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ग़ज़ल (कहीं ऐसा न हो जाये वसल के दिन क़यामत हो )

ग़ज़ल 
बहर : 1222 1222 1222 1222 ( मुफाईलुन * 4 ) 
काफ़िया ( अत आज़ाद  स्वर )
रदीफ़ :- हो 


कहीं ऐसा न हो जाये वसल के दिन क़यामत हो
ख़ुदारा माफ़ करना तुम मेरा यारा सलामत हो

तेरी चाहत मेरी हसरत यही आँखों में बस जाये
अगर दिलबर ज़रा सी यह तेरी नज़रें इनायत हो

वफ़ा में काश ऐसा हो गिला मुझसे ख़ुदा को हो
बना के बुत तेरी पूजा अदा करना रिवायत हो

अभी दिल ने नहीं सीखा इश्क़ की आग में जलना
नहीं चाहे मेरा यह दिल कहीं कोई अदावत हो

अगर आये कहीं वो दिन मेरा तुमसे जुदाई का
ख़ुदा हाफ़िज़ कहूँ तुझको ख़ुदा इतनी रियायत हो

फ़ना होना यही किस्मत जहाँ में 'आरज़ू ' है तो
तेरी बाँहों में मरना ही सितमगर एक हिदायत हो


आरज़ू-ए-अर्जुन


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