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राज़ दिल में ही दबा देते हैं

आदाब

सेज़  यादों  की  जला  देते  हैं
राज़  दिल  में  ही  दबा देते  हैं

कोई  पढ़  ना ले, मेरे चेहरे को
यार   मुस्कान   सजा   देते  हैं

एक भी एहसान नहीं रखते हम
शुक्रिया  कह  के चुका देते  हैं

तुम यकीं करते हो अपनों पे क्यों
यार  अपने   ही   दगा   देते  हैं

दिल  करे  फूट के रोने का जब
सब  दिये  घर  के  बुझा देते  हैं

आदमी  काम  का  है  तो यारो
उसको  कांघे   पे  उठा  देते  हैं

आदमी काम  ना आये तो फिर
ला  ज़मीं  पर  भी गिरा  देते  हैं

हौसला आग पे  चलने  का हम
इस  ज़माने  को  दिखा  देते  हैं

'आरज़ू ' मान  भी  ले  बात मेरी
सबको  इस  बार  हिला  देते हैं

आरज़ू -ए-अर्जुन

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