Skip to main content

Posts

Showing posts from 2014

तिरंगा

तिरंगा इतना ख़ून से सींचा तब यह सुकूने आज़ादी मिली है हमको रुख्सत हुए हैं इस यकीन से के जान सौप दी है तुमको, श्रद्धा सुमन करना तुम अर्पित जब भी तिरंगा लहराए यारो, बड़ी  सुकून की  नींद मिली है  जब लिपटा इसमें पाया खुदको ( आरज़ू )

" बाबुल "

" बाबुल " ओ बाबुल तेरा कैसे करूँ शुक्रिया ओ बाबुल तूने मुझे जो भी दिया याद वो आये बचपन की यादें तेरी मीठी प्यार की बाते रात सुनाये परियों की कहानी सो जा मेरी गुड़िया रानी मेरे लिए फिर माँ को मनाना बेचैन करें तेरा छुप जाना बसती थी तुझमें मेरी इक दुनिया ओ बाबुल तेरा कैसे करूँ शुक्रिया तेरे अंगना मैं सखियों से खेली सोचते रहते थे तेरी पहेली बाँहों का तेरा झूला झुलाना ऊगली पकड़ कर पढ़ने को जाना बेमतलब ही यूँ ही रूठ जाना हाथ जोड़ कर मुझे मनाना सोच के मेरी छलके री  अखियाँ ओ बाबुल तेरा कैसे करूँ शुक्रिया मेरे लिए वो लोगों  की बातें मेरे लिए तू लोगों को डांटे देखते थे मेरी शादी के सपने दुश्मन से जब हो गए थे अपने तुमने फिर भी फ़र्ज़ निभाया हो के तनहा मुझे बसाया छलकी सी अँखियों से करके विदा ओ बाबुल तेरा कैसे करूँ शुक्रिया.                (  आरज़ू ) 

MEENAARZOO

" आरज़ू-ए-अर्जुन " -------------------------------------------- एक गूंज सी सुनाई दी है ये आवाज़ जानी पहचानी सी है दिल बेचैन सा हो उठा है मेरा शायद तूने ज़ोर से साँस ली है ------------------------------------------- एक अलग से एहसास ने मुझको छुआ है एक अजीब सा दर्द इस दिल को हुआ है अपनी सी लगने लगी है ये खुदगर्ज़ सी दुनिया जबसे मुझे, तुमसे ये  इश्क़ हुआ है. ------------------------------------------- बेमतलब नहीं  होता दिल का धड़क जाना बेमाइने नहीं होता आँखों का तड़प जाना फिर कोई दिल में बसे यां आँखों में बड़ा मुश्किल होता है इससे निकल पाना -------------------------------------------- हवाओं से खेलता ये तेरा आँचल फ़िज़ाओं में गूंजती ये तेरी हसी घटाओं से उलझती ये जुल्फें तेरी और होटो पे एक बात है दबी-दबी तुझे देख कर दिल कहता है मेरा तेरे बिन अब जीना नहीं, नहीं, कभी नहीं -------------------------------------------- मेरी बेतरतीब सी ज़िंदगी को सँवार दिया हो जैसे मेरे जीने के हुनर को निखार दिया हो जैसे मैं तो बिखरा पड़ा था तेरी राहों में कहीं तूने बाहों में समेटा,

शायरी

है सोज़ तेरे साज़ में भी और आवाज़ में भी छेड़ तराना एक ऐसा यारा के झूम उठे  दिल, ग़म के अंदाज़ में भी         ( आरज़ू ) दिल के अंजुमन में जिसे तराशा था उम्रभर वो गैर के महफ़िल की ज़ीनत बन गई करें शिकवा क्या इस बेवफाई का दोस्त , यहाँ तो खुदा कि खुदाई भी एक कीमत बन गई    ( आरज़ू ) जीते जी उसके लबों की  हँसी न बन सका मैं मर के आंसू बना तो भी आँखों से बह गया मैं        ( आरज़ू )   एक रात की बात है बस गुजर जाएगी ए दिल थोडा ठहर फिर सहर आएगी है सिसकने से बेहतर चुपचाप दम तोड़ देना ये बेमुरव्त दुनिया बस अपने जशन मनाएगी       ( आरज़ू)   

