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Showing posts from March, 2016

"ऐसी होती है हसी "

"ऐसी होती है हसी " अठखेलिओं से भरी, बेपरवाह, अल्हड़, बेमतलब सी खिलखिलाती, दिल और दिमाग की गहराइयों से बेमुख, जो किसी को भी हँसा दे, जो किसी की भी परेशानी मिटा दे ऐसी होती है लड़कपन की हसी, बचपन की मुस्कान। ज़िंदगी की डगर पर ज़िम्मेदारी के सफर पर, खुदी में मुस्कुराती, खुदी से बतियाती, खुदी को खामोश करती खुदी को हसना सिखाती  लबों की जगह आँखों से मुस्कुराती ऐसी होती है जवानी की हसी जवानी की मुस्कान।    मंजिल पे पहुंच कर यां मंजिल से बिछड़ कर ज़िंदगी से दो चार होती हुई ज़िंदगी से लाचार होती हुई गुमें हुए यादो के सहारे छूपे हुए ख़्वाबों के सहारे कुर्सी पे बैठ अख़बार के सहारे पीरी तलाशती है कुछ हसी ऐसी होती है पीरी की हसी पीरी की मुस्कान।  आरज़ू-ए-अर्जुन 

मैं जानता था उसदिन भी

"मैं जानता था उसदिन" तेरे लबों की लरज़िश झुकती पलकों की हया और पैरहन में लिपटा महताबे नूरे बदन तेरा मैं आज भी मुंतज़िर हूँ उसी लम्हें में..... एक अरसा गुज़र गया उस वाक्या को गुजरे मगर तेरी आँखों का आबोशार, बरहम ज़ुल्फें, हथेलियों से उंगलीयों को दबाती हुई सुन्न सी झुके सिर को लिए आज भी खड़ी हो तुम मेरे सामनें मैं जानता था उसदिन भी मैं जानता हूँ आज भी तेरे पास कोई जवाब नहीं होगा तेरी रूखसती का...... मैं जानता था मेरी सुर्ख लाल मोहब्बत की चादर तेरे बाबुल की ग़ुलाबी पगड़ी और मां की धानी चुनरी से जरूर फीकी रह जाएगी तुमने सुर्ख चादर उतार कर सुर्ख चुनरी ओढ़ ली... उस दिन कांपती सी तुम लौटी और लड़खड़ाता मैं आया न तुमने कोई आवाज़ सुनी न मैं ही कुछ कह पाया मैं जानता था उसदिन भी मैं जानता हूँ आज भी अब रूह के बिना जीना ही मुकद्दर होगा। .... आरज़ू-ए-अर्जुन

ghazal लो उठा लिया है जाम फिर मैंने

ग़ज़ल  मात्रा ( 2121 2121 1122 या (2121))फाइलात लो उठा लिया है जाम फिर मैंने तोड़ दी कसमें तमाम फिर मैंने मिलती है राहत तो वाजिब पीना कर दिया खुदको गुलाम फिर मैंने जान लेंगें वो दर्दे दिल की वज़ह छोड़ा है ख़त में निशान फिर मैंने दिल है मेरा क्यों किसी को दे दूँ कर दिया सबको सलाम  मैंने मैं कहीं भी हूँ लापता अब नहीं रखा है खुद पे इनाम फिर मैंने दिल की तख्ती पे पिघली कलम से लिखा है जलता कलाम फिर मैंने कौन ज़िंदा है सितमगर यह बता छोड़ी है लाश बेनाम फिर मैंने आरज़ू भटकता फिरता है यहाँ पाया है कैसा मोकाम फिर मैंने आरज़ू-ए-अर्जुन 

