वो शर्माता हुआ वहाँ से चला गया . राज उस मोहल्ले में बिलकुल नया था इसलिए उसके दोस्त अभी नहीं बने थे इसलिए वो सारा दिन स्कूल  के बाद अपने घर में या घर कि छत  पे बिताता था .  राज छत  से उतरता हुआ सोच रहा था के वो मुस्कुराता हुआ क्यों चला गया जबकि वो बहुत परेशान सा हरकतें  कर रहा था खैर वो अपने कमरे में चला गया . 
         राज स्कूल से घर लौट रहा था उसने उस लड़के को उसके घर के बाहर से निकलते देखा फिर एक आवाज़ गेट के अंदर से आई ," बलराज फोटोयां लैंदा आई ", उसकी भाभी ने आवाज़ दी थी . यह घर उसके घर से ठीक दूसरी और वाला घर था, बलराज उसका पड़ौसी था. उसके घर पे पिछले वाला घर उस लड़की का घर था उस घर में तीन लड़किया और एक छोटा लड़का था .  आरती सबसे बड़ी लड़की थी और बहुत ही सुन्दर कद काठी कि लड़की थी . उसके पिता रेल्वे में काम करते थे . बलराज भी सुंदर कद काठी का लड़का था और उसके पिता भी रेलवे में ड्राईवर थे . दोनों के परिवार एक अच्छे जीवन शैली को निर्वाह करते थे . उस समय के अनुसार वो सभी आधुनिकता उनके घरों में थी जो एक मिडिल स्टैंडर्ड फैमिली में देखने को मिलती है  बलराज उस लड़की को पसंद करता था . दोनों का पहला प्यार उन्हें धीरे धीरे एक दूसरे कि और खीच रहा था . आरती भी शायद उसे पसंद करने लगी थी इसिलए वो जानबूझ कर अक्सर उसी वक़्त छत पे कपडे फ़ैलाने आती थी . राज को पता चला के दोनों का स्कूल एक ही है और दोनों एक ही क्लास में पढ़ते  है. आरती एक शर्मीली सी लड़की थी और वो दूरियाँ  बना के रखना पसंद करती थी मगर बलराज उससे बात करना चाहता था इसलिए कभी क्लास में तो कभी घर पे कोशिश कर रहा था एक दिन उसने स्कूल में उसे बुला लिया और अपने एक दोस्त के सामने उसे प्रोपोस कर दिया , आरती ने हिचकिचाते हुए सिर हिला दिया और वहाँ से शर्मा के दौड़ कर क्लास में चली गई . बलराज के दोस्त उसे छेड़ रहे थे और वो उनसे पीछा छुड़ाने के लिए बहाने कर रहा था.
                 बलराज एक किशोर लड़का था और वो जवानी तथा समझदारी के मोड़ पे खड़ा था. उसे उस वक़्त आरती के सिवा कोई दूसरा रास्ता दिखा ही नहीं और वो उस रास्ते पर बढ़ना चाहता था . स्कूल की ज़िंदगी यार दोस्त और बेपरवाहियों से युक्त होती है यहाँ पे सिर्फ दिल-दोस्ती और मस्ती के शामियाने सजे रहते है. मगर बलराज एक अलग सी दुनिया को घर कर रहा था . पहला प्यार था और बलराज उस प्यार के बहाव में बह रहा था , उड़ रहा था . आरती कई दिनों से स्कूल नहीं जा रही थी . बलराज ने उसे पिछले एक हफ्ते से नहीं देखा था . आरती घर पे भी नहीं दिख रही थी , मोहल्ले में आरती कि कोई सहेली नहीं थी जिससे वो पूछ सकता . बलराज कुछ उदास था इसलिए वो भी स्कूल कभी जाता कभी दोस्तों के साथ स्कूल बंक करके सिनेमा घूमने चला जाता या कभी उनके साथ गिल्ली डंडा खेलने चला जाता . गली में सालाना जागरण होना था . गली के लड़के और बड़े लोग जागरण कि तयारी में जुटे थे, बलराज हर साल इस जागरण में हिस्सा लेता था मगर इस बार वो जागरण और इसके जोश से ठंडा था . उसके दोस्तों ने उससे बात करने कि कोशिश की मगर उसने कोई बहाना बना दिया . 