( आरज़ू की कलम से )

  ( आरज़ू की  कलम से ) बस एक रात की  बात है गुजर जाएगी ए दिल ज़रा थोडा ठहर फिर सहर आएगी आँखों से एक आंसू भी छलकने न देना तुझे रोता देख ये दुनिया मुस्कुराएगी होठो को सी लेना आह न निकले कहीं तेरा दर्द सुनके दुनिया तमाशा बनाएगी दिल की गुस्ताखियों को चल माफ़ भी करदे  इसके बाद तेरे आँखों की  बारी आएगी करना है तो अपने हालात से प्यार करले जाने कल ये कौन सा फलसफा सिखलायेगी है बेदर्द ज़माना या दुनियां का दस्तूर है एक हाथ से देकर दूसरे हाथ लेकर जाएगी है सिसकने से बेहतर चुपचाप दम तोड़ देना ये बेमुर्रवत् दुनिया अपने जशन मनाएगी                          ( आरज़ू )  

शायरी

AARZOO KI KALAM SE उनका तस्सुवर भी क्या करते जो रकीब के साथ थे, करूँ सजदा या नज़रों से गिरा दूँ बड़ी मुश्किल में ज़ज़बात थे, किया करीब एक तमाशायी को सितमगर और किया दूर, जो सदियों से पास थे।                           फूलों की चाहत है तो काँटों से भी दिल लगाना होगा मंजिल की चाहत है तो राहो को भी सजाना होगा , यह इश्क़ रूठने मनाऩे का खेल नहीं है आरज़ू , यहाँ  तो हद से भी गुजर जाना होगा ..........                 वो मोड़ गए है दिल कुछ सामान अभी बाकी है वो गुजरे ज़माने की पहचान अभी बाकी है तू मिटा दे चाहे अपने दिल की किताब से मुझे वो आखरी बेंच पे तेरा मेरा नाम अभी बाकी है वो गए ज़माने जब हारते थे इस दिल को , आज जीते है कई दिल और ज़हान अभी बाकी है …     तूं  महके खुशबुओं में नहा के सनम हमें तो खुश्बू खून पसीने से आये तू छलकाये शराब कातिल निगाह से हमें तो नशा मस्त मलंग होकर आये , तेरा रूप सुनहरी दोपहर जैसा हमे तो सिर्फ चांदनी राहत पहुंचाये तू बदलती रहती है ज़ायके ज़बान के हमे तो सिदक दो मिस्सी रोटी में आये, न लगा यारी इस फ़क़ीर गरीब से यह ऊंच नींच की दुनिया देख न सुखाये, है

आरज़ू की कलम से

पानी की तरह रंगहीन , गंधहीन था आरज़ू इस दुनियां ने रंग भरे और गन्दा कर दिया         ( आरज़ू )          मैं  ज़मीन की जड़ से जुड़ा हूँ      आकाश में उड़ना मुझे नहीं आता है    सर उठा कर चलना तो फितरत है मेरी वरना ! आकाश तो क्षितिज पे झुका नज़र आता है    (आरज़ू ) मैं हवा था इस गुलशन में महका सा कहीं, क्या खबर थी , सेहरा में जलना भी होगा और तूफनों में चलना भी होगा एक कशमकश सी रहती है अक्सर अपने वुज़ूद को लेकर, मेरी वज़ह से उसे बसना भी होगा और उजड़ना भी होगा           (आरज़ू ) इतना  सोच समझ के फैसले क्यों लेता है तूं , लोग फैसला लेके उसे साबित कर देते है आरज़ू               ( आरज़ू )   हाथ की लकीरों में क्या ढूंढ़ता था आरज़ू तकदीर तो मुट्ठी में बंद थी जब देखा उस तकदीर को सामने तो कम्बख्त मेरी साँसें ही चंद थी        (आरज़ू )