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Showing posts from June, 2016

वो अब अपने राज़ छुपाते है हमसे

ग़ज़ल  मात्रा :  222  222  222  22  ------------------------------------------ वो अब अपने राज़ छुपाते है हमसे झूठा दिल का हाल बताते हैं हमसे आते जाते मिलते  भी हैं हसते भी मिलने का दस्तूर निभाते है हमसे ऐसी बेरुखी का भी क्या मतलब है पूछा तो मज़बूर बताते हैं हमसे कुछ दिख ना जाये आँखों में उनकी तो हरपल अपनी आँख चुराते हैं  हमसे  फ़ीकी सी लगने लगती हैं  दुनिया तब खुद को जब अंजान बताते हैं  हमसे जान लुटा देते थे हमपर पहले वो जाने अब क्यों जान छुड़ाते हैं हमसे रेज़ा रेज़ा होके चाहा था " अर्जुन " गुज़रे कल की बात सुनाते है हमसे  आरज़ू-ए-अर्जुन 

मेरी ख्वाहिशें

मेरी ख्वाहिशें दरिया के आँचल पे मेरी ख्वाहिशें बस चलती रहती है... चलती रहती है दिन रात मय्यसर सी है मौज़ों में तूफ़ान से तग़ाफ़ुल चलती रहती है...... मगर जैसे ही अपनी पलकें मूँदता हूँ तो वाए-जॉफ सी ओक भर पानी में डूबने लगती हैं सांसे फूलने लगती है जिगर सिकुड़ने लगता है आखिरकार जब सांस उखड़ने वाली होती है तो आँखे खुलती है आनन फानन में उन्हें हाथ देकर मैं फिर से ऊपर खींचता हूँ। .. लम्स-ए-नाज़ुक सबा दिल जिगर को फिर से ताकत से भर देती है ज़र्द हुए चेहरे पे सुर्ख़रू आँखें अपने आब-ओ-शार से ठंडी होती है गर्दिश-ए-तक़दीर को न मानती हुई मेरी ख्वाहिशें फिर से दरिया पे मय्यसर होती है....  बादस्तूर ये सिलसिला जारी है बदस्तूर ये सिलसिला चलता रहेगा जब तक वो अपने मुकाम पर नहीं पहुंचते  दरिया के आँचल पे मेरी ख्वाहिशें बस चलती रहती है... चलती रहती है आरज़ू-ए-अर्जुन         

" फिर से आओगे तुम "

" फिर से आओगे तुम  " फिज़ायें खुशनुमा सी है हवायें रवां रवां सी है बडी सौंधी खुशबू है मिट्टी की.. फूलों के रुखसार पे शबनमी बूंदें भी है, हवा में एक भीनी सी.. खुशबू और दूर तक घाटियों में गूंजती, लहराती तेरी यादों की सदा.. तुम पास तो नहीं मगर साथ हो। यह पेड़, सब्ज़, बेल, बूटे हर जगह.. मय्यसर से हो तुम... ये परिंदे ये चरिंदे हर किसी में आज तेरी धड़कनें महसूस करते है तुम बोलते हो इनमें हर जगह.... ये पत्थर ये चट्टानें आज मुझे देख कर मुस्कुरा रहे हैं..... मुझे वो लम्हें याद आ रहे हैं... जो गुजरे थे इन्हीं की पनाहों में... लब-ए-साकित सराब-ए-हर्फ़ सा अब बस तलाशती रहती है उन अल्फ़ाज़ों को जिनको मेरे कान सुनने के आदी थे जिनको ये लब दोहराने को बेकल थे करिश्मात-ए-तसव्वुर यकीन-ए-कामिल है कि तुम फिर से आओगे ... तुम..... फिर से आओगे... हाँ। ... फिर से आओगे फ़लक से लौटकर। आरज़ू-ए-अर्जुन               

' आरज़ू ' बाज़ार में बिकता नहीं ( GHAZAL)

