( वो पल )
वो मिले आज मुझे कुछ इस तरह
रूह ने जिस्म छोड़ दिया हो जिस तरह
थे इतने करीब के छू लेते उन्हें
पर हाथ बंधे थे लब सिले थे,
शिकवा करते भी तो किन्हें
दिल में समंदर था सवालों का उमड़ता हुआ
सांसों में लावा था कोई सुलगता हुआ
फिर एक बेबसी उसकी आँखों में झलक उठी
बहुत रोका था उसने पर पलकों से छलक उठी
हमने खुद को उसकी आँखों में मरता हुआ देखा
अपनी मोहब्बत को तिल-तिल जलता हुआ देखा
थे अकेले पर कभी इस कदर तन्हा न थे
इतने करीब थे वो पर मीलों दूर से लगे
उसने अश्कों को रोका, हमने दिल को रोका
उसने कदम बढ़ा दिए अपनी मंज़िल को
और मेरी बेबसी ने फिर मुझको रोका
(आरज़ू)
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