ग़ज़ल
बह्र> 1222 1222 1212 212
चमकती धूप तेरा रूप और यह चांदनी
सब तरफ बिखरी है तेरी ही रौशनी
यह बहार यह फुहार और यह फिज़ा
क्यों लगता है मुझे यह तेरी है हँसी
तेरी यह नज़र शराब की एक रहगुज़र
मत पूछिये अब होंश में हम है के नहीं
रुख से ज़रा ज़ुल्फे हटा दो न ऐ हुज़ूर
अब सुकून कहीं और मिलता ही नहीं
शर्मो हया के दश्त से गुज़रें कैसे भला
बागी सा दिल मेरा अब सुनता ही नहीं
जी चाहता है इश्क़ में मर जाऊँ आरज़ू
तेरे बिना अब मेरा जी लगता ही नहीं
(आरज़ू)
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