ग़ज़ल  मात्रा : 2122  2122  212 ( फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन ) ------------------------------------------------------------------- आशियाना प्यार का बसता नहीं  प्यार करके चैन अब मिलता नहीं  इश्क़ करना पाप है किसने कहा  कौन है जो पाप यह करता नहीं  बीत जायेगी घडी फिर से यहाँ  वक़्त चलता ही रहे रुकता नहीं  कैफ़ियत है देश की ये आज क्या  आदमी को आदमी मिलता नहीं  तुम सिखाओ और को अपना सबक  आदमी से आदमी जलता नहीं     मान लेते है वफ़ा ज़िंदा यहाँ  पर निभाने को बशर मिलता नहीं  चार कन्धों पे जनाजा लो चला  कारवाँ सच में यहाँ रुकता नहीं  ख़्वाबगाह ऐसी बनायी उसने क्यों  चाह कर भी आदमी उठता नहीं  जान पायें है महज़ इस बात को  झूठ के बाज़ार सच बिकता नहीं  तुम लगाओ और की बोली यहाँ  ' आरज़ू ' बाज़ार में बिकता नहीं  आरज़ू-ए-अर्जुन 

ਖੁਸ਼ਕ ਜਿਹੀਆਂ ਰਾਤਾਂ ਸਿੱਲੀਆਂ ਕਿਓਂ ਨੇਂ

ਗਮਜ਼ਦਾ ਹੈ ' ਆਰਜ਼ੂ '  ਖੁਸ਼ਕ ਜਿਹੀਆਂ ਰਾਤਾਂ ਸਿੱਲੀਆਂ ਕਿਓਂ ਨੇਂ ਤੇ ਪਥਰੀਲੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਗਿੱਲੀਆਂ ਕਿਓਂ ਨੇ ਕਿਸ ਰਾਤ ਨੇ ਖੋਹ ਲਏ ਉਹ ਸੁਪਨੇ ਮੇਰੇ ਤੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਸਦਰਾਂ ਹਿੱਲੀਆਂ ਕਿਓਂ ਨੇ ਨਹੀਂ ਪੁੱਛਣਾ ਇਹ ਸਵਾਲ ਵਕ਼ਤ ਕੋਲੋਂ ਮੈਂ ਬੇਸਬਬ ਬੇਵਫ਼ਾਈਆਂ ਮਿਲੀਆਂ ਕਿਓਂ ਨੇ ਪਰ ਇਕ ਸਵਾਲ ਹੈ ਬਸ ਰੱਬ ਤੋਂ ਮੇਰਾ ਮਸੀਹੇ ਦੀ ਹਥੇਲੀਆਂ ਚੇ ਕਿੱਲੀਆਂ ਕਿਓਂ ਨੇ ਜੇ ਮਖ਼ਮਲੀ ਇਹਸਾਸ ਦਿਲ ਦੀ ਵਿਹੀ ਦਾ ਤਾਂ ਜੀਸਤ ਦੀਆਂ ਜਿਲਦਾਂ ਛਿੱਲੀਆਂ ਕਿਓਂ ਨੇ ਇਹ ਮਜ਼ਬੂਤ ਇਮਾਰਤ ਪੁੱਛਦੀ ਏ ਮੈਨੂੰ ਅੱਜ ਨੀਹਾਂ ਦੀਆਂ ਇੱਟਾਂ ਢਿੱਲੀਆਂ ਕਿਓਂ ਨੇ ਬੇਵਫਾ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਤੋਂ ਗਮਜ਼ਦਾ ਹੈ ' ਆਰਜ਼ੂ ' ਪੂੰਜ ਅੱਥਰੂ ਇਹ ਅੱਖਾਂ ਗਿੱਲੀਆਂ ਕਿਓਂ ਨੇ ਆਰਜ਼ੂ-ਏ-ਅਰਜੁਨ   