NAZAM बड़ी दिलकश ज़िंदगी की हर एक अदा है

  ( नज़म ) बड़ी दिलकश ज़िंदगी की हर एक अदा है  रंगीं इस दुनियां का हर रंग जुदा जुदा है  ठहराव है कहीं पे कहीं पे एक सफर है  अंधियारा है कहीं पे कहीं मीठी एक सहर है  मंजिल से लड़ता कोई तो कोई गिर पड़ा है  बड़ी दिलकश ज़िंदगी की हर एक अदा है राहों में होंगे फूल या काँटों का रास्ता है  मंजिल नहीं करीब मीलों का फासला है  अपना लो जो मिले आज कल का क्या पता है  बड़ी दिलकश ज़िंदगी की हर एक अदा है कल कौन रह सकेगा यह कौन जानता है  यह ज़िंदगी उसी की जो जीने में मानता है  हारेगा हर वो इन्सां जो जीने से डर गया है  बड़ी दिलकश ज़िंदगी की हर एक अदा है आये हो दुनिया में तो ए बन्दे प्यार कर ले जी के देख ज़रा तू इसमें ज़रा सा मर ले  है प्यार की यह दुनिया मोहब्बत ही खुदा है  बड़ी दिलकश ज़िंदगी की हर एक अदा है आरज़ू-ए-अर्जुन   

EK GEET तेरी तालाश में मैं आज भी हूँ

गीत तेरी तालाश में मैं आज भी हूँ उसी प्यास में मैं आज भी हूँ नहीं रहती सदा साथ परछाईयाँ महफ़िल में भी होती थी तन्हाईयाँ उसी कारवां में मैं आज भी हूँ तेरी तालाश में मैं आज भी हूँ बेखुदी में तेरे करता रहा सफ़र तस्सव्वर में तेरे कटता रहा सफ़र ख़ुदी से हूँ खुश, नाराज़ भी हूँ तेरी तालाश में मैं आज भी हूँ मैं खाखसार तू चमकता सितारा मैं खोई सी मौज़ तू बहता किनारा एक खुली किताब और राज़ भी हूँ तेरी तालाश में मैं आज भी हूँ भटकता हूँ तेरी राह में सितमगर ढूंढ़ता तेरे निशान को यूँ दर बदर एक दबी सी आह आवाज़ भी हूँ तेरी तालाश में मैं आज भी हूँ आरज़ू-ए-अर्जुन 

गीत (मुझे लड़ना है हालात से, साँसे अभी बाकी है)

गीत  मुझे लड़ना है हालात से, साँसे अभी बाकी है मुझे बढ़ना है उसी राहपे मंजिल अभी बाकी है मेरी आँखें आज भी ख्वाबों से रूठे है वो सपने आज भी बिखरे से टूटे है अभी आँखों को तो मनाया है सपने अभी बाकी है, सांसे अभी बाकी है मुझे लड़ना है हालात से, साँसे अभी बाकी है..... मेरे पैरों से बंधी हैं गर्दिश की बेड़ियाँ मेरी राहों से गुज़रती नफरत की आँधियाँ अभी बंधन ही तो काटा है मंजिल अभी बाकी है , सांसें अभी बाकी है मुझे लड़ना है हालात से, साँसे अभी बाकी है..... मेरे दिल की अनकही मेरे होटों पे रुकी दुनियां से ग़मज़दा अपनों की बेरुख़ी अभी दिल ने तो पुकारा है अपने अभी बाकी है , सांसे अभी बाकी है मुझे लड़ना है हालात से, साँसे अभी बाकी है मुझे बढ़ना है उसी राहपे मंजिल अभी बाकी है आरज़ू-ए-अर्जुन    

( ग़ज़ल ) ज़िंदगी का सामना कर के मुस्कुराता कौन है

ग़ज़ल  ज़िंदगी का सामना करके मुस्कुराता कौन है तरन्नुम में है ज़िंदगी पर गुनगुनाता कौन है है तमाशाई सभी हर ज़गह हर मोड़ पर यहाँ अब दिल के शालों को दिखलाता कौन है है मोहब्बत की आरज़ू भी कई जन्मों तक पर चार दिन की वफ़ा भी निभाता कौन है अब कौन सा रिश्ता पाक रह गया जहाँ में आँख मूँद कर बेटी का हाथ पकड़ाता कौन है हमने तो उम्र गुज़ार दी उसे अपना कहकर आज बेसबब किसी को अपना बनाता कौन है चार खानो में बाँट रखा है धर्मों को हमने है सबका मालिक एक पर बताता कौन है कभी रूह में समा जाते थे प्यार में आरज़ू आज आँखों में भी फ़क़त समाता कौन है आरज़ू-ए-अर्जुन 

