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Showing posts from 2017

DIL TUMHARA JAB CHURAYA JAYEGA.. GHAZAL

आदाब दिल तुम्हारा जब चुराया जाएगा दोष तुमपर ही लगाया जाएगा इस मुहब्बत में फ़क़त पहले पहल तुमको पलकों पर बिठाया जाएगा तोल लेना पर को तुम अपने यहाँ तुमको ऊँचा भी उड़ाया जाएगा उड़ना लेकिन छोड़ मत देना ज़मीं तुमको नीचे भी गिराया जाएगा झांकना मत आंखों में वो फ़र्ज़ी है ख़ाब झूठा ही दिखाया जाएगा बढ़ रहे आहिस्ता से तुम मौत को यह नहीं तुमको बताया जाएगा है मुहब्बत खूबसूरत सी बला जाल में इसके फंसाया जाएगा प्यार में वादा करो पर सोच कर देखना, तुमसे निभाया जाएगा यह नहीं कहता मुहब्बत मत करो टूट कर क्या तुमसे चाहा जाएगा जो मुहब्बत पाक सी है 'आरज़ू' उसके आगे सर झुकाया जाएगा आरज़ू-ए-अर्जुन

DIL KYO.N MERA HAR GAM KO SAHTA HAI.. GHAZAL

आदाब दिल ये मेरा क्यों हर ग़म को सहता है मजबूर नहीं जब, फिर किससे डरता है हर दिन सोचे अपने कल के बारे में क्यों वो आज नहीं जी भर के जीता है तुम लाख बचाओ दामन अपना इससे ये ईश्क सभी के दिल में घुस के रहता है खानी दो ही रोटी पीना पानी जब क्यों तू हरपल पैसा पैसा करता है लड़की का वालिद होना आसान नहीं वो आंसू पीता, शोलों में जलता है तू मत इतरा बेटे की पैदाइश पे श्रवण बेटे जैसा कौन निकलता है मजबूर नहीं है बात कोई सुनने को बस बेटी की ख़ातिर वो सुन लेता है वो सोने की थाली से भी नाखुश है मुफलिस भूखा रह के भी पल जाता है तू कर सकता है पार ये दरिया 'अर्जुन' तू चाहे तो चट्टान गिरा सकता है आरज़ू-ए-अर्जुन

चलो योग करें

Aaj ke yoga divas par meri ye rachna..          चलो योग करें एक  काम सभी  हम रोज़ करें योग   करें   चलो   योग   करें भारत  की  पहचान   है   यह वेद-पुराण  का  ग्यान  है  यह स्वस्थ   विश्व   कल्याण   हेतु जन जन का अभियान है यह सीखें    और     प्रयोग    करें योग   करें   चलो   योग   करें मन  को निर्मल  करता  है यह तन को  कोमल  करता है यह है  यह  उन्नति  का  मार्ग  भी सबको  चंचल  करता  है  यह बस  इसका  सद  उपयोग करें योग   करें   चलो    योग   करें पश्चिम   ने   अपनाया   इसको सबने   गले   लगाया    इसको रोग  दोष   से  पीड़ित  थे  जो राम  बाण  सा  बताया  इसको सादा    जीवन   उपभोग   करें योग   करें    चलो   योग   करें आरज़ू-ए-अर्जुन

Tera seena ho jisse tar...

आदाब तेरा  सीना  हो  जिससे  तर  मैं  वो बौछार बन जाऊँ तेरेे   सूखे  लबों   पे  आब  मैं   हर  बार   बन  जाऊँ निभाऊं  फ़र्ज   सब  अपने  मुझे  ये  ज़िंदगी  जो  दे जो सबकुछ भूल कर हसता है वो किरदार बन जाऊँ भंवर  से  खींच  लाये  जो  डरी  कश्ती  किनारे  पर मुझे  दे  हौसला  मालिक  मैं  वो  पतवार  बन जाऊँ सदा  चलती  रही आंधी जहाँ नफ़रत की दहशत की उसी  वादी  में  चाहत अम्न  का  गुलज़ार बन जाऊँ कभी  फुर्सत  नहीं  मिलती  मेरी  मां  को  मेरे घर से मै  अक्सर  चाहूं  ये  उनके  लिए  इतवार  बन जाऊँ कभी  अंगूर   की   बेटी   से   चाहत  की  नहीं   मैने पिलाओ  तुम  अगर आंखों से तो मयख़ार बन जाऊँ मेरे  गीतों  में  ग़ज़लों  में  मिले  खुशबू  मुहब्बत  की मैं  अपने हर  सुख़न में  मीठी सी झनकार बन जाऊँ मुझे  तुम   सोचते  हो   बस  तुम्हारी  'आरज़ू'  हूँ  मैं मगर  मैं   सोचता  हूँ   ये   तेरा   संसार   बन   जाऊँ आरज़ू-ए-अर्जुन

