( इंतज़ार और सही )
मन में आता है इस दर्द की दुनिया से नाता तोड़ दूँ
हर रिश्ते हर नाते से मुह मोड़ लूँ
पर सोचता हूँ क्या कुसूर है उस नन्ही सी जान का
क्या इस दर्द की दुनीया में उसे अकेला छोड़ दूँ
यह सोचते ही मेरा होंसला पस्त हो गया
जिसे देख रहा था ढलता हुआ वो अस्त हो गया
जो लाली सी थी आसमां में, वो काली होने लगी
देखते ही देखते हर ख़ुशी अँधेरे में खोने लगी
कोई देता है तसल्ली यह रात भी कटेगी
इस दर्द का भी अंत होगा, आँखों से यह धुंध भी छटेगी
देख पयोगे फिर से वही सुनहरी किरन तुम
सावन की वही घटा बिखेरेगी तुम पर छटा
निर्मल हो जाओगे तुम फिर से एक बार
कहता है कोई मेरा करना एतबार
ख्वाब सा लगता है तो ख्वाब ही सही
चाहे ग़म मिले बेशुमार ही सही
हम देंगें वक़्त उसे पाने का उम्र भर
भरोसा है तो थोडा सा इंतज़ार ही सही
भरोसा है तो थोडा सा इंतज़ार और सही ..
(आरज़ू)
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