(ग़ज़ल ) तुमसे मुलकात हो गई है

ग़ज़ल  रदीफ़ ( गई  है), काफ़िया (ओ स्वर)  फिर वही बात हो गई  है  तुमसे मुलाकात हो गई है सूखे सूखे थे अश्क़ आखों में  आज बरसात हो गई है  दिन गुजरता था आँखों आँखों में  दिन से आज रात हो गई है  देखा था चेहरा कब आईने में  सदियों की बात हो गई  है सुलगे थे अरमां प्यार में तेरे  जल के आज राख हो गई है  तुमसे मुलाकात हो गई है...... आरज़ू-ए-अर्जुन    

मेरा आफ़ताब और माहताब gazal

ग़ज़ल  काफ़िया ( आ स्वर आज़ाद) रदीफ़- रहे, ( मेरा आफ़ताब और माहताब ) हमें आफ़ताब की रौशनी मिले न मिले मेरे माहताब की लौ बस मिलती रहे चाहे भोर का तारा ही बना तू मुझे खुदा बस रात दिन से यह नज़र मिलती रहे क्या करूंगा समंदर को दिल में समाकर प्यार की एक बूंद से यह प्यास बुझती रहे वसल से खूबसूरत होता है पहला इंतज़ार वो कशमकश दिल में यूँही उलझती रहे मैं समा जाना चाहता हूँ उनके रोम रोम में और धड़कन उनकी सांसों से चलती रहे यह चिलमन हटा दो अपने रूख से ज़रा तेरी मदभरी नज़र से यह नज़र मिलती रहे तुम मिराज़ सी रहो मेरे दशतो सुख़न में तेरी तलाश में रूह सहरा सहरा जलती रहे उनके सीने से लगकर होना है फ़ना ऐसे देखकर हमें यह ईश्क भी बस जलती रहे उनके आगोश में आकर भूल जाएंगे खुदा चाहे ये दुनिया हमें काफ़िर करार करती रहे बड़ी कम उम्र है मोहब्बत के लिए आरज़ू खुदा रा अगले जन्म की मोहलत मिलती रहे आरज़ू -ए-अर्जुन 

आहिस्ता आहिस्ता

            आहिस्ता आहिस्ता यह हवा में जो  खुशबु रिस रही है तुम्हारी मदहोश हो रहा है जहां आहिस्ता आहिस्ता ये कानों में क्या कह दिया तुमने फिज़ा के महकने लगी हैं बहारें आहिस्ता आहिस्ता क्यों उड़ने देते हो जुल्फो को शोख़ हवाओं में लो उड़ने लगी है घटा भी आहिस्ता आहिस्ता न कीजिये बातें फूल कलीयों से यूँ हसकर रंज रखने लगे हैं भवरे आहिस्ता आहिस्ता मत निकला करो चांदनी रातों में बनसंवर के छिपने लगता है चाँद भी आहिस्ता आहिस्ता जो नज़र भर के देख लेते हो जब तुम मुझे दीवानें हो जाते हैं हम आहिस्ता आहिस्ता यूँ शर्मा कर न सिमटा करो खुदी में सनम जान जाने लगती है हमारी आहिस्ता आहिस्ता आरज़ू तो लुट चुका है सनम तेरे हुस्न से अब लुट रहे हैं फरिश्ते आहिस्ता आहिस्ता आरज़ू- ए -अर्जुन 

"लौटा दो बचपन मेरा "

