( कंधे कुछ नाराज़ से है )
यह दुनिया के बंधन हर रिश्ते को निभाना है
सिर्फ वक़्त गुजरा है मगर वही फ़साना है
कई रीतें बनी कई बनाई गई
कई इबारतें लिखी फिर मिटाई गई
सब बढ़ रहे थे इस चिलचिलाती धूप में
कभी इस तो कभी उस रूप में
क्यों ये पथरीले रास्ते इतने ख़राब से है
न जाने क्यों ये कंधे कुछ नाराज़ से है
अपने तो साथ है फिर क्यों अपनापन नहीं
आंखें भी सोती है फिर क्यों कोई सपना नहीं
बहुत सी बातों को यह मन उलझा रहा
और यह दिल कैसे-2 उन्हें सुलझा रहा
इन सांसों का शोर और बेड़ियों का ज़ोर
क्यों बढ़ने नहीं देती मुझे मंजिल की ओर
इन उलझनों के रूप क्यों इतने विराट से है
न जाने क्यों ये कंधे कुछ नाराज़ से है
बहुत दौड़ते रहे अब चला नहीं जाता
कितने सागर पार किए, अब जला नहीं जाता
मैं भी उन शबनम की बूंदों को तलाश करता हूँ
इसलिए इस सेहरा में न जीता हूँ न मरता हूँ
ऐ मेघो! बहुत प्यासा हूँ, शबनम बरसाओ
बहुत तरसा हूँ अब और न तरसाओ
देख! मेरी धड़कने कितनी बदहवास से है
न जाने क्यों ये कंधे कुछ नाराज़ से है
मुझे आगे बढ़ना है, मेरा साथ दो
मैं थक जाऊँ कहीं, मुझे हाथ दो
गर यह जीवन चुनौती है तो स्वीकार है मुझे
वो पल भी आएगा जिसका इन्तजार है मुझे
सेहरा मिले दहकता समुंदर या पथरीला रास्ता
कर लेंगे हस कर इन सब से वास्ता
अब कुछ ऐसे ही अपने भी मिजाज़ से है
न जाने क्यों ये कंधे कुछ नाराज़ से है (आरज़ू)
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