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चंद अशआर आरज़ू की कलम से

चंद अशआर आरज़ू की कलम से 
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अभी ज़िंदा हो तो जीना जरूरी है
ज़िंदगी जो भी दे पीना जरूरी है
कब तक शिकवा करोगे खुदा से आरज़ू
सीने के जख्म को खुद ही सीना जरूरी है  
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खूब जी रहा हूँ इस ज़िंदगी का साथ पाकर
है मुझी से अब तक लड़ रही ये जिन्दगी
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कहाँ पर सीख रहा हूँ लहरों से लड़ने का हुनर
टूटी कश्ती संग बीच मझधार फसी है ये ज़िंदगी
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है साज़ भी राग भी दर्द भी आवाज़ भी 
ये ज़िंदगी हररोज़ गीत नया गाती रही
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मैं किस्मत को हराने की धुन में लगा रहा
और किस्मत मुझे देख कर मुस्कुराती रही
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हमने तो अपनी रूह भी सौंप दी थी तुम्हें
बस एक तू था जो कभी मेरा हो न सका
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किस्मत तो मेरी मेरे हाथों में ही छुपी थी
मैं खामखा ताउम्र लकीरों में उलझा रहा
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है आरज़ू फ़कीर के बस दो ही ठिकाने
एक तो दिल तुम्हारा दूजा अल्लाह जाने
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कागज़ पे उतार दो दिल के ग़ुबार सारे
यादों में ही जला दो वो ख्वाब सारे
जिस वजह से अटकने लगे सांस तुम्हारी
सांसो में ही जला दो वो राज़ सारे
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उस मजमून को दिल में संभाल के रखता
पर खतावार था मैं उसे ख़त कैसे लिखता
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मत इतरा ऐ चाँद फलक पे
मेरा चाँद निकलने  वाला है
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पहले अदा से ली है जान उसने
अब जाने क्या करने वाला है      
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सिंच रहे है अपनों के ख़ून से गन्ने के खेत सारे
अब तो खीर सवइयो का रंग भी लाल दिखता है
आरज़ू
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है इरादे चट्टान तो हवा की बरखिलाफ़ी क्या
तू तो आँधियों के रुख भी बदल सकता है आरज़ू
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आरज़ू-ए-अर्जुन 

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