"लौटा दो बचपन मेरा " खो गई मासूमियत खो गया है वो समां खो गई मुस्कान वो खो गया है वो जहाँ खो गया मैं ये कहाँ हो गया मैं क्यों जवां लौटा दो वो बचपन मेरा लौटा दो वो बचपन मेरा गलियों में बेख़ौफ़ सा दौड़ना छुपना कभी दोस्तों के वास्ते रूठना लड़ना कभी कांच की थी वो गोलियां जीतकर रखना कहीं वो रंगीन पतंगे मेरी लूटकर रखना कहीं खो गए है वो रास्ते ज़िंदगी के वास्ते लौटा दो वो बचपन मेरा लौटा दो वो बचपन मेरा स्कूल को जाता था मैं टॉफियाँ भी खाता था मैं कॉपियों में छुपके कभी मोगली बनाता था मैं डोनॉल्ड डक टॉम एंड जेरी कभी सुपरमैन भी बन जाता मैं सन्डे की रंगोली कभी शक्तिमान भी बन जाता मैं खो गया वो जादू कहाँ आ गया मैं देखो कहाँ लौटा दो वो बचपन मेरा लौटा दो वो बचपन मेरा लोहड़ी की खुशियां कभी बसंती बहारें मेरी पिचकारी गुब्बारे गुलाल से होती थी होली मेरी रावण के वो पुतले जले फुलझड़ी दिवाली मेरी पीछे पीछे थी भागती राखी पर वो बहना मेरी बाबा की थी वो लाड़ली राजा बेटा कहे माँ मेरी मैं तरसता खड़ा हूँ यहाँ वो मोहब्बत है बिखरी कहाँ लौटा दो वो बचपन मेरा

चन्द अशआर (टूटे हुए ख्वाबों को जोड़ा है कभी)

           चन्द अशआर टूटे हुए ख्वाबों को जोड़ा है  कभी जोड़ के देखो दरारें मिटती ही नहीं हाथों की लकीरों पे यक़ीन करते हो आज बनती है तो कल बनती ही नहीं किस्मत के सितारों पे कैसा भरोसा इनकी चाल एक जैसी रहती ही नहीं खुद को समंदर बना लिया तो क्या होगा प्यास किसी की इससे बुझती ही नहीं खुद को बाँट दिया है 'दो नो'(29) भागो में अब भारत की तस्वीर एक बनती ही नहीं है हर नौजवान आधुनिक तकनीक सा फिर भी ज़िंदगी की राह मिलती ही नहीं हर तालीम से बेटियों को नवाज़ा है आज पर मलाला कल्पना विलियम बनती ही नहीं बेटे के जन्म पे इतने खुश हो आज तुम सबकी सीरत श्रवण से मिलती ही नहीं माफ़ करना मालिक नासमझ है आरज़ू ज़ुबाँ की बात मेरी कलम लिखती ही नहीं आरज़ू-ए-अर्जुन 

" पाखी पाखी उड़ता सा "

           गीत पाखी पाखी उड़ता सा  दूर गगन में यह दिल मेरा  ख्वाबों के पंखों से होती है परवाज़े  दिल की हर धड़कन से होती है आवाज़े  जाने क्या मन मेरा कहता है अब मुझसे  शाम ढलने सी लगी है  घबराये क्यों यह मन मेरा  पाखी पाखी उड़ता सा  दूर गगन में यह दिल मेरा  रातों को पलकों पे रहती है बेचैनी  आँखों में जाने क्यों होती है बेताबी  वो क्या है जो बहती रहती है सांसों में  तेरी खुशबू आने लगी है  सुलग रहा है यह तन मेरा  पाखी पाखी उड़ता सा  दूर गगन में यह दिल मेरा  आहिस्ता आहिस्ता बढ़ने लगी सरगोशी आहिस्ता आहिस्ता बढ़ने लगी मदहोशी आ भी जा आ भी जा आ भी जा जाने जाँ जान जाने सी लगी है क्या जायेगा जानम तेरा पाखी पाखी उड़ता सा  दूर गगन में यह दिल मेरा  पाखी पाखी उड़ता सा दूर गगन में यह दिल मेरा।  आरज़ू-ए-अर्जुन  पाखी = परिंदा , सरगोशी = दबी दबी आवाज़े 

