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( वाकया )आज ज़िंदगी से मुलाकात हो गई

आज ज़िंदगी से मुलाकात हो गई

वाकया एक दो नहीं,
तीन चार मेरे सामने आये
हर वाकया ज़िंदगी के सच को लिए
आईने की तरह मेरे सामने खड़ा था
                    1.
 भटके से राहों पे कहीं चल रहे थे
मैंने देखा एक बूढ़ा लाचार सा आदमी
कहीं सड़क पर खड़ा था
मैली मटमैली धोती उसकी
कई जगह से उसका कुर्ता फटा था
हाथ और पाँव की नसें फूलती
लाठी को पकडे जब चलता था
आँखों की झुर्रियां और सिकुड़ती
जब भी तेज़ हवा थी चलती
आँखों का चश्मा था धुंदला
बार बार साफ़ उसे करता था
मैंने पूछा," बाबा"
इतनी दोपहर गए किधर आये हो
कहा," बेटा" उस पेड़ के पास जाऊंगा
बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर
पावों को लम्बा किया।
लाठी को बगल में रख कर
चश्मे को धोती से साफ किया  .
बढ़ी उत्सुकता मेरी पूछा मैंने "बाबा"
"बस का इंतज़ार कर रहे हो" .
कहा हसकर," नहीं बस यूँ ही यहाँ बैठा हूँ."
फिर पूछा मैंने," क्या थक गए हो बाबा"
 बोले नहीं," मैं रोज़ यहाँ पर बैठता हूँ"
 फिर अधीर होके पूछा मैंने," क्या कोई आने वाला है"
 बोले नहीं रे बाबा," कोई नहीं आने वाला है"
फिर सोचा उस गाँव का पता ही पूछ लेता हूँ
तो हसकर बोले," बेटा यही काम मैं यहाँ पे करता हूँ"
जाते जाते फिर से पूछा," घर में कौन कौन है बाबा"
 बोले," मैं और मेरी पत्नी, बच्चे नहीं है साथ मेरे"
 सुना है विदेश में है आजकल उनके डेरे.
मैंने कहा," उनके बिना जी नहीं घबराता"
बोले," ऊपर देख मुसाफिर उस घोंसले की तरफ
वो चिड़िया घोंसला सजाएगी फिर अंडे देगी
और कुछ दिन बाद बच्चे निकलेंगे
चिड़िया दाना चुगने रोज जाएगी
चोंच में भर के बच्चो को खिलायेगी
फिर एक दिन जब उनके पर निकलेंगें
तो चिड़िया को छोड़ वो फ़ुर्र जाएंगे "
पर चिड़िया ये काम हर बार करती है
हर बार नया घोंसला तैयार करती है .
परिंदो को तो राहें खोजने में आसानी होती है
लेकिन इंसानो को बड़ी परेशानी होती है
इसलिए रोज़ यहाँ पर समय बिताता हूँ
भूलों को यहाँ राह दिखाता हूँ
बाबा की बातों को मन में लिए राह पर दिया
उस कठोर सच ने दिल में घर सा कर लिया

                               2.
कुछ दूर बढ़ा ही था कि दूसरा वाकया सामने आ गया
एक छोटा सा बालक मुझसे टकरा गया
देखा तो कब्रिस्तान की तरफ मुड़ा
नंगे पाँव, हाथ में फूल पत्तिया और एक दिए को लिए
एक कब्र पर खड़ा हो कर दिया जलाया
और एक दो रुपये का सिक्का उस सिल चढ़ाया. 
फूल पत्तियां की अर्पण उसने  फिर
वापिस मुड़ा तो कुछ उदास था
मगर आँखों में एक विशवास था
मैंने रोक के पूछा," वहां क्या कर रहा था"
कुछ देर शांत रहा फिर ध्यान से देखा और बोला,
"आज मैंने पहली बार कुछ कमाया था
 वो दो रूपये का सिक्का अब्बु को देकर
अपना वादा निभाया था "
देख कर उसकी ईमानदारी को
खुद शर्म से बोखला गया
सोचा खुदगर्जों की दुनिया से खुददारों की दुनिया में आ गया

फिर मैंने कदम बढ़ाया तो तीसरा वाकया सामने आ गया
                                  
                                   3. 

एक बुज़ुर्ग सी औरत बिखरे बाल बेतरतीब सी लिपटी साडी
नंगे पाँव कभी हस्ती कभी रो रही
हाथ में एक टूटा सा फ्रेम जिसमे
एक छोटे से बच्चे की तस्वीर को चाहत भरी
नज़र से संजो रही।
फिर कुछ बच्चे उसे सताते नज़र आये
उसे पगली पगली कह कर चिड़ाते नज़र आये
मैंने पूछा एक राही से," ये क्यों उसे सत्ता रहे"
उसने कहा," बेटे के प्यार में दीवानी हो गई 
 बेटे ने चीनी उसकी ज़मीन
और अब वो बेगानी हो गयी. "
छीन के हक़ दूसरों का कुछ लोग
अक्सर राज़ वो करते है
और प्यार के अंधे लोगों को
हम लोग दीवाना कहते है
एक लम्बी सांस को भर के कदम को आगे बढ़ाया
शाम ढल रही थी और चौथा वाकया सामने आया

                           4. 
थोड़ी ही दूर मेरे दोस्त का घर सामने आया
दस्तक दी तो एक औरत थी जिसने मुझे अंदर बुलाया 
बिना नाम पूछे ही कुर्सी पे बिठाया
चारो ओर देखा तो घर कुछ उदास था
मेरी आँखें ढूंढ रही थी मगर दोस्त नहीं मेरे पास था
फिर उसने मुझे पानी पिलाया
सामने दो बच्चे थे उन्होंने मुझे हस के दिखाया
मेरे हाथ पैर धुला के मुझे खाना खिलाया
पर फिर भी मेरा दोस्त वहाँ पर नहीं आया
मैंने पूछा वो कहाँ गए है
उसने बहती आँखों से हस कर कहा,
"अब वो यहाँ नहीं रहते है"
फिर मेरे हाथो में दी एक चीज़ पुरानी
मुझे समझ आ गयी सारी कहानी
उसने कहा था," तुम जब भी मेरे घर आओगे
 हस्ती आँखों से अपना स्वागत पाओगे
 गर ये निशानी तुझे मिले ऐ दोस्त
 तो समझ लेना मेरा आखरी अलविदा है दोस्त"
 मेरी आँखों में आंसू छलका ही था
उसकी पत्नी ने मुझे रोक कर कहा,"
 उन्होंने कहा था हस्ते हुए विदा करना
 तुझको पाप लगेगा वार्ना "
मैंने आँखों में आंसुओं को पीया
फिर वहां से चुपचाप वापिस चल दिया.
 दरवाज़े के बंद होते ही वो आवाज़ सुनी थी
जो मेरी भाभी ने दिल में दबा के रखी थी.

आरज़ू-ए-अर्जुन     
 


                               
 

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