ग़ज़ल
काफ़िया ( आ स्वर आज़ाद) रदीफ़- रहे,
( मेरा आफ़ताब और माहताब )
हमें आफ़ताब की रौशनी मिले न मिले
मेरे माहताब की लौ बस मिलती रहे
चाहे भोर का तारा ही बना तू मुझे खुदा
बस रात दिन से यह नज़र मिलती रहे
क्या करूंगा समंदर को दिल में समाकर
प्यार की एक बूंद से यह प्यास बुझती रहे
वसल से खूबसूरत होता है पहला इंतज़ार
वो कशमकश दिल में यूँही उलझती रहे
मैं समा जाना चाहता हूँ उनके रोम रोम में
और धड़कन उनकी सांसों से चलती रहे
यह चिलमन हटा दो अपने रूख से ज़रा
तेरी मदभरी नज़र से यह नज़र मिलती रहे
तुम मिराज़ सी रहो मेरे दशतो सुख़न में
तेरी तलाश में रूह सहरा सहरा जलती रहे
उनके सीने से लगकर होना है फ़ना ऐसे
देखकर हमें यह ईश्क भी बस जलती रहे
उनके आगोश में आकर भूल जाएंगे खुदा
चाहे ये दुनिया हमें काफ़िर करार करती रहे
बड़ी कम उम्र है मोहब्बत के लिए आरज़ू
खुदा रा अगले जन्म की मोहलत मिलती रहे
आरज़ू -ए-अर्जुन
काफ़िया ( आ स्वर आज़ाद) रदीफ़- रहे,
( मेरा आफ़ताब और माहताब )
हमें आफ़ताब की रौशनी मिले न मिले
मेरे माहताब की लौ बस मिलती रहे
चाहे भोर का तारा ही बना तू मुझे खुदा
बस रात दिन से यह नज़र मिलती रहे
क्या करूंगा समंदर को दिल में समाकर
प्यार की एक बूंद से यह प्यास बुझती रहे
वसल से खूबसूरत होता है पहला इंतज़ार
वो कशमकश दिल में यूँही उलझती रहे
मैं समा जाना चाहता हूँ उनके रोम रोम में
और धड़कन उनकी सांसों से चलती रहे
यह चिलमन हटा दो अपने रूख से ज़रा
तेरी मदभरी नज़र से यह नज़र मिलती रहे
तुम मिराज़ सी रहो मेरे दशतो सुख़न में
तेरी तलाश में रूह सहरा सहरा जलती रहे
उनके सीने से लगकर होना है फ़ना ऐसे
देखकर हमें यह ईश्क भी बस जलती रहे
उनके आगोश में आकर भूल जाएंगे खुदा
चाहे ये दुनिया हमें काफ़िर करार करती रहे
बड़ी कम उम्र है मोहब्बत के लिए आरज़ू
खुदा रा अगले जन्म की मोहलत मिलती रहे
आरज़ू -ए-अर्जुन
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