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Showing posts from May, 2016

हमें आज भी याद करते तो होंगें। ( ghazal )

ग़ज़ल  मात्रा :122 122 122 122 रदीफ़ : तो होंगे काफ़िया : ( करते, "ऐ" स्वर )  --------------------------------------------------------------- हमें आज भी याद करते तो होंगें। निगाहों से आँसू बरसते तो होंगें।। कभी चाहतों को छुपाया नहीं था। अभी दिल हि दिल में सुलगते तो होंगे।। वही   आइनें  हैं  वही  सूरतें  भी। कई सूरतों  को बदलते  वो होंगें।। लबों से नमीं भी  खफ़ा हो गई  है। ज़रा सी हसी को तरसते वो होंगें।। किसी रोज़ फिर से मुलाक़ात होगी। हमारे लिये आह भरते वो होंगें।। हमें  बारहा  मार   देने  से  पहले। कई बार शोलों में जलते वो होंगें।। बड़ी  बेरुख़ी  से  हमें  छोड़  आये। हमारे लिये अब मचलते वो होंगें।। अरे 'आरज़ू ' तो  दिवाना तुम्हारा। तुम्हारे लिये हम भी मरते तो होंगें।। आरज़ू-ए-अर्जुन Note : इसमें (तो) (हि )और (भी)  तीनों  लघु स्वर हैं इसलिए उनको मात्रा (1 ) में गिना गया है  

चलो फिर से सफ़र करते हैं

चलो फिर से सफर करते हैं चलो फिर से सफ़र करते हैं नई मंजिल को नज़र करते हैं सजाते हैं फिर कुछ नई राहें नए काफ़िले में बसर करते हैं                    चलो फिर से सफ़र करते हैं। आँखों पर कोई ग़ुबार न हो देखना कहीं तुझे ख़ुमार न हो यह मय से मय्यसर होकर दिल पे गहरा असर करते हैं                    चलो फिर से सफ़र करते हैं। इस बार ऊर्जा बचा के रखना अपनी कमीयां छुपा के रखना दूर रहना तुम ऐसे बशर से जो धूप में  शज़र करते हैं                   चलो फिर से सफ़र करते हैं। देखना इस बार वक़्त न गुज़रे राहों पे तेरा रक्त न गुज़रे आखरी पहर गुज़रने से पहले अपनी पूरी कसर करते है                   चलो फिर से सफ़र करते हैं। उतार के जीस्त झंडा फ़हरा दो जीत के निशान को लहरा दो जहाँ पे हो गर्व सभी को कोई ऐसी रहगुज़र करते हैं                  चलो फिर से सफ़र करते हैं।   आरज़ू-ए-अर्जुन 

हमीं बस थे कहीं भी वो नहीं था ( ghazal )

ग़ज़ल  बहर -  1222        1222        122 बहर - मुफाईलुन, मुफाईलुन, फऊलुंन काफ़िया ( 'ओ' स्वर ) रदीफ़ ( नहीं था ) ------------------------------------------------- हमीं बस थे कहीं भी वो नहीं था मेरी चाहत के काबिल वो नहीं था जिसे सारी उमर कहते थे अपना रहे  हम ग़ैर अपना वो नहीं था किसे कहते यहाँ पर दर्द दिल का किसी पे अब यकीं दिल को नहीं था रहे बिखरे यहाँ पर हम फ़िसल के कभी ख़ुद को समेटा जो नहीं था  कभी तोडा कभी उसने बनाया खिलौना पास खेलने को नहीं था बुरा कहते नहीं हम ' आरज़ू ' को बुरे थे हम बुरा पर वो नहीं था आरज़ू-ए-अर्जुन 

ग़ज़ल (कहीं ऐसा न हो जाये वसल के दिन क़यामत हो )

ग़ज़ल  बहर : 1222 1222 1222 1222 ( मुफाईलुन * 4 )  काफ़िया ( अत आज़ाद  स्वर ) रदीफ़ :- हो  कहीं ऐसा न हो जाये वसल के दिन क़यामत हो ख़ुदारा माफ़ करना तुम मेरा यारा सलामत हो तेरी चाहत मेरी हसरत यही आँखों में बस जाये अगर दिलबर ज़रा सी यह तेरी नज़रें इनायत हो वफ़ा में काश ऐसा हो गिला मुझसे ख़ुदा को हो बना के बुत तेरी पूजा अदा करना रिवायत हो अभी दिल ने नहीं सीखा इश्क़ की आग में जलना नहीं चाहे मेरा यह दिल कहीं कोई अदावत हो अगर आये कहीं वो दिन मेरा तुमसे जुदाई का ख़ुदा हाफ़िज़ कहूँ तुझको ख़ुदा इतनी रियायत हो फ़ना होना यही किस्मत जहाँ में 'आरज़ू ' है तो तेरी बाँहों में मरना ही सितमगर एक हिदायत हो आरज़ू-ए-अर्जुन