Teri murli bhulaye kaam saare

................राधे श्याम................... तेरी   मुरली    भुलाये.   काम    सारे बसा   मन   में   मेरे   मोहन  तू  प्यारे सताये  गोपियों    को    शाम    सुंदर कभी    होरी   में    उनपे    रंग   डारे हो  मुरलीधर  कभी गिरिधर तू कान्हा है   लाखों   नाम   दुनिया  में   तुम्हारे तुम्हीं  गीता  तुम्हीं   हो   सार  उसका तुम्हीं   हो   मार्ग   दर्शक   भी   हमारे है  दिल  में  क्या छुपा  सब जानते हो भरी   झोली   तुम्हें   जो   भी   पुकारे जो तुझको इक नज़र  बस देखे मोहन बता  कैसे  न  दिल  अपना   वो  हारे तेरे   दर   का   भिखारी   आरज़ू    है पड़ा   है   दर    पे    वो    तेरे   सहारे आरज़ू-ए-अर्जुन

Tera seena ho jisse tar..

आदाब तेरा  सीना  हो  जिससे  तर  मैं  वो बौछार बन जाऊँ तेरेे   सूखे  लबों   पे  आब  मैं   हर  बार   बन  जाऊँ निभाऊं  फ़र्ज   सब  अपने  मुझे  ये  ज़िंदगी  जो  दे जो सबकुछ भूल कर हसता है वो किरदार बन जाऊँ भंवर  से  खींच  लाये  जो  डरी  कश्ती  किनारे  पर मुझे  दे  हौसला  मालिक  मैं  वो  पतवार  बन जाऊँ सदा  चलती  रही आंधी जहाँ नफ़रत की दहशत की उसी  वादी  में  चाहत अम्न  का  गुलज़ार बन जाऊँ कभी  फुर्सत  नहीं  मिलती  मेरी  मां  को  मेरे घर से मै  अक्सर  चाहूं  ये  उनके  लिए  इतवार  बन जाऊँ कभी  अंगूर   की   बेटी   से   चाहत  की  नहीं   मैने पिलाओ  तुम  अगर आंखों से तो मयख़ार बन जाऊँ मेरे  गीतों  में  ग़ज़लों  में  मिले  खुशबू  मुहब्बत  की मैं  अपने हर  सुख़न में  मीठी सी झनकार बन जाऊँ मुझे  तुम   सोचते  हो   बस  तुम्हारी  'आरज़ू'  हूँ  मैं मगर  मैं   सोचता  हूँ   ये   तेरा   संसार   बन   जाऊँ आरज़ू-ए-अर्जुन

Ek kataa

आदाब समय कैसा क़हर बरपा गया है के हर रिश्ता कटहरे आ गया है उजाला आंख  मूंदे  है  डरा  सा अंधेरे  से  ये क्यों  घबरा गया है आरज़ू

Ye koun hai....

