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" चुभन "

" चुभन "

बड़ा सुकून है तेरी बाहों में आकर
अब तक दुनिया में यूँ ही भटकता रहा।
तेरी धड़कनों को सुनकर वो राहत मिली
जिसकी आरज़ू मैं बरसो से करता रहा।
समेट लो इसकदर अपनी बाहों में मुझे
कि समा जाऊ तुझमे,
जो अबतक कहीं बिखरता रहा।
किसी जन्नत की आरज़ू नहीं थी मुझे
तेरी आँखों में बसने की तमन्ना करता रहा।
गुजरी है ज़िंदगी मेरी कुछ इस तरह
बेवजह सा जीता रहा बेवजह मरता रहा।
इन जख्मों से कहाँ डरता था मैं आरज़ू
खुद ही गिर गिर के संभालता रहा।
दिल में रंज होटो पे हसी सजाते थे लोग
इसे ही सच्ची मुस्कुराहट समझता रहा। 
मैं पूछता था इन हवाओ से मंजिल का पता
जब भी इन पेचीदा राहों से गुजरता रहा।
नहीं मिला सुकून ज़िंदगी की कशमकश में
खुदी की आग में अब तक सुलगता रहा।
बड़ा सुकून है तेरी बाहों में आकर
अब तक दुनिया में यूँ ही भटकता रहा।

आरज़ू-ए-अर्जुन 

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