मुझे दिल में अपने बसा कर तो देखो

ग़ज़ल मात्रा : 122 122 122 122 ( फऊलुन ) -------------------------------------------- मुझे दिल में अपने बसा कर तो देखो मेरे दिल से दिल को लगा कर तो देखो सफर ज़िंदगी का सुहाना लगेगा मेरे साथ राहों पे आकर तो देखो ये कांटें तुम्हें फूल जैसे लगेंगें ज़रा मेरे पीछे ही आकर तो देखो तुम्हारे ख्यालों की दुनियाँ बदल दूँ निगाहों में अपनी बसाकर तो देखो ग़मों से जो अबतक बहायें हैं आंसू ख़ुशी के भी मोती गिराकर तो देखो खुदा की क़सम मैं भुला दूँ जहाँ को मुझे तुम गले से लगाकर तो देखो तुम्हारे लिए जान दे दूँ ख़ुशी से मुझे बात दिल की बता कर तो देखो नहीं बेवफ़ा मैं बता दूँगा तुमको मुझे तुम कभी आज़माकर तो देखो है मैंने मुहब्ब्त वफ़ा से निभाई मेरे साथ तुम भी निभाकर तो देखो तुम्हें आरज़ू सा न दूजा मिलेगा मेरे साथ दुनियां बसाकर तो देखो आरज़ू-ए-अर्जुन 

हमें याद करके भुलाया उसी ने (ग़ज़ल )

ग़ज़ल  मात्रा : 122  122 122 122  ( फऊलुन  ) ----------------------------------------------------- हमें दिल से अपने भुलाया उसी ने हमारे खतों को जलाया उसी ने हमारे लबों पे हसी को खिलाकर है ख़ामोश रहना सिखाया उसी ने नहीं जी सकेंगें हमारे बिना वो मगर सच ये करके दिखाया उसी ने समझते रहे थे उसे ढाल अपनी मगर तीर मुझपे चलाया उसी ने अभी ख़ाक सा हूँ उसी की बदौलत खुदा भी हमीं को बनाया उसी ने किये शौंक पूरे अमीरी से मेरे हमीं को भिखारी बनाया उसी ने अभी चार पैसे जो आये तो देखो हमें फिर से मिलने बुलाया उसी ने है उससे शिकायत नहीं आरज़ू अब हमें सच को जीना सिखाया उसी ने आरज़ू-ए-अर्जुन 

" बस ऐसे ही चलते चलो "

" बस ऐसे ही चलते चलो " बारिश की बूँदों से बचकर  इस पेड़ के नीचे रुके हो....   तुम्हें क्या लगता है ऐसा करके  तुम बूँदों से बच जाओगे,  ऊपर देखो !  पीपल के पत्तों से छन कर ये बूँदें  तेरे चेहरे पे टिप टिप करती  तेरे होटों तक आ गईं हैं।   मत पोंछो रुमाल से इसे,  महसूस तो करो इनकी ठंडक को  तुम्हारी तरह ये भी बहुत प्यासी हैं।   याद है...   आख़िरी बार कब मिले थे हम।  हाँ... दिसंबर में...   क्रिसमस का आखिरी दिन था वो  और आज पूरे छे महीने बाद मैं आई हूँ।  मुझे अपने गले से लगा लो  मुझे अपने रोम रोम में समा लो  तू सांवरा है तो मैं सावन हूँ  तू बाँवरा है तो मैं यौवन हूँ  यह काम की मज़बूरी  मैं आज नहीं सुनूँगी।  मैं आज तेरे पास हूँ तेरे साथ हूँ  कल क्या पता तू कहाँ ..  मैं कहाँ।   चलो न... मेरे साथ कुछ दूर तक  यूँ ही भीगते हुए.. पैदल,  चलो ना...यूँ ही हाथों में हाथ डाले  सर से पाँव तक भीगे हुए,   दूर तक....  चलते चलो न....  चलते चलो न.... बस चलते चलो न......  आरज़ू-ए-अर्जुन      

1984 के दंगे ( अपनों ने फूकी थी अपनों की लाशें )