ग़ज़ल ( क्या रह गया है बाकी)

  ( क्या रह गया है बाकी) क्या रह गया है बाकी मेरी इस ज़िंदगी में सबकुछ फ़ना हुआ है मेरी इस आशिक़ी में महफ़िल में हम रहे हैं जलती शमा से बनकर जलते रहे हैं अब तक अपनी ही रौशनी में होटों को सी लिया है खुशियों का क़र्ज़ लेकर लाखों ही ग़म दिए हैं मुझे मेरी हर ख़ुशी ने ख्वाबों को क्या सजाऊँ अभी फुर्सत ही नहीं है टूटे सपने चुन रहा हूँ मैं अपनी ज़िंदगी में मैं चलता रहा राहों पे मंजिल का था बहाना खुद को ही खो दिया है मंजिल की दिल्लगी में खुद को भी भूल जाऊँ आँखों को क्या कहूँ मैं कहता है के जानता हूँ तुम्हे देखा है कहीं पे  जीता हूँ इस कदर मैं मरने की आस लेकर ज़िंदा रहा हूँ अब तक कितनी ही खुदखुशी में किसे कह सकूँ मैं अपना ए आरज़ू इस जहां में यह जिस्म भी नहीं अपना मिलना पड़े जमीं में आरज़ू-ए-अर्जुन 

शिव भजन

शिव भजन  तेरी सूरत है प्यारी पूजे ये दुनिया सारी तेरे चरणों में होती है जन्नत हमारी भोले भंडारी मेरे भोले भंडारी -४ तेरी जटायें गंगा समाये चाँद सुहाए मस्तक तेरे ओ हलाहल को पीने वाले अमृत सागर दिल में तेरे तेरी हर बात न्यारी पूजे ये दुनिया सारी तेरे चरणों में होती है जन्नत हमारी भोले भंडारी मेरे भोले भंडारी -४ हम खलकामी भक्त तुम्हारे  तू सबका कल्याण करे  भवसागर तर जाता है वो  जो भी तेरा ध्यान करे  पूरे जग के ओ स्वामी  पूजे ये दुनिया सारी  तेरे चरणों में होती है जन्नत हमारी भोले भंडारी मेरे भोले भंडारी -४ भंग नहीं तू भाव को पीता  अज्ञानी हम क्या जाने  श्रद्धा भक्ति भोग लगाये  बाहरी आडंबर न माने  अर्जुन तेरा पुजारी पूजे ये दुनिया सारी   तेरे चरणों में होती है जन्नत हमारी भोले भंडारी मेरे भोले भंडारी -४ आरज़ू-ए-अर्जुन  

" नगमा " नगमें आधे अधूरे से हैं

" नगमा " नगमें आधे अधूरे से हैं मिसरे उलझे हुए से हैं अब तोड़ भी दो दिल मेरा कि यह गीत मुकम्मल हो गुमी हुई मंजिल है मेरी रुका हुआ सा रास्ता है अब लगा भी दो ठोकर एक कि यह राह मयस्सर हो दो दिल के दरम्यां यहाँ अलग अलग से हम खड़े अब खींच भी दो दीवार वो जो दो दिल की सरहद हो कौन जीता है ख़ुशी से इश्क़ करके इस जहाँ में अब ले भी लो जान हमारी कि यह रूह मस्सर्रत हो आरज़ू यह कह चला है दिलजलों के अंजुमन में तोड़ भी दो वो जाम सारे यह ज़िंदगी मुक़द्स हो आरज़ू-ए-अर्जुन  abbre : मयस्सर : feasible,possible , मस्सर्रत: joy, pleasure मुक़द्स: sacred, holy