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Roshni me bandh kar vo bechte hain tirgi.. Ghazal

आदाब

खुद को कहता है ख़ुदा अब इस कदर मग़रूर है
आदमी  तो   आज  दौलत,  के  नशे   में  चूर  है

क्या  है  किस्मत में  तेरी तू क्यों  खुदा से पूछता
लो  मज़ा अंजान  बन  के,  कुछ  भी हो  मंज़ूर है

रौशनी   में   बाँध   कर   वो   बेचते   हैं   तीरगी
इल्म  के  अन्धे  ख़रीदे  कह  के  यह  मशहूर  है

वो  सिखाते हैं  हमें जिससे,  ख़लीफ़ा  हम  बनें
पर  सिखाते  वो  नहीं  जिसमें  छिपा वो  नूर है

आइना यह  कह रहा तू क्यों  भटकता  है इधर
ढ़ूँढता  तू   क्यों   नहीं   तुझमें   भी  कोहेनूर  है

आज  इंसाँ  चाँद  पे,  मंगल  पे भी  है  जा  रहा
खोजता  है  वो  खुदा  को  पर  खुदी  से  दूर है

क्यों  सफ़र  से  डर  रहे  हो  देखकर  पेचीदगी
ज़िंदगी  का  खेल  सीखो  हर  मज़ा  भरपूर  है

आरज़ू ' यह हर बशर से कह रहा है सीख कर
रास्ते   सीधे  न   लो,   वो   मंज़िलों  से  दूर   है

आरज़ू -ए-अर्जुन

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DIL TUMHARA JAB CHURAYA JAYEGA.. GHAZAL

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