"ये कौन है " ये कौन है ! जो परिंदों से पहले उठ गया है, जिसके पैरों की टापों से सोये पड़े झिंगुर डर गए हैं, उस खामोश से कोने में क्या सरसराहट शुरू हो गई है, ये दराती, कुदाल किससे सरगोशी कर रही है, ये  कौन है जो नंगे पांव चला जा रहा है, चला जा रहा है.. बेताब सा दिल,  बेचैन निगाहें, और पुतलियों में समय को पार करने की बेकली, क्यारी क्यारी को निहारता ये कौन चला जा रहा है, चला जा रहा है.. गुसैल दराती, मिट गई, छुप गई लकीरों वाले हाथों में पड़ी खरपतवार पे चंडी की तरह सवार है, कुदाल मज़बूत कलाईयों में जकड़ कर धरती पर कौन सी रेखाएं खींच रहा है.. ये कौन है ! जो तारों की दुधिया रौशनी में ज़मीन सींच रहा है.. ये कौन है ! जो मिट्टी में तकदीर ढूँढ रहा है ये कौन है ! जो परिंदों से पहले उठ गया है ये कौन है! जो सूरज से पहले उठ गया है आरज़ू-ए-अर्जुन

Aarzoo ke dohe..

आरज़ू फकीर के दोहे नमन सबको सत्ता के आकाश पर,  कागा अब मंडराए वोट दिया जब काग को, हंस कहां से आए झूठ को बोलूँ सत्य मैं, सत्य को बोलूँ झूठ सत्य अगर मैं बोल दूं , ये  जग  जाये  रूठ भूधर  जलता  खेत  में,  खून  पसीना  होय माटी माटी हो गया, जग से मिला क्या तोय दो  निवाले  अन्न  को,  तरसे  हैं  कुछ  पेट कुछ तारे गिन के सो गये,कुछ आंसू पी के लेट पंछी के जब पर  हुए,  उड़ा छोड़ कर नीड़ जिसने उसको पर दिए,  भूला उसकी पीड़ कहता है  ये  आरज़ू,  सुनो लगा  कर ध्यान गुण बक्शा भगवान ने, मत करना अभिमान आरज़ू  (फकीरा)

मुक्तक...पेश है...

नमन साथियो मुक्तक पेश हैं ...                                1. नियम से जो बंधे थे कल  उन्हें आजा़द कर डाला चला कर गोलियां भूधर पे उनको खाद कर डाला हवाला,  कोयला, चारा था, खेलों  में  घोटाले अब सियासत  ने  वतन  को लूटकर  बर्बाद कर डाला                                 2. हुए कुर्सीनशीं तो क्या वो खुद को क्या समझते हैं बनीं  जब जान पे पतली  गली से  वो निकलते हैं ज़रूरी तो  नहीं  है  ये  टिकें  वो  पांच  सालों तक बिठाया तख्त  पे  जिसने उन्हीं से  क्यों उलझते हैं                                 3. वतन  के  बागबां  हो  तुम  कली, गुन्चा न मुर्झाये मिटे ये  तिश्नगी सबकी  निवाला मुख तलक आये न  पंखे  से  कोई  झूले, न  खाये  जह्र  अब  कोई जो जिस काबिल वतन में है उसे वोकाम मिल जाये आरज़ू

filbadeeh 74.. baad e saba

बाद-ए-सबा आॅनलाईन 'मुशायरा' कार्यक्रम 🌹 🌹 🌹 फ़िलबदीह संख्या-(74 ) 🌹 🌹 🌹 दिनांक- 11 /6 /2017 🌾 🌾 🌾 दिन- <<< रविवार >>>। 💐 💐 💐 समय-शाम  4 :00 बजे से 🍉 🍉 🍉 आदाब ! दोस्तो.. आज का फ़िलबदीह मुशायरा मशहूर शायरजनाब " आरज़ू-ए-अर्जुन " साहब के ऐज़ाज़ में आप ही के मिसरे पर मुन्अक़िद है... 🍉 🍉 🍉 ♀ तर्ही मिसर'अ ♀ ** " आज फिर वो दिल दुखाने आ गए " ** 🍓 🍓 🍓 ♀ वज़न ♀ 2122---2122----212 🌹 🌹 🌹 ♀ अर्कान ♀ फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन  फाइलुन 🍉 🍉 🍉 ♀ बहर ♀ बहरे - बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ । 🍎 🍎 🍎 ♀ क़ाफ़िया = दुखाने, "आने" की बंदिश ♀ 🍅 🍅 🍅 ♀ रदीफ़ =... आ गए । ♀ 🍅 🍅 🍅