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(रौशनी की तलाश)



(रौशनी की तलाश)

न जाने किस राह को चुन कर चला था
आज तक मंज़िल तलाश कर रहा हूँ

इन खुली आँखों से कितने ख्वाब बोए थे
आज भी उन टूटे सपनों को चुन रहा हूँ

दिल तस्सवर करता है  एक अक्स को
क्यों नहीं दिखता कबसे आंसू पोछ रहा हूँ

कितने रास्ते मिले मुझे इस सफ़र में
जाने किस मंज़िल की तलाश कर रहा हूँ 

यह ज़िन्दगी एक अंधे कुँए सी लग रही है
जाने कब से इस कुँए में गिरता जा रहा हूँ


दिल कहता है वो  राह भी मिलेगी
एक दिन वो तस्वीर भी साफ़ दिखेगी
वो ख्वाब उभर आएगा इस अंधे कुँए से

मैं शायद उस एक रौशनी की तलाश कर रहा हूँ

(आरज़ू ) 

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