( वो प्रभात बाकी है )
ढल गई है शाम मगर रात अभी बाकी है
था अंगारों भरा रास्ता मगर चलते रहे
कभी सुलगे अरमां कभी जलते रहे
करना होगा ये पथ पार,एक आस अभी बाकी है
ढल गई है शाम मगर रात अभी बाकी है
थी सिसकती खुशियाँ, मुश्किल में ज़ज्बात थे
क्या करते क्या न करते कुछ ऐसे हालात थे
चलते रहना होगा क्योकि सफ़र अभी बाकी है
ढल गई है शाम मगर रात अभी बाकी है
एक रोशन सा साया एक मखमली सा एहसास था
थे हज़ारों वहां, पर कोई मेरे आस न पास था
ये तृष्णा थी यां मृगतृष्णा पर प्यास अभी बाकी है
ढल गई है शाम मगर रात अभी बाकी है
तोड़ दी हर ज़ंजीर मैंने कर दिया आज़ाद खुद को
निकल आये इस धुंध से दिख रहा है साफ़ मुझको
बढ़ा दिए मंजिल को कदम बस कुछ लम्हात बाकी है
ढल गई है रात बस अब प्रभात मेरी बाकी है
(आरज़ू
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