" क्या वादा निभाया हमने "
हम करते रहे वायदे तमाम उम्र;
क्या वादा निभाया हमने
बचपन में सिखाई गई थी कुछ बातें नई आदतें
लोगों ने बताये कुछ जीने के गुर और नए रास्ते
हमने कहा हम यह बनेगे, हमने कहा हम वो बनेंगे
पर भुला दिया सब कुछ, क्या कुछ भी अपनाया हमने
युवा हुए एक उमंग थी एक जोश था हममें
चुन सकते थे वो राहें पर कहाँ होश था हममे
किसी ने कहा यह ठीक है तो यह कर दिया
किसी ने कहा वो ठीक है तो वो कर दिया
बस यूँ हीं गवां दिया वो कीमती समय हमने
कर सकते थे रौशन राहें, क्या कोई दीप जलाया हमने
सुनते आये कुछ किस्से-कहानियां बचपन से
क्या समझ आई थी उन बातों की लड़कपन से
समय समय पर बदल जाती थी हमारी पसंद
पर हमने देखा किसी का रूप किसी का रंग
देखा हमने रुतबा शोहरत और किसी का ढंग
परिभाषा तो बदल दी, पर क्या प्यार, वफ़ा से निभाया हमने
धर्म के नाम पर हमने खुद को बाँट डाला
मानव होते हुए भी मानवता को काट डाला
प्यासे रह कर माँ बाप ने हमारी प्यास बुझाई
वक़्त आया हमारा तो हमने फ़र्ज़ से आँख चुराई
दिया भगवान् और माँ-बाप को स्थान एक कोने में
जिन्हें उम्र लगी थी हमारे सपने संजोने में
दिखातें है हम शीश निवाते है पर क्या सच में शीश झुकाया हमने
वक़्त आया देश के लिए तो हमने कुछ राहें चुनी
कुछ उद्योगपति बने कुछ ने जनता की राह चुनी
नफे-नुक्सान के लिए हमने लोगों को चूस डाला
सत्ता की भट्टी में मासूम जनता को झोंक डाला
था पदभार दोनों के कन्धों पर, क्या भार उठाया हमने
हम करते रहे वायदे तमाम उम्र; क्या वादा निभाया हमने
(आरज़ू)
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