Skip to main content

" मैं खुद से बातें करता हूँ "


                                               " मैं खुद से बातें करता हूँ "

कभी कभार मैं खुद से एक सवाल करता हूँ क्या सच मे वफ़ा कोई चीज़ है जहाँ में, नहीं मेरा मतलब कोई किसी से इतना प्यार कर सकता है कि खुद की एहमियत को खत्म कर दे । बहुत बार सुना है कि किसी ने प्यार में जान दे दी, किसी ने प्यार में जान ले ली, कोई रात की नींद हराम करके बैठा है तो कोई दिन का चैन खोकर। किसी के दिन खुमार में गुजरते है तो किसी के दिन प्यार में रो रो कर मगर ये प्यार, मोह्ब्बत, इश्क़, स्नेह, प्रेम ये है क्या ? किसी को आज तक कुछ नहीं पता। देखा जाए तो इसका हर शब्द आधा अधूरा है पूरी उम्र गुजर जाती है इन शब्दों के मतलब को पूरा करते करते, प्यार का "प" आधा मोह्हबत का "ब" आधा इश्क़ का "श" आधा और प्रेम का "र" आधा।  सब कुछ आधा अधूरा सा ही लगता है फिर भी एक ज़िद है की मोह्ब्बत हो किसी से, यह पागल सा दिल कहता है की दिल दो और दिल लो किसी से।  इतना मतलबी है की अंजाम की परवाह तक नहीं करता। करता  है तो सिर्फ प्यार, मोह्हबत, इश्क़। मैं सोचता हूँ कि कौन वफादार है तुम, वो यां मैं . मैं भी अहम का शिकार, तू भी अहम का शिकार, वो भी अहम का शिकार, हम सब कहीं न कहीं अहम के शिकार। जरा सा दिल को ठेस पहुंची नहीं की वफ़ा में दरार आ जाती है फिर हम दिमाग से काम लेने लगते हैं और फिर हर देखी  सुनी बात हमें सच्ची लगने लगती है पांच दस सालों के प्यार को पांच मिनट में परखने लगते है  पांच मिनट में दिमाग फैसला भी सुना देता है फिर दो ही काम बाकी बचते हैं एक मनाने की मिन्नतें करो, दूसरा भूल जाओ.  सोचता हूँ ऐसा क्या आँखे देखती है की दिमाग यकीन कर लेता है सोचता हूँ ऐसी कौन सी बात कान सुनते हैं की दिमाग भरोसा करने लगता है मैंने अक्सर आँखों को गलत साबित होते देखा है कानों को मुजरिम ठहराया है ये वो कुछ देखते है वो कुछ सुनते है जो उन्हें दिखाया जाता है सुनाया जाता है वजह कुछ भी हो सकती है अगर कोई किसी को सच्ची मोहब्बत करता है तो वो उसे दिल से खुश देखना चाहता है  उसे  दुखी नहीं देख सकता। कभी कभी दिल खुद को कसूरवार समझने लगता है क्योकि वो किसीको अपनी वजह से तकलीफ नहीं दे सकता  तो कुछ भी दिखाकर सुनाकर  अलग होना चाहता है मगर इन सब बातों की वजह से  हम दिल को भूल जाते है वो हर तरह से  बेमतलब ही दिमाग की बलि चढ़ता है ये दिमाग इसे चोट पहुंचाता है सजा सुनाता है और न जाने क्या क्या जुल्म सह जाता है सिर्फ प्यार की वजह से, बड़ा अच्छा सा इल्जाम दिया जाता है दिल टूट गया, दिल तोड़ दिया। पूछा जाए जब दिल पे भरोसा नहीं था तो किसने कहा था प्यार करो.…। जब दिल की आँखे अंधी थी तो किसने कहा था प्यार करो.  जब दिल कुछ देख सुन नहीं सकता तो किसने कहा था प्यार करो। । ये फैसला तुम्हारा खुद का था तुम्हारे दिल का नहीं था। तुम्हारे दिमाग ने किसी की सूरत देखी किसी की सीरत देखी, तुम्हारे कानों ने किसी की शहद में डूबीं बातें सुनी और किसी ने कानो में मिस्री घोल दी और ऐसे करते करते प्यार हो गया और इन्ही दिमाग आँख और कानों की वजह से ये प्यार टूट कर बिखर भी गया मगर प्यार अगर यही होता है तो क्या ये प्यार  था ? नहीं…  ये सिर्फ एक सहूलियत थी . प्यार तो सिर्फ दिल करता है ये दिल ही है जो अपने दुश्मनो को भी माफ़ कर देता है ये दिल ही है जो अपने कातिल को भी रहम की नज़र से देख सकता है ये दिल ही है जो अपने भीतर छुपे उस दगाबाज के लिए भी प्यार संजोये रखता है ये दिल ही तो है जो सब कुछ खोकर भी प्यार में खो सकता है इस दिल से बड़ा वफादार  इंसान भी नहीं फिर इस दिल को एक रूह का नाम दो या उस खुदा का… एक ही बात है.।

