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( तुम्हें चलना होगा )


 ( तुम्हें चलना होगा )

ऐ  मुसाफिर तू  मत हो निराश 
तू कर्म कर मत हो यूँ उदास 
क्यों बैठा है यूँ तुम्हें चलना होगा 
मंजिल है अभी दूर तुम्हे चलना होगा

परिंदों की तरह क्यों मन है चंचल 
झरनों की तरह क्यों दिल में हलचल 
नदी की धारा सा तुम्हें संभालना होगा 
मंजिल है अभी दूर तुम्हे चलना होगा 

 यह जिंदगी है पाषाण तू अदना सा इंसान
बांध कर हिम्मत की मुट्ठी कर ले घमासान
यही सच है राही तुम्हे इसी में पलना होगा
मंजिल है अभी दूर तुम्हे चलना होगा

है शूलों का रास्ता और शोलों से वास्ता
ग़मगीन है पानी पीने को और दर्दो का नाश्ता
कस ले अपनी कमर अब इसी में ढलना होगा
मंजिल है अभी दूर तुम्हे चलना होगा 

देख ! वृक्षों पे नई कोंपले फूटते हुए 
यह जीर्ण से पत्ते शाख से टूटते हुए 
बदल  गया है युग, तुम्हें भी बदलना होगा 
मंजिल है अभी दूर तुम्हे चलना होगा
(आरज़ू )

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