( धूल का फूल )
क्या कीमत है रौशनी की मत बताओ मुझे
अंधेरों में पला हूँ मैं
है कितनी दूर मंजिल का रास्ता जानता हूँ
सदियों पैदल चला हूँ मैं
क्या मिटाएगी ज़माने की गर्दिश की आग
तपते सूरज की तरह जला हूँ मैं
निकाल लेंगे अपनी कश्ती को मझधार से
सागर की बूंद-बूंद में घुल गया हूँ मैं
मत कोशिश कर तोड़ने की मुझे ऐ आंधियो
इसी धुल का फूल बन कर खिल गया हूँ मैं
(आरज़ू)
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