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" तलाश "


                 " तलाश  "

एक धुंध सी छाई है मेरे हर तरफ
धुंधली सी जमीन धुँधला आसमान है
यादो में धुंधलापन कुछ पास होने का एहसास है 
दिखते ही ओझल सा हो जाता है उस तरफ
ये  लहराती हवा है या कोई  आँचल गया है सरक
बस एक बेचैनी सी बिखरी है मेरे हर  तरफ;

इन पर्बतो से बाते करती ये  घनघोर घटायें 
वादियों मे गूंजती कुछ जानी-पहचानी सी सदायें
यह पेड़ों की घनी कतारें कुछ छिपा रही है
इनकी खामोश सी आहट  कुछ बता रही है
मन में कशमकश है  मैं जा रहा हूँ किस तरफ
बस एक बेचैनी सी बिखरी है मेरे हर तरफ

यह खुली-2 सी राहें, यह अन्सोई सी निगाहें
किसे पुकार रही है  फैला के अपनी बाहें
आवाजे दूर तक जाती फिर खो जाती
धड़कने सवाल उठाती  फिर चुप हो जाती
क्या समझाना चाहती है, दूर तक फैली बरफ
बस एक बेचैनी सी बिखरी है मेरे हर तरफ

यह मंजिलें रास्तो की आवारगी कुछ समझा रही है
पर्वतों से गले मिल यह घटाएं क्या बता रही है
शिखरों पे फैली बर्फ की चादर  में  एक सन्नाटा है
इतने  रास्तो मे कौन  सा रास्ता उस ओर जाता है
जाने क्या  तलाश रहा हूँ मैं यूँ  दर बदर
क्यों एक बेचैनी सी बिखरी है मेरे हर तरफ


(आरज़ू) 

  

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