                 जागरण की रात थी, पंडाल खूब सजा हुआ था पूरी गली लाइट से सजी हुई थी, बड़ी चहल पहल थी . लोग घर से त्यार हो के पंडाल में आ रहे थे , बलराज के दोस्त पंडाल में से लड़कियों को ताड रहे थे और बहुत खुश  नजर आ रहे थे , मगर बलराज पंडाल से दूर खड़ा अपने नाख़ून चबा रहा था . उसके दोस्त उसे खींच रहे थे मगर वो आना  नहीं चाहता था , इतने में आरती अपनी दादी और छोटे भाई के साथ पंडाल में आई . सबकी नजर आरती पे गई वो बेहद सुन्दर दिख रही थी . बलराज का चेहरा गुलाब सा खिल गया . देखते  ही देखते बलराज न जाने कहा गुम हो गया सभी दोस्त उठ उठ के उसे तलाश रहे थे , थोड़ी ही देर में बलराज वापिस आया उसने अपने कपडे बदल लिए थे बिलकुल फ्रेश दिख रहा था जैसे अभी अभी नहा के शादी के लिए तैयार हुआ हो ,  बलराज के चेहरे की रौनक लौट आई थी उसके दोस्त उसके पास गए और फिर वो सब एक ही जगह ठीक आरती वाली लाइन में हठ  के  बैठ गए . आरती ने चोरी से बलराज कि तरफ देखा, बलराज ने अपना सर हिला के उसे इशारा किया उसने मुस्कुरा के इशारे का जवाब इशारे में दिया . उसके दोस्त दोनों को देख रहे थे शरारत में वो कभी बलराज को कोहनी मारते तो कभी उसका मजाक बना के चुटकियाँ ले रहे थे . बलराज पर अंपनी धुन में मस्त था . उसके दोस्त बलराज को सता रहे थे वो वहाँ से उठ के ऑर्केस्ट्रा के पास चला गया और आरती को देख देख के लोगो के ताल में ताल मिला के तालियां बजाने लगा आरती उसे ऐसा करते देख खूब हस रही थी , फिर आँखों ही आँखों में वो जागरण कि रात बीत गई  और सुबह हो गई.
                     एक दिन आरती स्कूल  से रोती हुई घर आई और आते ही अपने कमरे में जा के रोने लगी . घर में दादी थी उसने पूछा ," आरती रो क्यों रही है , किसी ने कुछ कहा है क्या ?", आरती बस रोये जा रही थी उसने कोई जवाब नहीं दिया. उसकी दादी उससे बार बार पूछने कि कोशिश कर रही थी मगर वो कुछ बता नहीं रही थी . घरवाले कुछ परेशां थे कि बात क्या हुई है , इतनी बड़ी भी नहीं थी के उसके माता पिता कुछ और सोच पते उन्हें लगा के स्कूल  में टीचर ने कुछ कह दिया होगा . बलराज भी दिखाई नहीं दे रहा था उस शाम वो कहाँ था किसी को कुछ मालूम नही था . अगले दिन वो घर के बाहर खड़ा था वो कुछ शांत और गम्भीर सा दिखा. वह आते जाते लोगो से आँखे चुरा रहा था . कुछ दिन तक बलराज स्कूल नहीं गया . उसके घरवाले उससे कुछ पूछते वो पहले ही कोई बहाना कर घर से निकल जाता . फिर  पता चला कि उस दिन क्या हुआ था , उसके दोस्त आपस में बातें कर रहे थे ," यार उस दिन की होया सी ", बलराज के दोस्त ने जो उसके साथ ही पढ़ता था बताया कि ," साले ने उस दिन आरती को क्लास में  बंद कर दिया , फिर अंदर से उसने कुण्डी लगा दी , फिर साले ने उसे क्या कहा क्या किया मुझे नहीं पता ". फिर उसने बताया कि ," आरती ने कुण्डी खोली, बहार सारे खड़े थे , सारे उसे शक्की नज़र से देख रहे थे , उसकी मैडम ने उसे बहुत पूछा मगर वो रोटी रही और फिर भाग कर घर चली गई ". "अच्छा फिर बलराजको किसी ने कुछ नहीं कहा " दूसरे दोस्त ने पूछा . उसने जवाब दिया ," ओह घबराया होया सी , जब वो बहार निकला तो सभी उसे घूर रहे थे उसकी मैडम ने उसे पूछा मगर वो चुप रहा. उस दिन स्कूल के प्रिंसिपल छुट्टी पे थे इसलिए वो बच गया मगर उसकी मैडम ने घर से किसी को स्कूल आने के लिए कड़ी चेतावनी दे के भेजा , मगर वो आज भी स्कूल नहीं आया ".
