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मेरी ख्वाहिशें

मेरी ख्वाहिशें

दरिया के आँचल पे मेरी ख्वाहिशें
बस चलती रहती है... चलती रहती है
दिन रात मय्यसर सी है मौज़ों में
तूफ़ान से तग़ाफ़ुल चलती रहती है......

मगर जैसे ही अपनी पलकें मूँदता हूँ
तो वाए-जॉफ सी ओक भर पानी में
डूबने लगती हैं सांसे फूलने लगती है
जिगर सिकुड़ने लगता है आखिरकार
जब सांस उखड़ने वाली होती है तो आँखे
खुलती है आनन फानन में उन्हें हाथ
देकर मैं फिर से ऊपर खींचता हूँ। ..
लम्स-ए-नाज़ुक सबा दिल जिगर को
फिर से ताकत से भर देती है
ज़र्द हुए चेहरे पे सुर्ख़रू आँखें अपने
आब-ओ-शार से ठंडी होती है
गर्दिश-ए-तक़दीर को न मानती हुई
मेरी ख्वाहिशें फिर से दरिया पे
मय्यसर होती है....  बादस्तूर ये सिलसिला
जारी है बदस्तूर ये सिलसिला चलता रहेगा
जब तक वो अपने मुकाम पर नहीं पहुंचते
 दरिया के आँचल पे मेरी ख्वाहिशें
बस चलती रहती है... चलती रहती है

आरज़ू-ए-अर्जुन 
  

    

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