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आरज़ू की कलम से

पानी की तरह रंगहीन , गंधहीन था आरज़ू
इस दुनियां ने रंग भरे और गन्दा कर दिया         ( आरज़ू )


         मैं  ज़मीन की जड़ से जुड़ा हूँ
     आकाश में उड़ना मुझे नहीं आता है
   सर उठा कर चलना तो फितरत है मेरी
वरना ! आकाश तो क्षितिज पे झुका नज़र आता है    (आरज़ू )

मैं हवा था इस गुलशन में महका सा कहीं, क्या खबर थी ,
सेहरा में जलना भी होगा और तूफनों में चलना भी होगा
एक कशमकश सी रहती है अक्सर अपने वुज़ूद को लेकर,
मेरी वज़ह से उसे बसना भी होगा और उजड़ना भी होगा           (आरज़ू )

इतना  सोच समझ के फैसले क्यों लेता है तूं ,
लोग फैसला लेके उसे साबित कर देते है आरज़ू               ( आरज़ू )  

हाथ की लकीरों में क्या ढूंढ़ता था आरज़ू तकदीर तो मुट्ठी में बंद थी
जब देखा उस तकदीर को सामने तो कम्बख्त मेरी साँसें ही चंद थी        (आरज़ू )  

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DIL TUMHARA JAB CHURAYA JAYEGA.. GHAZAL

आदाब दिल तुम्हारा जब चुराया जाएगा दोष तुमपर ही लगाया जाएगा इस मुहब्बत में फ़क़त पहले पहल तुमको पलकों पर बिठाया जाएगा तोल लेना पर को तुम अपने यहाँ तुमको ऊँचा भी उड़ाया जाएगा उड़ना लेकिन छोड़ मत देना ज़मीं तुमको नीचे भी गिराया जाएगा झांकना मत आंखों में वो फ़र्ज़ी है ख़ाब झूठा ही दिखाया जाएगा बढ़ रहे आहिस्ता से तुम मौत को यह नहीं तुमको बताया जाएगा है मुहब्बत खूबसूरत सी बला जाल में इसके फंसाया जाएगा प्यार में वादा करो पर सोच कर देखना, तुमसे निभाया जाएगा यह नहीं कहता मुहब्बत मत करो टूट कर क्या तुमसे चाहा जाएगा जो मुहब्बत पाक सी है 'आरज़ू' उसके आगे सर झुकाया जाएगा आरज़ू-ए-अर्जुन

पहला क़दम उठाओ !

बस,पहला क़दम उठाओ  हमने खुद को खुद की ही बेड़ियों में जकड लिया है, अपने ही दायरे में सिमट कर रह गए हैं। हमने अपनी सोच समझ को सीमित कर लिया है, अपनी सहूलियत के मुताबिक एक सुरक्षा घेरा बना लिया है, अब उस घेरे से बाहर क़दम रखने में डर लगता है। जितनी ज़रूरत है उतना ही दिमाग चलता है उतने ही पाँव चलते है यहाँ तक कि हमने अपने ख़ाबों को भी दायरे में बांध रखा है।  बड़ी अजीब सी बात है, आज ख़ाब किसी और के हैं, देखता कोई और है, पूरा कोई और कर रहा है, कमाल है। पूरी प्रणाली मशीनी हो गई है। आज हम अपने नहीं अपनों के ख़ाब पूरे करने की कोशिश कर रहे हैं और उसके लिए मेहनत हम नहीं हमारे अपने यानि माँ बाप, बड़े भाई यां बहिन करती हैं, सिर्फ़ ज़रिया हम बनते हैं। इस तरह से हम कुछ बन भी गए तो हमारी योग्यता क्या होगी,हमारी गुणवता क्या होगी। हम दूसरों से साधारण होंगे, दूसरे हमसे ज्यादा अक्लमंद होंगे, उनका तज़ुर्बा हमसे बेहतर होगा। और ऐसा क्यों होता है ? क्योकि हमने अपना पहला कदम खुद नहीं उठाया था। हमने अपनों की बैसाखिया थाम रखी थी। कभी धूप बर्दाश्त ही नहीं की, बारिश में ठिठुर के का...