ग़ज़ल  मात्रा : 222  222  222  22 -------------------------------------------------- आँखों से देखी थी शोलों की रातें  अपनों ने फूकी थी अपनों की लाशें  गैरों की चुनरी की ख़ातिर वो मैंने  डाली थी ख़तरे में अपनों की साँसें  ज़ोरों से धड़के थे लोगों के सीने  मुर्दा जब देखी थी अपनों की लाशें  बरसों तक छाया था गहरा अँधेरा  सहमी सी रहती थी अपनों की आंखें  एक एक के घर को तब फूका था उसने नारों से गूँजी थी दंगों की रातें गुजरा था काला सा अरसा जो मेरा  कसती थी हर दिन वो ख़तरों की फाँसें  शोलों में ख़ाबों को झोंका था मैंने  करता मैं कैसे फिर सपनों की बातें  वो नन्ही सी जान बचाने की ख़ातिर  बेटे की काटी थी केसों की गाँठें  दहशत सी नाची थी उस दिन दिल्ली में  मौत बनी थी उस दिन बूढ़ों की खांसें ख़ामोशी को ओढ़े कुर्सी पे बैठे  सोचा था सिर्फ उसने वोटों की गांठें  कैसे मैं भूलूंगा मंज़र वो यारो  अपनों के हाथों में अपनों की लाशें  'अर्जुन ' क्या रोया मेरी बातें सुनकर   मैंने  रुलाईं  हैं  ग़ज़लों की आँखें   आरज़ू-ए-अर्जुन   

हमारे दिल से पूछोगे हमारा हाल कैसा है ( GHAZAL )

ग़ज़ल  मात्रा : 1222 1222 1222 1222 ( मुफाईलुन ) --------------------------------------------------- हमारे दिल से पूछोगे हमारा हाल कैसा है  बतायेगा तुम्हें यारो तुम्हारे हाल जैसा है  सभी उलझे मुहब्बत में सभी बर्बाद से लगते  कभी लगता ये मसला भी खुदा की चाल जैसा है  रहे क्यों हुस्न बेपर्दा रकीब-ऐ-अंजुमन में भी  सितमगर सोच मत ऐसा गलीज़-ऐ-ख़्याल जैसा है   अगर उल्फ़त किसी से है ज़रा ये सोच के चलना  यहाँ पे इश्क़ तो प्यारे शहीद-ऐ-जाल जैसा है   लबों से आह ना निकले शिकायत हो हसीनों से  सभी मरते हैं घुट घुट के दिलों का हाल ऐसा है  वफ़ा कर ली अगर तुमने बताना मत उसे यारो   बिताओगे उमर मर के वफ़ा का हाल ऐसा है  रहो माँ-बाप संग भी तुम जरूरत है उन्हें तेरी  ज़हन मुज़तर बताता है बुढ़ापा काल जैसा है   मिराज-ऐ-आरज़ू यारो भटकता है विरानों में मेरा अन्जाम भी यारो हिरण के हाल जैसा है  आरज़ू-ऐ-अर्जुन   

आँख मेरी अभी भरी सी है। ( ghazal )

ग़ज़ल  मात्रा :     2122          1212          22 अर्कान : फ़ाइलातुन , मुफाईलुन, फेलुन  ------------------------------------------------ आँख मेरी अभी भरी सी है। ज़िंदगी में तेरी कमी सी है ।। जल रही थी वफ़ा शमां बनके । रात से वो बुझी बुझी सी है  ।। याद आती नहीं तेरी यूँ ही । हर घडी याद मयकशी सी है ।। चाहतों को तबाह कर दो तुम । आशिक़ी गन्दगी बनी सी है ।। मर रहे हैं यहाँ सभी या रब । ज़िन्दगी मौत से बुरी सी है ।। ख़ौफ़ खाता नहीं यहाँ कोई । हर तरफ़ आग लग चुकी सी है ।।   लाश ढोते सभी यहाँ फिर भी । हर घडी ज़िन्दगी नयी सी है ।। ' आरज़ू ' तो नहीं  मरेगा अब । साँस  मेरी  ये  शायरी  सी  है ।। आरज़ू-ए-अर्जुन 

कितनी शामें गुजरी थी तेरी यादों में ( ghazal )

