( मैंने अक्सर देखा है )
मैंने अक्सर देखा है
शाख से फूलों को टूटते
फ़लक से तारों को टूटते
काँच सा दिल को टूटते
और फिर..
कलियाँ शाख पे खिलते
कलियाँ शाख पे खिलते
फ़लक पे नए सितारों को जगमगाते
और दिल के जख्मों को भरते
मैंने अक्सर देखा है ...देखा है
जिंदगी की रफ़्तार को रुकते
पलकों से अश्कों को ढलते
अरमानो को बेदर्दी से मसलते
और फिर..
नई राहों को कदम तलाशते
नई राहों को कदम तलाशते
नम आँखों को मुस्कुराते
फिर से अरमानो को घर बसाते
मैंने अक्सर देखा है, कभी!
इन्सान को खुदा से झगड़ते
प्यार और वफ़ा को बदलते
बेबसी पे किसी को हस्ते
और फिर....
अश्कों से खुदा का दर धोते
अश्कों से खुदा का दर धोते
वफ़ा के लिए उनको तरसते
बेबसी पे उनको भी तड़पते
मैंने अक्सर देखा है .. हाँ...
मैंने अक्सर देखा है....
(आरज़ू)
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