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Showing posts from March, 2014

शायरी

है सोज़ तेरे साज़ में भी और आवाज़ में भी छेड़ तराना एक ऐसा यारा के झूम उठे  दिल, ग़म के अंदाज़ में भी         ( आरज़ू ) दिल के अंजुमन में जिसे तराशा था उम्रभर वो गैर के महफ़िल की ज़ीनत बन गई करें शिकवा क्या इस बेवफाई का दोस्त , यहाँ तो खुदा कि खुदाई भी एक कीमत बन गई    ( आरज़ू ) जीते जी उसके लबों की  हँसी न बन सका मैं मर के आंसू बना तो भी आँखों से बह गया मैं        ( आरज़ू )   एक रात की बात है बस गुजर जाएगी ए दिल थोडा ठहर फिर सहर आएगी है सिसकने से बेहतर चुपचाप दम तोड़ देना ये बेमुरव्त दुनिया बस अपने जशन मनाएगी       ( आरज़ू)