( सहर आने को है )
मेरी उम्मीदों के सिरे
कभी इधर तो कभी उधर गिरे
यह सोचता हूँ कैसे समेटूं
किसे पकडूँ किसे लपेटूं
हर सिरा बिखरा हुआ उलझा हुआ
इस अन्धकार से लिपटा हुआ
कोई तो रौशनी दिखे
कोई तो राह मिले
तू डर न सिहर न ये रात जाने को है
आखरी पहर है सहर आने को है
मत सोच कौन है कौन था
किसका साथ मिला कौन बिछड़ गया
किसने उम्मीदों की फ़सल उगाई
किसने फ़सल में आग लगाई
यह ज़मीन तेरी आसमां तेरा
यह हिम्मत तेरी यह होंसला तेरा
तू क्यों डरे क्यों मरे
जब अंग संग है रहनुमा तेरा
यह गर्दिश की आंधी भी थम जाने को है
आखरी पहर है सहर आने को है
यह जीवन की बगिया और जीने की प्यास
ये बूँदें ही इसकी उलझन और एक त्रास
है फूलों पे तितलियाँ और भवरें भी
शाख की नमी और कंटकों के पहरे भी
फिर यह मौसम इतना तूफानी क्यों
फिर ये बूंदें इतनी बर्फानी क्यों
तूं थम जा कही ठहर जा कहीं
इन मेघों के पीछे छुपी किरन है कहीं
यह तूफानी रात भी अब गुजर जाने को है
आखरी पहर है सहर आने को है
जब इतना इंतजार किया चंद लम्हे और सही
जब इतने अश्क पिए चंद आंसू और सही
क्या है इस इंतजार के पार और अश्कों का सार
जान जायेगा सब कुछ न हो इतना बेक़रार
इतनी जल्दी मंजिल मिले यह जरूरी तो नहीं
मुस्कुराते हुए साहिल मिले यह जरूरी तो नहीं
देखो ! सूरज की लाली निशा ने छुपा ली
फिर निकलेगा सूरज यह उम्मीद दिल में जगा ली
इस रात को चीरती वो सुनहरी किरन बस आने को है
आखरी पहर है सहर आने को है ( आरज़ू )
मेरी उम्मीदों के सिरे
कभी इधर तो कभी उधर गिरे
यह सोचता हूँ कैसे समेटूं
किसे पकडूँ किसे लपेटूं
हर सिरा बिखरा हुआ उलझा हुआ
इस अन्धकार से लिपटा हुआ
कोई तो रौशनी दिखे
कोई तो राह मिले
तू डर न सिहर न ये रात जाने को है
आखरी पहर है सहर आने को है
मत सोच कौन है कौन था
किसका साथ मिला कौन बिछड़ गया
किसने उम्मीदों की फ़सल उगाई
किसने फ़सल में आग लगाई
यह ज़मीन तेरी आसमां तेरा
यह हिम्मत तेरी यह होंसला तेरा
तू क्यों डरे क्यों मरे
जब अंग संग है रहनुमा तेरा
यह गर्दिश की आंधी भी थम जाने को है
आखरी पहर है सहर आने को है
यह जीवन की बगिया और जीने की प्यास
ये बूँदें ही इसकी उलझन और एक त्रास
है फूलों पे तितलियाँ और भवरें भी
शाख की नमी और कंटकों के पहरे भी
फिर यह मौसम इतना तूफानी क्यों
फिर ये बूंदें इतनी बर्फानी क्यों
तूं थम जा कही ठहर जा कहीं
इन मेघों के पीछे छुपी किरन है कहीं
यह तूफानी रात भी अब गुजर जाने को है
आखरी पहर है सहर आने को है
जब इतना इंतजार किया चंद लम्हे और सही
जब इतने अश्क पिए चंद आंसू और सही
क्या है इस इंतजार के पार और अश्कों का सार
जान जायेगा सब कुछ न हो इतना बेक़रार
इतनी जल्दी मंजिल मिले यह जरूरी तो नहीं
मुस्कुराते हुए साहिल मिले यह जरूरी तो नहीं
देखो ! सूरज की लाली निशा ने छुपा ली
फिर निकलेगा सूरज यह उम्मीद दिल में जगा ली
इस रात को चीरती वो सुनहरी किरन बस आने को है
आखरी पहर है सहर आने को है ( आरज़ू )
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