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filbadeeh 74.. baad e saba

बाद-ए-सबा आॅनलाईन 'मुशायरा' कार्यक्रम
🌹🌹🌹
फ़िलबदीह संख्या-(74 )
🌹🌹🌹
दिनांक- 11 /6 /2017
🌾🌾🌾
दिन- <<< रविवार >>>।
💐💐💐
समय-शाम  4 :00 बजे से
🍉🍉🍉
आदाब ! दोस्तो..
आज का फ़िलबदीह मुशायरा मशहूर शायरजनाब " आरज़ू-ए-अर्जुन " साहब के ऐज़ाज़
में आप ही के मिसरे पर मुन्अक़िद है...
🍉🍉🍉
तर्ही मिसर'अ
** " आज फिर वो दिल दुखाने आ गए " **
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वज़न
2122---2122----212
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अर्कान
फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन  फाइलुन
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बहर
बहरे - बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ ।
🍎🍎🍎
क़ाफ़िया = दुखाने, "आने" की बंदिश
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रदीफ़ =... आ गए ।
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क्वाफ़ी-
 बहाने, जताने, सुनाने, चुराने, बुलाने, मनाने, सुलाने,झुलाने, कराने, बताने, समाने, आने, जाने, खाने, पाने ढाने, दाने आदि 🍉🍉🍉
गीत-
1- दिल के अरमाँ आसुओ में बह गये ।
2- आपके पहलू में आके रो दिये ।
3- कल चमन था आज इक सहरा हुआ ।
4- पर्वतों से आज मैं टकरा गया।
🍅🍅🍅🍅🍅🍅🍅🍅🍅🍅🍅🍅🍅🍅🍅🍅🍅

दोस्तो शाम  के 4 बज चुके हैं और अबइंतिज़ार की घड़ियाँ ख़त्म हुईं।
लीजिये सज चुकी है महफ़िल-ए-'बाद -ए-सबा ए-ग़ज़ल।
तो अब इंतिज़ार किस बात का?दिल खोलकर अश्आर कहें,
ग़ज़लों का लुत्फ़ उठायें औरअन्य साथियों कीहौसला अफ़जाई भी करते रहें।
आइये शे'रो-सुखन की इस शानदार महफ़िल काभरपूर आनंद लें।
धन्यवाद।
समस्त बाद -ए-सबा परिवार

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DIL TUMHARA JAB CHURAYA JAYEGA.. GHAZAL

आदाब दिल तुम्हारा जब चुराया जाएगा दोष तुमपर ही लगाया जाएगा इस मुहब्बत में फ़क़त पहले पहल तुमको पलकों पर बिठाया जाएगा तोल लेना पर को तुम अपने यहाँ तुमको ऊँचा भी उड़ाया जाएगा उड़ना लेकिन छोड़ मत देना ज़मीं तुमको नीचे भी गिराया जाएगा झांकना मत आंखों में वो फ़र्ज़ी है ख़ाब झूठा ही दिखाया जाएगा बढ़ रहे आहिस्ता से तुम मौत को यह नहीं तुमको बताया जाएगा है मुहब्बत खूबसूरत सी बला जाल में इसके फंसाया जाएगा प्यार में वादा करो पर सोच कर देखना, तुमसे निभाया जाएगा यह नहीं कहता मुहब्बत मत करो टूट कर क्या तुमसे चाहा जाएगा जो मुहब्बत पाक सी है 'आरज़ू' उसके आगे सर झुकाया जाएगा आरज़ू-ए-अर्जुन

पहला क़दम उठाओ !

बस,पहला क़दम उठाओ  हमने खुद को खुद की ही बेड़ियों में जकड लिया है, अपने ही दायरे में सिमट कर रह गए हैं। हमने अपनी सोच समझ को सीमित कर लिया है, अपनी सहूलियत के मुताबिक एक सुरक्षा घेरा बना लिया है, अब उस घेरे से बाहर क़दम रखने में डर लगता है। जितनी ज़रूरत है उतना ही दिमाग चलता है उतने ही पाँव चलते है यहाँ तक कि हमने अपने ख़ाबों को भी दायरे में बांध रखा है।  बड़ी अजीब सी बात है, आज ख़ाब किसी और के हैं, देखता कोई और है, पूरा कोई और कर रहा है, कमाल है। पूरी प्रणाली मशीनी हो गई है। आज हम अपने नहीं अपनों के ख़ाब पूरे करने की कोशिश कर रहे हैं और उसके लिए मेहनत हम नहीं हमारे अपने यानि माँ बाप, बड़े भाई यां बहिन करती हैं, सिर्फ़ ज़रिया हम बनते हैं। इस तरह से हम कुछ बन भी गए तो हमारी योग्यता क्या होगी,हमारी गुणवता क्या होगी। हम दूसरों से साधारण होंगे, दूसरे हमसे ज्यादा अक्लमंद होंगे, उनका तज़ुर्बा हमसे बेहतर होगा। और ऐसा क्यों होता है ? क्योकि हमने अपना पहला कदम खुद नहीं उठाया था। हमने अपनों की बैसाखिया थाम रखी थी। कभी धूप बर्दाश्त ही नहीं की, बारिश में ठिठुर के का...