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Meri tarah tadpa karte ho

आदाब

मेरी तरह  तड़पा करते  हो
चुपके  से  रोया  करते  हो

आंखें पुरनम  रहती हरदम
हसने  का  वादा  करते हो

क्या मिला  होकर के तन्हा
किस लिए  रूठा  करते हो

जीना मुश्किल  हो जाता है
फिर भी तुम ऐसा करते हो

यार बताओगे  तुम मुझ को
तन्हाई  में  क्या   करते  हो

सुलगा सुलगा रहता हूँ जब
ख़ाबों  में  आया  करते  हो

थपकी  देता  हूँ मैं शब भर
ठीक बगल  सोया करते हो

मुझको  हवायें  कह देती हैं
शाम ढ़ले तुम क्या करते हो

चांद भी  जलता  देखा मैने
छत पे जब आया करते हो

मुझपे  हसकर  जाते  हैं वो
जिनका तुम सजदा करते हो

उलझे  उलझे  मिसरे  थे वो
धुन क्या वो  गाया करते हो

शिकवे  कैसे  लब  पे  लाऊँ
जो  करते  अच्छा  करते हो

देर  लगा   दी   आते   आते
मुझसे ही  शिकवा  करते हो

वक्त-ए-रूख़सत है अब जानां
रोकर  आज  विदा करते हो

रो रो  के  कहते  हो  उठ  जा
अर्जुन  को  रूसवा  करते हो

आरज़ू-ए-अर्जुन

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ग़ज़ल  बहर -  1222        1222        122 बहर - मुफाईलुन, मुफाईलुन, फऊलुंन काफ़िया ( 'ओ' स्वर ) रदीफ़ ( नहीं था ) ------------------------------------------------- हमीं बस थे कहीं भी वो नहीं था मेरी चाहत के काबिल वो नहीं था जिसे सारी उमर कहते थे अपना रहे  हम ग़ैर अपना वो नहीं था किसे कहते यहाँ पर दर्द दिल का किसी पे अब यकीं दिल को नहीं था रहे बिखरे यहाँ पर हम फ़िसल के कभी ख़ुद को समेटा जो नहीं था  कभी तोडा कभी उसने बनाया खिलौना पास खेलने को नहीं था बुरा कहते नहीं हम ' आरज़ू ' को बुरे थे हम बुरा पर वो नहीं था आरज़ू-ए-अर्जुन