ग़ज़ल  मात्रा : 222  222  222  222 काफ़िया : तेरी यादों  ( ओं  स्वर ), रदीफ़  ( में ) कितनी  शामें गुजरी थी तेरी यादों में कितना पागल था ये दिल तेरी बातों में हर लम्हा चाहा तुझको तेरी पूजा की मिलती थी तेरी खुशबू मेरी सांसों में तुझको देखा हरसू मैंने दिन में भी तुमही होते थे बस अन्धेरी रातों में तुमने देखा ही कब था मन की नज़रों से कितनी चाहत होती थी मेरी आँखों में नीलाम हुये तो जाना बेदर्दी तुझको बेमतलब थे लुटते हम तेरी बातों में रोज़ नहीं तो एकबार कहा होता 'अर्जुन' हस के जान लुटा देते तेरी बाहों में आरज़ू-ए-अर्जुन    

ग़ज़ल (फिर अधूरी आरज़ू रह गई है )

ग़ज़ल  मात्रा     ( 2122  2122  122 )  फिर अधूरी आरज़ू रह गई है  एक प्यासी जुस्तजुु रह गई है  छोड़ आये कारवां फिर वहीँ पे  याद सारी फिर वहीं रह गई है  वो कसक दिल में दबाने से पहले  बेवफा धड़कन किसे कह गई है  कौन खेला है दिलों का खिलौना  बात यह दिल की अभी रह गई है  आज मुड़के देखते हैं  खुदी को  ज़िंदगी जाने कहाँ बह गई है  भूल जाओ तुम अभी आरज़ू को  फिर न कहना कुछ कमीं रह गई है  आरज़ू-ए-अर्जुन   

फिर भी मुस्कुरा रही है ज़िंदगी (ग़ज़ल )

ग़ज़ल  हर पल पहेली बुझा रही है ज़िंदगी रेत सी फिसलती जा रही है ज़िंदगी कोई वज़ह नहीं है मुस्कुराने की फिर भी मुस्कुरा रही है ज़िंदगी हर साँस से कहती है ज़िंदा हो तुम खुद से लड़ना सिखा रही है ज़िंदगी मैं रूठ भी गया तो कहाँ जाऊँगा मेरे पीछे पीछे आ रही है ज़िंदगी नज़रें चुराने से हल नहीं निकलते यही बात मुझको बता रही है ज़िंदगी क्यों छोड़ दिया चलना एक ठोकर खाके अपाहिजों को भी चलना सिखा रही है ज़िंदगी ये रणभूमि है गिरके उठने वालों की चुनौती दे के समझा रही है  ज़िंदगी  अरे मरने से पहले क्यों मरते हो यारो हर हाल में जीना सिखा रही है ज़िंदगी अभी ज़िंदा हो तो साबित कर दो आरज़ू क्यों तुमपे इतना इतरा रही है ज़िंदगी आरज़ू-ए-अर्जुन 

हमें मंजिल बुलाती है

 हमें मंजिल बुलाती है चलो फिर से चलें यारो  हमें राहें बुलाती है अभी करना है कुछ हासिल  हमें मंजिल बुलाती है                                        अभी मंजिल है कितनी दूर                                        चलता चल मुसाफिर तू                                        न जानें फ़लसफ़े कैसे                                        हमें राहें दिखाती है  कभी आँखें न झपकाना  निगाहें हों निशाने पर  ज़रा सी भूल आँखों की  हमें कितना रुलाती है                                        न डरना रात से यारो                                        न दिन की ही फिकर करना                                        कदम चलते नहीं ऐसे                                        हमें हिम्मत चलाती है कभी रुखी मिलेगी तो  कभी वो भी मना होगा  न रुकना सोच के यारो हमें रोटी सताती है                                       बशर मरने से पहले तुम                                       कहीं ऐसे न मर जाना                                       लहू का गर्म कतरा भी                           

चलो फिर से चलें यारो हमें राहें बुलाती है ( GHAZAL )

