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Showing posts from December, 2013

( मेरी बीवी हाय )

( मेरी बीवी हाय ) कुछ  साल हुए है शादी को, मेरी बर्बादी को, अब हर साल इसे मनाते है, शोक पे हर्ष दिखाते है मायूसी न दिख जाये चेहरे पे इसलिए बीवी के आगे हम मुस्कुराते है बस तरस गए है आज़ादी को, कुछ साल हुए है शादी को  पहले  हाथ पकड़ता था तो सिहर जाती थी अब हाथ लगाता हूँ तो बिगड़ जाती है उसके बाद  तो शामत ही आ जाती है आँखे लाल और भृकुटियाँ तन जाती है कहती है जानते हो भारत की  आबादी को, कुछ साल हुए है शादी को भगवान् की दया से एक बेटा है जो बीवी के बगल में लेटा है उसे थपकियाँ देके खुद सो जाती है और मेरी बत्ती तो जैसे गुल हो जाती है अब सिर खुजलाते है रात आधी को, कुछ साल हुए है शादी को सुबह  उठो तो घर एक जंग  का मैदान है उसके हाथों में करछी, बेलन का सामान है रुमाल मोजे कही मिलते नहीं, कौन टोके उसे, कैसी फसी मुश्किल में जान है मुह में बोल के रह जाते है " नाश्ता तो दो", कुछ साल हुए है शादी को अब बेटे को स्कूल छोड़ने जाते है और वापसी में दूध लेके आते है इश्क़ लड़ाने कि उम्र में देखो किस चक्कर में फस जाते है टोक के मुझको कहती है 'सर्फ़ साबुन के पैसे दो',

(दिशा की तलाश )

( दिशा की तलाश ) परछाइयाँ  कभी सहारा नहीं बनती   बस साथ होने का भ्रम देती है  खुद से जुडी कितनी भी लगे चाहे  काली रात में दिखाई कम देती है मैं गुजरता तो हूँ चांदनी रातों में भी कभी दाएँ तो कभी बाएं से छल देती है कोई साथ नहीं तेरे खुद को साथ बनाना सीख ले हर तरफ भ्रम उभरते, इस भ्रम को भरमाना सीख ले    तूं  डर से हर वक़त घबराता है इस  डर को तूं समझ तो सही कितने  काम तू सहज कर जाता है यह डर ही तो है इसके पीछे कहीं तू सुन्न है मंजिल की राहों को देख कर इसी डर की वजह तू पहुचेगा वहीँ है दोस्त यह डर तेरा इससे दोस्ती करना सीख ले इस डर कि पेचीदगी को निडरता से हरना सीख ले तू  राह में कही थक जाये तो क्यों पैरों को दोष देता है तू चलते चलते फिसल जाये क्यों राहों को दोष देता है कभी रह रह कर आँखे भर आये क्यों हवाओं को दोष देता है कर राहों से दोस्ती और  इनपे चलना सीख ले समेट कर आंसुओ को हर सपना जीना सीख ले राह में तू अकेला नहीं चल रहा कुछ और भी बढ़ते होंगे वहाँ देख कर उनकी तेज़ रफ़्तार को मत खुद को तू विचलित बना चलते दोडते सभी है इस राह पे मगर मंजिल उसकी जो सही दिशा कि ओर