KHUDA KHAIR KARE

"अल्लाह ख़ैर करे" आज आदमी की कीमत कपड़ों से लगाई जाती है और उसकी औक़ात उसके जूतों से बताई जाती है कोई फ़र्क नहीं पड़ता किस काबिल होगा नेता वो हर दागी पैसे वाले को आज कुर्सी थमाई जाती है अब मुर्दा लोगों का भी यहाँ ऑप्रेशन हो जाता है ग़रीब की मज़बूरी से बस रक़म कमाई जाती है असल  में लुटती है आबरू लड़की की कचहरी में चंद पैसों की ख़ातिर ईज्जत लूटी-लुटाई जाती है ख़्वाब सा लगने लगा है अब बच्चों की पढ़ाई यार रिश्वत खोरी को अब यहाँ डोनेशन बताई जाती है किताबों की बातें काला झूठ डेरों की बातें सच्ची हैं भगवान् के पर्याय को यहाँ गुरु गुरु पढ़ाई जाती है वक़्त कहाँ  है अब हमें, अपनों को  समझाने का अब तो मर्ज़ी आपकी S M S पर दिखाई जाती है अल्लाह ख़ैर करे दीवाने आरज़ू जैसे बन्दों पे उनके तीखें अल्फ़ाज़ों से बस आग लगाई जाती है AARZOO-E-ARJUN    

स्कूल की याद "

"स्कूल की याद " याद आते है वो पल हमें जब हम ਇਕਠੇ ਪੜਿਆ करते थे तेरे पीछे पीछे ਸਕੂਲੇ शायद हम जल्दी ਵੜਿਆ करते थे तुम गोल गप्पों पे मरती थी हम तुझपे ਮਰਿਆ करते थे प्रार्थना वक़्त बेचैन सी नज़रें हम तुझपे ਧਰਿਆ करते थे क्यों देखती थी उस ਘੁੱਗੂ ਜਿਹੇ को हम बहुत ਸੜਿਆ करते थे तुम जाती थी घर पैदल अपने तेरा ਪਿਛਾ ਕਰਿਆ करते थे तेरा गंजा बापू पकड़ के हमको हमारे ਕੰਨਾ ਤੇ ਜੜਿਆ करते थे बड़ी बोरिंग होती थी SUNDAY हम ਮਖੀਆਂ ਫੜਿਆ करते थे तुम गाडी पे आती शूं करके हम स्टैंड पे ਖੜਿਆ करते थे  तेरे घर की ਗੇੜੀ लगाने को कई बहाने ਘੜਿਆ करते थे तेरी ख़ातिर दोस्तों के साथ हर रोज़ ਲੜਿਆ करते थे जब पता चला तेरे चक्क्रों का अपने  ਬੋਦੇ ਪਟਿਯਾ करते थे तू पढ़ लिख ਵਿਆਹ ਕਰ ਬਚੇ ਜੰਮ लए हम  ਮਾਮੂ ਬਣਿਆ करते थे याद आते है वो पल हमें जब हम ਇਕਠੇ ਪੜਿਆ करते थे आरज़ू-ए-अर्जुन          

गीत ( तुम ख्यालों में भी जब )

गीत ( तुम ख्यालों में भी जब ) तुम ख्यालों में भी जब छू लेते हो और भी खुशनसीब हो जाते है रोक लो आँखों को गुस्ताखियाँ करने लगी यह मनचली रोक लो होटों को वह दास्ताँ कहने लगी जो अनकही चुपके से आ, कहदो ज़रा, दिल में तेरे, क्या है बता तुम ख्यालों ---------------------------------- चांदनी रातों में यह चाँद सा चेहरा तेरा पागल करे संगेमरमर सा ये तेरा बदन मुझको सनम कातिल लगे किसने कहा, कातिल नहीं, तेरी सनम, हर इक अदा तुम ख्यालों ----------------------------------- तुम ख्यालों में भी जब छू लेते हो और भी खुशनसीब हो जाते है आरज़ू-ए-अर्जुन