Skip to main content

( वो प्रभात बाकी है )



( वो प्रभात बाकी है )

ढल गई है शाम मगर  रात अभी बाकी है
था अंगारों भरा रास्ता मगर चलते रहे
कभी सुलगे अरमां कभी जलते रहे
करना होगा ये पथ पार,एक आस अभी बाकी है 
ढल गई है शाम मगर रात अभी बाकी है

थी सिसकती खुशियाँ, मुश्किल में ज़ज्बात थे
क्या करते क्या न करते कुछ ऐसे हालात थे
चलते रहना होगा क्योकि सफ़र अभी बाकी है
ढल गई है शाम मगर रात अभी बाकी है

एक रोशन सा साया एक मखमली सा एहसास था
थे हज़ारों वहां, पर कोई मेरे आस न पास था
ये तृष्णा थी यां मृगतृष्णा पर प्यास अभी बाकी है
ढल गई है शाम मगर रात अभी बाकी है

तोड़ दी हर ज़ंजीर मैंने कर दिया आज़ाद खुद को
निकल आये इस धुंध से दिख रहा है साफ़ मुझको
बढ़ा दिए मंजिल को कदम बस कुछ लम्हात बाकी है
ढल गई है रात बस अब प्रभात मेरी बाकी है


(आरज़ू    

Comments

Popular posts from this blog

चलो योग करें

Aaj ke yoga divas par meri ye rachna..          चलो योग करें एक  काम सभी  हम रोज़ करें योग   करें   चलो   योग   करें भारत  की  पहचान   है   यह वेद-पुराण  का  ग्यान  है  यह स्वस्थ   विश्व   कल्याण   हेतु जन जन का अभियान है यह सीखें    और     प्रयोग    करें योग   करें   चलो   योग   करें मन  को निर्मल  करता  है यह तन को  कोमल  करता है यह है  यह  उन्नति  का  मार्ग  भी सबको  चंचल  करता  है  यह बस  इसका  सद  उपयोग करें योग   करें   चलो    योग   करें पश्चिम   ने   अपनाया   इसको सबने   गले   लगाया    इसको रोग  दोष   से  पीड़ित  थे  जो राम  बाण  सा  बताया  इसको सादा    जीवन   उपभोग   करें योग   करें    चलो   योग   करें आरज़ू-ए-अर्जुन

बेटियों पे ग़ज़ल

ग़ज़ल दौलत नहीं,   ये अपना संसार  माँगती हैं ये बेटियाँ  तो हमसे,  बस प्यार माँगती हैं दरबार में ख़ुदा के जब  भी की हैं दुआएँ, माँ बाप की ही खुशियाँ हर बार माँगती हैं माँ  से दुलार, भाई से  प्यार  और रब  से अपने पिता की उजली  दस्तार माँगती हैं है दिल में कितने सागर,सीने पे कितने पर्बत धरती के जैसा अपना, किरदार माँगती हैं आज़ाद हम सभी हैं, हिन्दोस्ताँ में फिर भी, क्यों 'आरज़ू' ये अपना अधिकार माँगती हैं? आरज़ू

हमीं बस थे कहीं भी वो नहीं था ( ghazal )

ग़ज़ल  बहर -  1222        1222        122 बहर - मुफाईलुन, मुफाईलुन, फऊलुंन काफ़िया ( 'ओ' स्वर ) रदीफ़ ( नहीं था ) ------------------------------------------------- हमीं बस थे कहीं भी वो नहीं था मेरी चाहत के काबिल वो नहीं था जिसे सारी उमर कहते थे अपना रहे  हम ग़ैर अपना वो नहीं था किसे कहते यहाँ पर दर्द दिल का किसी पे अब यकीं दिल को नहीं था रहे बिखरे यहाँ पर हम फ़िसल के कभी ख़ुद को समेटा जो नहीं था  कभी तोडा कभी उसने बनाया खिलौना पास खेलने को नहीं था बुरा कहते नहीं हम ' आरज़ू ' को बुरे थे हम बुरा पर वो नहीं था आरज़ू-ए-अर्जुन