( वफ़ा )
अंगारों पे कलियाँ खिला रहा था
कोंपले कहाँ से फूटती
हवाओं पे आशियां बना रहा था
हवाओं पे आशियां बना रहा था
बुनियादे कहाँ से पड़ती
भीड़ में तन्हाई ढूँढता था
ख़ामोशी कहाँ से मिलती
खुदगर्जों की दुनिया में वफ़ा कर ली
सच्ची मोहब्बत कहाँ से मिलती।
(आरज़ू )
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