ख्वाबों का परिंदा
मैं ख्वाबों का परिंदा हूँ
बेपरवाज़ सा उड़ता हूँ
सिंदूरी दिन मिले
यां नीली सी रात
यादों का लम्बा सफ़र
यां चंद से वो लम्हात
अनसोई सी निगाहों से
उन यादों को चुगता हूँ ।
हवा में लहराता हुआ
झूमता सा गाता हुआ
अब्र को पीकर
सब्र को खाकर
फिर चैन से कभी
अपनी धड़कन सुनता हूँ ।
है मंजिल वहीं तक
जहाँ तेरा ठिकाना
जहाँ खो जाऊँ तुझमें
बस वहीं तक है जाना
धरा पे रहूँ या नभ में
मैं तेरा प्यार बुनता हूँ
मैं ख्वाबों का परिंदा हूँ
बेपरवाज़ सा उड़ता हूँ
आरज़ू -ए-अर्जुन
मैं ख्वाबों का परिंदा हूँ
बेपरवाज़ सा उड़ता हूँ
सिंदूरी दिन मिले
यां नीली सी रात
यादों का लम्बा सफ़र
यां चंद से वो लम्हात
अनसोई सी निगाहों से
उन यादों को चुगता हूँ ।
हवा में लहराता हुआ
झूमता सा गाता हुआ
अब्र को पीकर
सब्र को खाकर
फिर चैन से कभी
अपनी धड़कन सुनता हूँ ।
है मंजिल वहीं तक
जहाँ तेरा ठिकाना
जहाँ खो जाऊँ तुझमें
बस वहीं तक है जाना
धरा पे रहूँ या नभ में
मैं तेरा प्यार बुनता हूँ
मैं ख्वाबों का परिंदा हूँ
बेपरवाज़ सा उड़ता हूँ
आरज़ू -ए-अर्जुन
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