"वाह री बहार "
एक एक करके सब झड़ी फूल पत्तियाँ
सूनी सूनी सी तब रह गई थी टहनियाँ
काल के कंकाल सा दिखता था वो पेड़
किसी गहरे राज़ सा दिखता था वो पेड़
घौंसले भी हो गए शायद तिनका तिनका
पहचान कर ले उड़े, था जिनका जिनका
एक एक करके सबने छोड़ा साथ उसका
फिर भी खड़ा रहा वो करके सर को ऊँचा
लो होकर शर्मिंदा फिर से लौटी है बहार
सजा रही है फूल-पत्ति टहनियां बेशुमार
मगर हस रहा है पेड़ देखकर झूठा प्यार
पतझड़ी कंधों पर होकर आई है सवार
वाह री वाह बसंत वाह री वाह ओ बहार
आरज़ू-ए-अर्जुन
एक एक करके सब झड़ी फूल पत्तियाँ
सूनी सूनी सी तब रह गई थी टहनियाँ
काल के कंकाल सा दिखता था वो पेड़
किसी गहरे राज़ सा दिखता था वो पेड़
घौंसले भी हो गए शायद तिनका तिनका
पहचान कर ले उड़े, था जिनका जिनका
एक एक करके सबने छोड़ा साथ उसका
फिर भी खड़ा रहा वो करके सर को ऊँचा
लो होकर शर्मिंदा फिर से लौटी है बहार
सजा रही है फूल-पत्ति टहनियां बेशुमार
मगर हस रहा है पेड़ देखकर झूठा प्यार
पतझड़ी कंधों पर होकर आई है सवार
वाह री वाह बसंत वाह री वाह ओ बहार
आरज़ू-ए-अर्जुन
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