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शिव भजन

शिव भजन 

तेरी सूरत है प्यारी
पूजे ये दुनिया सारी
तेरे चरणों में होती है जन्नत हमारी
भोले भंडारी मेरे भोले भंडारी -४

तेरी जटायें गंगा समाये
चाँद सुहाए मस्तक तेरे
ओ हलाहल को पीने वाले
अमृत सागर दिल में तेरे
तेरी हर बात न्यारी
पूजे ये दुनिया सारी
तेरे चरणों में होती है जन्नत हमारी
भोले भंडारी मेरे भोले भंडारी -४

हम खलकामी भक्त तुम्हारे 
तू सबका कल्याण करे 
भवसागर तर जाता है वो 
जो भी तेरा ध्यान करे 
पूरे जग के ओ स्वामी 
पूजे ये दुनिया सारी 
तेरे चरणों में होती है जन्नत हमारी
भोले भंडारी मेरे भोले भंडारी -४

भंग नहीं तू भाव को पीता 
अज्ञानी हम क्या जाने 
श्रद्धा भक्ति भोग लगाये 
बाहरी आडंबर न माने 
अर्जुन तेरा पुजारी
पूजे ये दुनिया सारी  
तेरे चरणों में होती है जन्नत हमारी
भोले भंडारी मेरे भोले भंडारी -४

आरज़ू-ए-अर्जुन  


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चलो योग करें

Aaj ke yoga divas par meri ye rachna..          चलो योग करें एक  काम सभी  हम रोज़ करें योग   करें   चलो   योग   करें भारत  की  पहचान   है   यह वेद-पुराण  का  ग्यान  है  यह स्वस्थ   विश्व   कल्याण   हेतु जन जन का अभियान है यह सीखें    और     प्रयोग    करें योग   करें   चलो   योग   करें मन  को निर्मल  करता  है यह तन को  कोमल  करता है यह है  यह  उन्नति  का  मार्ग  भी सबको  चंचल  करता  है  यह बस  इसका  सद  उपयोग करें योग   करें   चलो    योग   करें पश्चिम   ने   अपनाया   इसको सबने   गले   लगाया    इसको रोग  दोष   से  पीड़ित  थे  जो राम  बाण  सा  बताया  इसको सादा    जीवन   उपभोग   करें योग   करे...

DIL TUMHARA JAB CHURAYA JAYEGA.. GHAZAL

आदाब दिल तुम्हारा जब चुराया जाएगा दोष तुमपर ही लगाया जाएगा इस मुहब्बत में फ़क़त पहले पहल तुमको पलकों पर बिठाया जाएगा तोल लेना पर को तुम अपने यहाँ तुमको ऊँचा भी उड़ाया जाएगा उड़ना लेकिन छोड़ मत देना ज़मीं तुमको नीचे भी गिराया जाएगा झांकना मत आंखों में वो फ़र्ज़ी है ख़ाब झूठा ही दिखाया जाएगा बढ़ रहे आहिस्ता से तुम मौत को यह नहीं तुमको बताया जाएगा है मुहब्बत खूबसूरत सी बला जाल में इसके फंसाया जाएगा प्यार में वादा करो पर सोच कर देखना, तुमसे निभाया जाएगा यह नहीं कहता मुहब्बत मत करो टूट कर क्या तुमसे चाहा जाएगा जो मुहब्बत पाक सी है 'आरज़ू' उसके आगे सर झुकाया जाएगा आरज़ू-ए-अर्जुन

"ਖਜੂਰ ਦਾ ਰੁਖ " ( in punjabi)

"ਖਜੂਰ ਦਾ ਰੁਖ " ਮੇਰੇ ਖੇਤ ਦੇ ਵੱਟ ਤੇ ਇਕ ਖਜੂਰ ਦਾ ਰੁਖ ਹੈ ਸ਼ਾਇਦ ਅਣਚਾਹੀ ਬਰਸਾਤ ਵਿੱਚ ਪੂੰਗਰਿਆ ਸੀ ਵੇਖਦੇ ਵੇਖਦੇ ਕਿਸੇ ਗਰੀਬ ਦੀ ਧੀ ਵਾਂਗ ਜਵਾਨ ਹੋ ਗਿਆ ਮੈਂ ਨਾ ਤੇ ਇਸਨੂੰ ਕੋਈ ਖਾਦ ਪਾਈ ਨਾ ਹੀ ਪਾਣੀ ਦਿੱਤਾ, ਇਸ ਰੁਖ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਮੈਂਨੂੰ ਧੀ ਨਿਮੋ ਦੀ ਯਾਦ ਆਈ ਦੋਵੇਂ ਹੀ ਬੇਜ਼ੁਬਾਨ, ਇਕ ਖੇਤ ਵਿੱਚ ਇਕ ਚੇਤ ਵਿੱਚ ਨਾ ਉਸਨੇ ਮੇਰੇ ਕੋਲੋਂ ਕਿਸੇ ਚੀਜ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਨਾ ਇਸ ਖਜੂਰ ਨੇ ਹੀ ਮੇਰੇ ਕੋਲੋਂ ਕੁਝ ਮੰਗਿਆ ।                        ਮੇਰੇ ਖੇਤ ਦੇ ਵੱਟ ਤੇ ਇਕ ਖਜੂਰ ਦਾ ਰੁਖ ਹੈ                        ਸ਼ਾਇਦ ਅਣਚਾਹੀ ਬਰਸਾਤ ਵਿੱਚ ਪੂੰਗਰਿਆ ਸੀ ਕਿਨੀਆਂ ਗਰਮੀਆਂ ਵਿੱਚ ਭੁਜਦਾ ਸੜਦਾ ਰਿਹਾ ਸੀ ਇਹ ਪਤਾ ਨਹੀ ਕਿਵੇਂ ਝਲ੍ਹਦਾ ਸੀ ਇਹ ਝਖੜ ਹਨੇਰੀਆਂ ਸਿਰ ਤੇ ਗਿਣਤੀ ਦੇ ਪੱਤੇਆਂ ਦੀ ਪਗੜੀ ਪਾ ਕੇ ਝੁਮਦਾ ਹੈ ਗਾਉਂਦਾ ਹੈ " ਮੇਰਾ ਕਦ ਅਸਮਾਨੀ, ਮੇਰਾ ਕਦ ਅਸਮਾਨੀ " ਇਸਦੀ ਮੁਸਕਾਨ ਨਿਮੋ ਨਾਲ ਕਿੰਨੀ ਮਿਲਦੀ ਹੈ ਗਰੀਬੀ ਤੇ ਮਜ਼ਬੂਰੀ ਦੀ ਪੱਗ ਨੂੰ ਗਿਰਵੀ ਰਖ ਕੇ ਕਰਮਾਂ ਦੀ ਮਾੜੀ ਨੂੰ  ਚੁੰਨੀ ਚੜਾਈ ਸੀ, ਮੈਂ ਤਾਂ ਹਾਲੇ ਅਖਾਂ ਵੀ ਨਹੀ ਝਪਕਾਈਯਾਂ ਸਨ ਉਸਤੇ ਪਤਾ ਨਹੀ ਕਦੋਂ ਜਵਾਨੀ ਆਈ ਸੀ    ...