                              आरती के माता पिता को कुछ कुछ बात समझ आ गई थी वो बलराज के घर पूछने के लिए गए दोनों परिवार वहाँ पे बातें कर रहे थे के अचानक से बातें उचीं आवाज़ों होनी शुरू हो गई फिर गाली गलोच पे मामला चला गया . बलराज और उसके घरवालों पे वो भद्दे शबद इस्तेमाल कर रहे थे उसकी माँ और भाभी तो बोल रहे थे मगर बलराज चुप था और कोने में सर झुकाये बैठा था . खैर बात किसी तरह ठंडी पड़ गई  वो अपने घर चले गए . मगर असली बात क्या थी? वहाँ क्या हुआ था ? यह बात खुल के सामने कभी नहीं आई . आरती को जब भी पूछा गया की उसने तेरे साथ कुछ किया तो उसने हमेशा न में उत्तर दिया . बहुत बदनामी ही रही थी दोनों कि बात गली मोहल्ले की औरतों और लोगो में हसीं मजाक का मसाला बन गया था . बलराज ने स्कूल जाना बंद कर दिया . उसकी भाभी ने उससे जब भी पूछा कि तूने सचमें कुछ उल्टा सुलटा तो नहीं किया है बलराज ने सिर्फ इतना ही कहा के मैंने कुछ गलत नहीं किया है. बलराज बहुत उदास था वो अपनी गलती पे पछता भी रहा था और गुस्से में अपने आप को कोस भी रहा था . उधर आरती के पिता का तबादला लुधियाने में हो गया सारा परिवार लुधियाने जाने के लिए अपनी तयारी कर रहा था . आरती अपने अंदर कि पीड़ा से शांत थी वो भी शायद यही चाहती थी के जल्द से जल्द इस दर्द से निजाद मिल जाये . फिर एक दिन आरती पुरे परिवार के साथ लुधियाने चली गई . बलराज को जब पता चला के आरती लुधियाने चली गई है तो उसने घर पर कहा के मैं कुछ दिन मासी के पास  जा रहा हूँ और बलराज बस पकड़ कर अपनी मौसी के घर कुछ दिन रहने चला गया.
                                कुछ दिन बाद मोहल्ले में एक नवविवाहित जोड़ा आया सभी लोग गली में खड़े हो कर उन्हें देख रहे थे फिर एक औरत ने उन्हें पुकारा ," ओए गोविंद पिंडो नवी वोहटी लिआया ऐ ". ( गाँव से नई दुल्हन लाया है ) राज उन्हें पहली बार देख रहा था। गोविन्द 17- 18 साल का लड़का था और उसकी पत्नी देखने में सिर्फ 15-16 साल की थी. गोविन्द के चेहरे पर ठीक से दाढ़ी मूछ भी नहीं आई थी उसे देख कर राज बहुत हैरान हो रहा था।  उसके चाचा राधे शयाम और चाची संध्या उनके ठीक पीछे आ रहे थे।  राधे श्याम ने घर का ताला खोला और सब भीतर चले गए।  राधे श्याम किसी फैक्ट्री में मिस्त्री का काम करता था और गोविन्द भी उसी फैक्ट्री में एक कारीगर था। सोमवार की शाम थी गोविन्द अपने घर से अपनी पत्नी के साथ कही जा रहा था उसने अपनी पत्नी से कहा " माया " कुण्डी लगा दे।  "माया" उसकी पत्नी का नाम पहली बार राज ने सुना था उसे वो नाम बहुत अच्छा लगा। गली में सब लोग माया की खूबसूरती के बारे में बातें करते थे शादी के बाद गोविन्द पहली बार कही घूमने जा रहा था। लोग उन्हें घूर रहे थे।  गोविन्द गली की बड़ी औरतो को सर हिला कर नमस्ते कर था।  फिर वो रेलवे लाइन पार करके पैदल ही बाज़ार चला गया।
                                अगले दिन बलराज अपनी मौसी के घर से वापिस अमृतसर आ गया।  बलराज दो दिन तक घर में ही रहा उसके दोस्त उससे मिलना चाहते थे मगर वो इंकार कर देता।  बलराज का घर बहुत बड़ा था उसके घर में T.V , VCR सब कुछ था मगर वो बेचैन सा इधर उधर घूमता फिर अपने कमरे में सो जाता।  राज ने बारवी क्लास पास कर ली थी. बलराज उसका पडोसी था।  एक दिन उसके घर पर बहुत चहल पहल थी बहुत से लोग आये हुए थे। उसकी बड़ी बहन की शादी
 





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