( भीड़ में चलता रहा )
मैं जब भीड़ में चलता रहा
फिर भी था तन्हा, अकेला
बस इसी में आगे बढ़ता रहा
मैं जब भीड़ में चलता रहा
कितने चेहरे थे मेरे आस-पास
हर एक का अलग सा एहसास
कुछ हसीं कुछ ग़मगीन,
कुछ हसते कुछ मुस्कुराते
उन सब से किनारा करता रहा
मैं जब भीड़ में चलता रहा
कभी मुस्कान देखता तो मुस्का देता
कभी अश्क देखता तो भी हस देता
जिंदगी ने ऐसा इम्तिहान लिया
कि हर ज़ज्बात दिल को छलता रहा
मैं जब भीड़ में चलता रहा
इस कदर हुए रुसवा ज़िंदगी से आरज़ू
कि घर के दरो दीवार भी अजनबी से लगे
लोगों ने खींच दी इतनी लकीरें
कि अपनी ही हद में सिकुड़ता रहा
मैं जब भीड़ में चलता रहा
(आरज़ू)
मैं जब भीड़ में चलता रहा
फिर भी था तन्हा, अकेला
बस इसी में आगे बढ़ता रहा
मैं जब भीड़ में चलता रहा
कितने चेहरे थे मेरे आस-पास
हर एक का अलग सा एहसास
कुछ हसीं कुछ ग़मगीन,
कुछ हसते कुछ मुस्कुराते
उन सब से किनारा करता रहा
मैं जब भीड़ में चलता रहा
कभी मुस्कान देखता तो मुस्का देता
कभी अश्क देखता तो भी हस देता
जिंदगी ने ऐसा इम्तिहान लिया
कि हर ज़ज्बात दिल को छलता रहा
मैं जब भीड़ में चलता रहा
इस कदर हुए रुसवा ज़िंदगी से आरज़ू
कि घर के दरो दीवार भी अजनबी से लगे
लोगों ने खींच दी इतनी लकीरें
कि अपनी ही हद में सिकुड़ता रहा
मैं जब भीड़ में चलता रहा
(आरज़ू)
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