" आरज़ू "  AARZOO-E-ARJUN

Comments

Popular posts from this blog

चलो योग करें

Aaj ke yoga divas par meri ye rachna..          चलो योग करें एक  काम सभी  हम रोज़ करें योग   करें   चलो   योग   करें भारत  की  पहचान   है   यह वेद-पुराण  का  ग्यान  है  यह स्वस्थ   विश्व   कल्याण   हेतु जन जन का अभियान है यह सीखें    और     प्रयोग    करें योग   करें   चलो   योग   करें मन  को निर्मल  करता  है यह तन को  कोमल  करता है यह है  यह  उन्नति  का  मार्ग  भी सबको  चंचल  करता  है  यह बस  इसका  सद  उपयोग करें योग   करें   चलो    योग   करें पश्चिम   ने   अपनाया   इसको सबने   गले   लगाया    इसको रोग  दोष   से  पीड़ित  थे  जो राम  बाण  सा  बताया  इसको सादा    जीवन   उपभोग   करें योग   करें    चलो   योग   करें आरज़ू-ए-अर्जुन

बेटियों पे ग़ज़ल

ग़ज़ल दौलत नहीं,   ये अपना संसार  माँगती हैं ये बेटियाँ  तो हमसे,  बस प्यार माँगती हैं दरबार में ख़ुदा के जब  भी की हैं दुआएँ, माँ बाप की ही खुशियाँ हर बार माँगती हैं माँ  से दुलार, भाई से  प्यार  और रब  से अपने पिता की उजली  दस्तार माँगती हैं है दिल में कितने सागर,सीने पे कितने पर्बत धरती के जैसा अपना, किरदार माँगती हैं आज़ाद हम सभी हैं, हिन्दोस्ताँ में फिर भी, क्यों 'आरज़ू' ये अपना अधिकार माँगती हैं? आरज़ू

हमीं बस थे कहीं भी वो नहीं था ( ghazal )

ग़ज़ल  बहर -  1222        1222        122 बहर - मुफाईलुन, मुफाईलुन, फऊलुंन काफ़िया ( 'ओ' स्वर ) रदीफ़ ( नहीं था ) ------------------------------------------------- हमीं बस थे कहीं भी वो नहीं था मेरी चाहत के काबिल वो नहीं था जिसे सारी उमर कहते थे अपना रहे  हम ग़ैर अपना वो नहीं था किसे कहते यहाँ पर दर्द दिल का किसी पे अब यकीं दिल को नहीं था रहे बिखरे यहाँ पर हम फ़िसल के कभी ख़ुद को समेटा जो नहीं था  कभी तोडा कभी उसने बनाया खिलौना पास खेलने को नहीं था बुरा कहते नहीं हम ' आरज़ू ' को बुरे थे हम बुरा पर वो नहीं था आरज़ू-ए-अर्जुन