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' आरज़ू ' बाज़ार में बिकता नहीं ( GHAZAL)

ग़ज़ल 
मात्रा : 2122  2122  212 ( फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन )
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आशियाना प्यार का बसता नहीं 
प्यार करके चैन अब मिलता नहीं 

इश्क़ करना पाप है किसने कहा 
कौन है जो पाप यह करता नहीं 

बीत जायेगी घडी फिर से यहाँ 
वक़्त चलता ही रहे रुकता नहीं 

कैफ़ियत है देश की ये आज क्या 
आदमी को आदमी मिलता नहीं 

तुम सिखाओ और को अपना सबक 
आदमी से आदमी जलता नहीं    

मान लेते है वफ़ा ज़िंदा यहाँ 
पर निभाने को बशर मिलता नहीं 

चार कन्धों पे जनाजा लो चला 
कारवाँ सच में यहाँ रुकता नहीं 

ख़्वाबगाह ऐसी बनायी उसने क्यों 
चाह कर भी आदमी उठता नहीं 

जान पायें है महज़ इस बात को 
झूठ के बाज़ार सच बिकता नहीं 

तुम लगाओ और की बोली यहाँ 
' आरज़ू ' बाज़ार में बिकता नहीं 

आरज़ू-ए-अर्जुन 



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