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Faasle ab mit rahein hai....

आदाब

हो  रही  है  गुफ़्तगू  अब  दो  दिलों  के दरम्याँ
फासले  अब  मिट  रहे  हैं  चाहतों  के  दरम्याँ

अब  बयां  कैसे  करें   तेरे  जमाल-ए-हुस्न  को
हर्फ़   सारे   लड़. पड़े   हैं  शायरों   के  दरम्याँ

दो  कदम  के  फासले पे  हैं  खड़े  मुख फेर के
कितनी ख़ामोशी सी है  इन सरहदों  के दरम्याँ

पर्बतों से यूं बिछड़  के मुख्तलिफ़ करती सफ़र
मिल ही  जाती हर नदी  फिर सागरों के दरम्याँ

चाहते  हो  ग़र  जलाना आँधियों  में  ये चिराग
आने दो  अड़चन न  कोई  हौसलों  के  दरम्याँ

कोई  भी मझधार कश्ती  को डुबो सकती नहीं
हौसले  के  साथ  डट  जा  साहिलों  के दरम्याँ

तब  समझना यार तुमको  कामयाबी  है  मिली
नाम  आये  जब  अदब  से  दुश्मनों  के दरम्याँ

चाहता है 'आरज़ू' भी आसमां  तक घर हो इक
पर उखड़ जाए न जड़ से ख्वाहिशों  के दरम्याँ.

आरज़ू-ए-अर्जुन

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DIL TUMHARA JAB CHURAYA JAYEGA.. GHAZAL

आदाब दिल तुम्हारा जब चुराया जाएगा दोष तुमपर ही लगाया जाएगा इस मुहब्बत में फ़क़त पहले पहल तुमको पलकों पर बिठाया जाएगा तोल लेना पर को तुम अपने यहाँ तुमको ऊँचा भी उड़ाया जाएगा उड़ना लेकिन छोड़ मत देना ज़मीं तुमको नीचे भी गिराया जाएगा झांकना मत आंखों में वो फ़र्ज़ी है ख़ाब झूठा ही दिखाया जाएगा बढ़ रहे आहिस्ता से तुम मौत को यह नहीं तुमको बताया जाएगा है मुहब्बत खूबसूरत सी बला जाल में इसके फंसाया जाएगा प्यार में वादा करो पर सोच कर देखना, तुमसे निभाया जाएगा यह नहीं कहता मुहब्बत मत करो टूट कर क्या तुमसे चाहा जाएगा जो मुहब्बत पाक सी है 'आरज़ू' उसके आगे सर झुकाया जाएगा आरज़ू-ए-अर्जुन

पहला क़दम उठाओ !

बस,पहला क़दम उठाओ  हमने खुद को खुद की ही बेड़ियों में जकड लिया है, अपने ही दायरे में सिमट कर रह गए हैं। हमने अपनी सोच समझ को सीमित कर लिया है, अपनी सहूलियत के मुताबिक एक सुरक्षा घेरा बना लिया है, अब उस घेरे से बाहर क़दम रखने में डर लगता है। जितनी ज़रूरत है उतना ही दिमाग चलता है उतने ही पाँव चलते है यहाँ तक कि हमने अपने ख़ाबों को भी दायरे में बांध रखा है।  बड़ी अजीब सी बात है, आज ख़ाब किसी और के हैं, देखता कोई और है, पूरा कोई और कर रहा है, कमाल है। पूरी प्रणाली मशीनी हो गई है। आज हम अपने नहीं अपनों के ख़ाब पूरे करने की कोशिश कर रहे हैं और उसके लिए मेहनत हम नहीं हमारे अपने यानि माँ बाप, बड़े भाई यां बहिन करती हैं, सिर्फ़ ज़रिया हम बनते हैं। इस तरह से हम कुछ बन भी गए तो हमारी योग्यता क्या होगी,हमारी गुणवता क्या होगी। हम दूसरों से साधारण होंगे, दूसरे हमसे ज्यादा अक्लमंद होंगे, उनका तज़ुर्बा हमसे बेहतर होगा। और ऐसा क्यों होता है ? क्योकि हमने अपना पहला कदम खुद नहीं उठाया था। हमने अपनों की बैसाखिया थाम रखी थी। कभी धूप बर्दाश्त ही नहीं की, बारिश में ठिठुर के का...