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नमकीन सा पानी..

      नमकीन सा पानी ..

मिट्टी में तालाश रहे हो मुझे..
अब तो निशां भी नहीं होंगे वहाँ.
कई हिस्सों में बंट गई थी मैं,
गिरते ही बिख़र गई थी मैं..
महज़ एक सेकंड का वक्त लगा,
और मीलों की दूरी तय कर ली..
तेरे हर ग़म की राजदा थी मैं
तेरी हर धड़कन,हर आहट,हर
दस्तक को पहचानती थी मैं..
मैने सुनी थी उनकी सदाएं,
और वो चुभन भी...
जो खा़मोशी से गूंजती थी तेरे,
दिल की वादियों में.. तड़प बनकर..
बहुत कोशिश की थी तुमने..
बहुत कोशिश की थी मैने..
न तुम ख़ुद को रोक सके,
न मैं ही वहाँ ठहर पाई...
कल आखिरी बार रूकी थी..
तेरी आँखों की दहलीज़ पर.
आख़िरकार गिरा दिया न तुमने
मुझे अपनी आंखों से.....
महज़ पानी ही तो थी मैं..
महज़ एक नमकीन सा कतरा..
एक सवाल पूछूँ जवाब दोगे ?
क्या वो ग़म धुल गया......

आरज़ू-ए-अर्जुन

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