ग़ज़ल  मात्रा  ( 1222 1222 1222 1222 ) चलो फिर से चलें यारो हमें राहें बुलाती है अभी करना है कुछ हासिल हमें मंजिल बुलाती है  अभी मंजिल है कितनी दूर चलता चल मुसाफिर तू  न जानें फ़लसफ़े कैसे हमें राहें दिखाती है  कभी आँखें न झपकाना निगाहें हों निशाने पर  ज़रा सी भूल आँखों की हमें कितना रुलाती है  न डरना रात से यारो न दिन की ही फिकर करना  कदम चलते नहीं ऐसे हमें हिम्मत चलाती है कभी रुखी मिलेगी तो कभी वो भी मना होगा  न रुकना सोच के यारो हमें रोटी सताती है  बशर मरने से पहले तुम कहीं ऐसे न मर जाना  लहू का गर्म कतरा भी हमें ज़िंदा बताती है  कई वादे किये तुमने कई रिश्ते निभाने हैं  न छूटे फ़र्ज़ कोई तो ज़िंदगी मुस्कुराती है  उसे कह दो वफ़ा है तो मेरा ऐतबार कर लेना  मैं आऊंगा तुझे मिलने अभी उलझन सताती है  न जाने कौन सा लम्हा हमारा आखरी होगा  हमारी ज़िंदगी हमको यहाँ लड़ना सिखाती है  दिवाने आरज़ू को तो नशा मंजिल को पाने का  मेरी हर साँस को यारो मेरी मंजिल बुलाती है  आरज़ू-ए-अर्जुन   

“Dream Chaser” ( poem)

“ Dream Chaser ” My eyes are too sleepless Not because of dreamless; In fact they see only a dream That never let them sleep. Of course, they are restless Yes, they are blink less No! They are not mournful But they are rather swornful. Night n day they keep on way With world consistently fray; Temptation can’t tempt amidst And never frighten from twist. The commitment shakes them The destination awakes them; The distance can’t be calculated Of course difficult to be estimated.  But hard works never go in vain The Success only achieves in pain If the dreams are set on far n high Will Chase them, my dream chaser eyes. Aarzoo –e- Arjun

ग़ज़ल (मुझे होश अपनी न तेरी ख़बर है )

ग़ज़ल  मात्रा ( 122 122 122 122 ) मुझे होश अपनी न तेरी ख़बर है बड़ी मयकदा सी ये तेरी नज़र है कहाँ खो गए हैं यहाँ लोग सारे न जाने ये कैसी अँधेरी डगर है सभी वार तेरे निशाने पे लगते जरा बचके यारो ये तिरछी नज़र है कहाँ चाहतें थी हमारी  मुनव्वर अभी रौशनी में हमारी सहर है कई मिल गये है मुझे आज लेकिन मेरी ज़िंदगी में हाँ तेरी कसर है सभी राह तुझमें है आके समाते सभी मंजिलों को जो तेरी ख़बर है कभी होश आया नहीं आरज़ू को  रही ज़िंदगी जो ये मेरी ज़हर है आरज़ू-ए-अर्जुन 

ग़ज़ल ( बहुत झूठ लिखते हैं वो हर ख़बर में )

ग़ज़ल  मात्रा 122 122 122 122  वही रात ठहरी हुई है नज़र में वही आग सुलगी हुई है जिगर में बहुत कोशिशें की सभी को पुकारा नहीं आज कोई है दिल की डगर में किसे हाल दिल का सुनाऊँ यहाँ पे सभी अजनबी हो गये  हैं शहर में मुझे राह मिलती नहीं आज कोई कहीं खो न जाऊँ इस तन्हा सफ़र में मेरी हर तमन्ना बिखर सी गई है नई आस होती है हर एक पहर में मेरी आँख रोती नहीं रात में भी मगर नम सी रहने लगी है सहर में मुझे याद है होश खोने से पहले ज़रा सी कमीं थी तुम्हारे ज़हर में कहाँ मौत ने आरज़ू को है मारा बहुत झूठ लिखते हैं वो हर ख़बर में आरज़ू-ए-अर्जुन