( किस्मत )
किस्मत ने कड़ा इम्तिहान लिया
आदत थी तो जीतता गया, जीतता गया
कभी ग़ुरबत ने खेला मुझसे
तो कभी मज़बूरी ने
तो कभी ज़माना दीवार बना
हिम्मत थी, तो हर दीवार गिराता गया, हराता गया
ज़िंदगी के हर मोड़ पे मिले कितने मुझे
तो जिंदगी से कैसा शिकवा था मुझे
अचानक दूसरे ही मोड़ पर
उसी ने दगा हम से किया
यूँ लगता था हर सागर पार कर लूँगा मैं
किसी भी तूफ़ान से उभर लूँगा मैं
पर एक बार इन नज़रों में क्या डूबा
फिर डूबता गया, डूबता गया, डूबता गया
सोचा था किस्मत हरा नहीं सकती
मंजिल के लिए डरा नहीं सकती
कर लिए थे फ़तेह कई रास्ते मंजिल के मगर,
जीतने की जिद्द में अपनी जिंदगी हारता गया
(आरज़ू)
Comments
Post a Comment