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( जीने की चाह )



 ( जीने की चाह )

था हाथ उनका और साथ उनका 
फिर छूटा हाथ और साथ उनका 
क्या जिंदगी रुक गई 
थे एक जिस्म एक जान 
फिर दिल जुदा हुए, जान जुदा हुई 
क्या धड़कन रुक गई 

थे हमराही हमकदम 
उसने राहें बदलीं हमने मंजिल 
क्या ज़िंदगी की गाड़ी रुक गई

वो प्यार उनका इकरार उनका 
फिर बदली नज़र और इनकार उनका 
क्या किसी की नब्ज़ रुक गई

ज़िंदगी है बेरहम, बेशर्म
न रुकी न थकी
किसी का दर्द न जानता न पहचानता
फिर भी यारो !
क्या ज़िंदगी जीने की चाहत रुक गई।  नहीं न

(आरज़ू )

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