( एक कसक )
जिंदगी गुजर गई एक मिराज़ में
जानता भी था के वो वहाँ नहीं है
फिर भी ऐ दिल एक कसक है कहीं
कि वो यहीं है यहीं पे कहीं है
क्यों भटकता है दिल वीरान से राहों में
धुंधले से अक्स को लिए निगाहों में
चलती है ठंडी हवा तो ठहर जाता हूँ
क्यों लगता है ये झोंके शायद वही है
दुनियां के कारवां में सब कहीं है
तुम हो, मैं हूँ , पर वो नहीं है
सब चल रहें है साथ में लेकिन
तुम हो, मैं हूँ, पर हम नहीं है
किसे पुकारूँ किसे दूँ आवाज़ मैं
खुदी से ख़फ़ा ख़ुदी से नाराज़ मैं
किसे छोड़ू किसे अपना बना लूँ
जब अपना साया भी, अपना नहीं है
(आरज़ू)
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