बेहोशी और ख़ामोशी ज़िक्र आता है यूँ ही कभी-कभार चंद बातों में घूमते-फिरते चलते-फिरते चंद मुलाकातों में होती है चाँद-सितारों की दूर-दराजो की बातें ज़िक्र रंगीन हो यां संगीन हो कहते है मुस्कुराते बच्चो में शुमार है आजकी आधुनिक तकनीकी युवाओं में खुमार है पश्चिमी फ़ैशन कला -कृति संजीदा लोगों ने ले रखा है प्रशासनिक पदभार देश के ठेकेदार कर रहे है देश का बंटा-धार पर! ज़िक्र करें जब नारी शोषण, और उनके चोटों पे बस एक ख़ामोशी सी दिखती है अक्सर उनके होटों पे होकर शिक्षित हम कितने बड़े विद्वान बने कितनी योनियाँ जी कर तब एक इंसान बने कर दिया तार-2 और हर फ़र्ज़ को शर्मसार छोड़ दी इंसानियत, क्या सच में इंसान बने जला दिया ममता को नारी की हर क्षमता को आँखे खुलने से पहले ही आँखें बंद कर डाली विकसित होने से पहले ही तोड़ दी वो डाली दोष यह है,कि वो आज़ाद भारत में पल रही नारी है इस पुरुष प्रधान देश के कंधों पे वो कितनी भारी है रीड़ की हड्डी इतनी कमजोर है के भार उठा नहीं सकते हो गए है वो अमानुष और उसे मा...
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